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अशोक का काव्य-पाठ एक ऐसा तिलिस्म रचता है कि समस्त इन्द्रियां केवल स्वर पर केन्द्रित हो जाती हैं


त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाउस, दिल्ली में आयोजित, कविता के  प्रचार-प्रसार और उसकी प्रासंगिकता को समर्पित कवियों की संस्था "लिखावट" के कार्यक्रम "कविता पाठ -एक" में वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई जी ने युवा कवि अशोक कुमार पाण्डेय की काव्य-यात्रा और उनके सरोकारों पर अपने विचार रखते हुए उपरोक्त शेर उद्दृत कियालीलाधर जी ने कहा  "बदले समय में कविता अपने पिछले विचारधारात्मक प्रतिमानों से कहीं कहीं लगातार डीबेट करती रही है, उसमें एक खास तरह का शिल्प का चातुर्य देखा गया और कला के नाम पर जो विचार थे और जनवादी कविता जिसमें विचार और सरोकार प्रमुख थे और भाव था कि भले ही समाज पूरी तरह से बदले किन्तु उसके बदलने के लिए जो चेतना का निर्माण संभव हो उसे कहीं कहीं किया जाना चाहिए......" 


गौरतलब है इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अशोक कुमार पाण्डेय, ग्वालियर से और प्रताप राव कदम, खंडवा से आये थेउनके अतिरिक्त बलि सिंहमनोज कुमार सिंह, महेंद्र सिंह बेनीवाल, संजीव कौशल और जसवीर त्यागी ने काव्य पाठ कियालिखावट के मुख्य संयोजक और कवि मिथिलेश श्रीवास्तव ने संचालन कियावरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी जी की अनुपस्थिति में लीलाधर मंडलोई जी ने अध्यक्ष की भूमिका स्वीकार कीयद्यपि बिना किसी औपचारिकता के सभी वरिष्ठ कवियों के मार्गदर्शन में ये कार्यक्रम सुचारू रूप से चलता रहा! सुप्रसिद्ध कवि उमेश कुमार चौहान ने लिखावट के सरोकारों पर प्रकाश डालते हुए शुभारम्भ किया और सभी कवियों और उपस्थित श्रोताओं का अभिवादन किया! कार्यक्रम के स्वरुप के अनुरूप लीलाधर मंडलोई जी ने अशोक कुमार पाण्डेय की कविताओं पर एक व्यक्तव्य दियाउन्ही के शब्दों में "अशोक की कविता जिस समय को बेलोंग करती है, देखा गया है कि नब्बे के दशक और उसके बाद की कविता का स्वर धीमा पड़ता है, शिल्प का चातुर्य बढ़ता है, ठीक ऐसे समय में जब हम ये मान कर चल रहे थे कि कविता की धार कुंद पड़ रही है, उस समय अशोक की कवितायेँ इस आश्वासन के साथ केंद्र में आती हैं कि चीज़ें इस तरह से ख़त्म नहीं हुई......एक साफ विजन अपने सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध, आवरण और दुराव-छिपाव रहित भाषा.....इतनी सीधे सीधे बात कि लगता है कि क्रांति का सपना अभी हाल में ही सच हो सकता......"  उनके व्यक्तव्य से सहमत हाल तालियों से गूंज उठा



अशोक ने अपनी छह कवितायेँ सुनाई जिनके नाम थे "लगभग अनामंत्रित" (उनके इस नाम के काव्य संग्रह से), यह हमारा प्रेम है (प्रेम और उसके साथ सामाजिक सरोकारों को जीने की इच्छा), मैं एक सपना देखता हूँ, इतनी सी रौशनीश्रोताओं की मांग पर उन्होंने अपनी प्रसिद्द कविता "माँ की डिग्रियां" भी सुनाई जो सभी को भावुक कर गयीअंत में अशोक ने कश्मीर में किशोरों और युवाओं द्वारा पत्थरबाज़ी की घटनाओं पर अपनी जोशीली कविता "ये किन हाथों में पत्थर है" सुनाईउपस्थित सभी श्रोतागण एक मत थे कि अशोक का काव्य-पाठ एक ऐसा तिलिस्म रचता है कि समस्त इन्द्रियां केवल स्वर पर केन्द्रित हो जाती हैं, वाणी और शब्दों के मेल से उत्पन्न विद्युत प्रवाह सभागार में बैठे अंतिम श्रोता तक संचालित होता प्रतीत हुआ तथा "एक और..." की मांग को भला कब तक पूरा किया जा सकता था!  

