संजीव निगम संपादित " मंजुल भारद्वाज - थिएटर ऑफ रेलेवेन्स "
का लोकार्पण
," मंजुल भारद्वाज - थिएटर ऑफ रेलेवेन्स " पुस्तक का लोकार्पण मुंबई के
सांताक्रूज़ में मौलाना आज़ाद हॉल में ७ अप्रैल को आयोजित कार्यक्रम में
वरिष्ठ साहित्यकार जगदम्बा प्रसाद दीक्षित, वरिष्ठ चिन्तक एवं लेखक कुमार
प्रशांत, नाट्यकर्मी एवं नाट्य समीक्षक रमेश राजहंस द्वारा किया गया. जाने
माने लेखक, कवि एवं नाटककार संजीव निगम द्वारा संपादित यह पुस्तक देश विदेश
में प्रतिष्ठित रंगकर्मी मंजुल भारद्वाज के रंग चिंतन " थिएटर ऑफ
रेलेवेन्स" और प्रेरित रंग आन्दोलन को विस्तार से प्रस्तुत करने का प्रथम
प्रयास है.मुंबई के अनेक वरिष्ठ एवं सुपरिचित रचनाकारों एवं अन्य साहित्य
प्रेमियों के सान्निध्य में आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन स्वतंत्र
जनसमाचार एवं परचम ने किया था . साहित्यकार एवं स्तम्भ लेखक गोपाल शर्मा
तथा पत्रकार डी के जोशी इसके मुख्य आयोजक थे तथा मंच संचालन की डोर
प्रसिद्ध कवि एवं लेखक आलोक भट्टाचार्य के हाथ में थी. इस अवसर पर बोलते
हुए अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में जगदम्बा प्रसाद दीक्षित ने रंगकर्म की
दुश्वारियों का उल्लेख किया.विशिष्ट वक्ताओं में कुमार प्रशांत ने साहित्य
के सीधे सामाजिक समस्याओं से जूझने की बात कही.उन्होंने कहा कि मंजुल
भारद्वाज का थिएटर ऑफ रेलेवेन्स समाज की खोयी आवाज़ को लौटाता है. रमेश
राजहंस ने कहा कि मंजुल भारद्वाज में गज़ब की ऊर्जा है, एक निरंतर रचनात्मक
बेचैनी है. गोपाल शर्मा ने साहित्य में वर्गीय चेतना का मुद्दा उठाते हुए
कहा कि थिएटर ऑफ रेलेवेन्स वर्गीय संकीर्णता को तोड़ता है. आलोक भट्टाचार्य
ने पुस्तक को कथ्य एवं प्रस्तुति की दृष्टि से बेहतरीन कृति बताते हुए
संजीव निगम को उनके कुशल सम्पादन पर बधाई दी .
पुस्तक के सम्पादक संजीव निगम ने अपनी बात कहते हुए इस रंग आन्दोलन की
विशेषताओं तथा इस पुस्तक के सम्पादन में आई चुनौतियों को गहराई से सामने
रखा. अंत में बोलते हुए स्वयं मंजुल भारद्वाज ने इस रंग सोच पर उठे
प्रश्नों का बखूबी उत्तर दिया तथा रंगमंच के प्रति अपनी आजीवन प्रतिबद्धता
को रेखांकित किया . एक बात ज़रूर रही कि सभी वक्ताओं एवं उपस्थित मेहमानों
ने पुस्तक के बारे में इस बात को बार बार दोहराया कि पुस्तक एक विचारधारा
को प्रस्तुत करते हुए भी प्रस्तुति तथा भाषा के स्तर पर अत्यंत रोचक एवं
सहज है .
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