वरिष्ठ कवि मदन कश्यप जी ने कवि प्रताप राव कदम की कविताओं पर अपने विचार सभी से साझा कियेउन्ही के शब्दों में "विचारों और सरोकारों की कविता में वापसी हुई है जिसके लिए मैं सभी कवियों को बधाई देता हूँ और ऐसे ही कवियों में जो स्टार नहीं थे और जिन्हें बाहर रखने की कोशिश की गयी उनमें मैं प्रताप राव कदम को गिनता हूँऐसे समय में जब हम मध्यम वर्गीय पीडाओं के आधार पर व्यापक समाज को समझ पा रहे थे, देख पा रहे थे, ऐसे समय बड़ी चुनौती के साथ कुछ कवियों ने विचार के पक्ष को नहीं छोड़ा, उनका संघर्ष तब बहुत ज्यादा था, उन महत्वपूर्ण कवियों में प्रताप राव कदम का नाम प्रमुख है! "  उन्होंने प्रताप राव कदम की कविताओं की विशेषताओं को सूत्रों में विभक्त किया! वे थे....छोटे प्रसंगों के मध्यम से यथार्थ को उभारना, कथकीय भंगिमा (उत्सवधर्मिता से परे सादगी), विभिक्षा, मार्मिकता, लघु प्रसंगों के मध्यम से वर्ग संघर्ष और बाजारवाद/धर्म का विरोध किये बिना अंतर्संबंधों को दिखाना



प्रताप राव कदम ने अपनी नौ कवितायेँ सुनाई, उन्होंने "कमजोरी", चश्मा, धर्म कहाँ, पैजामा, मेरे आदमी होने में कसर, लानत भेजता है, फज़र की नमाज के वक़्त इमलीपुरा, फेसबुक और सृजन उत्सव नामक कवितायेँ सुनाईउनका प्रभावशाली कविता पाठ और मार्मिक रचनाएँ सभी के दिल को छू गयीइन कविताओं में एक आम आदमी का दर्द था, एक अल्संख्यक मोहल्ले की गतिविधि थीं, फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट के दुरुपयोग पर चिंतन थाकदम जी ने कविताओं के मध्यम से एक कवि-हृदय की बैचैनी को उजागर कर दिया

लिखावट से जुड़े कवियों में देशबंधु कॉलेज में प्रोफेसर मनोज कुमार सिंह ने अपनी कुछ सुंदर कवितायेँ, " डरते हुए:, दुनिया का दादा भारत होगा, नक्सलबाड़ी से लौटने के लिए आयेगी वह, ये दुनिया है ऐसी ही रहेगी और जनता का आदमी, सुनाईकभी व्यंग्य और कभी मार्मिक शब्दों का ताना बना रचती ये कवितायेँ सभी को पसंद आईराजधानी कॉलेज से आये जसवीर त्यागी ने अपनी चार कवितायेँ साझा की, समुद्र, मोची, छोटू का हिसाब और रामविलास शर्मा को संबोधित एक कवितासमुद्र में जहाँ पिता-बेटी का मार्मिक संवाद था, मोची और छोटू कवितायेँ निम्न वर्ग की पीढ़ा को उभरती प्रतीत हुईंराजधानी कॉलेज से ही आये महेंद्र सिंह बेनीवाल ने पांच कवितायेँ सुनाई "शब्द" "शब्द/वर्ण", "पेड़", "पद्जात", " जाने कब" !  दलित विमर्श बेनीवाल की कविताओं की खासियत है, उनकी कविताओं में दलित पीड़ा उभर कर सामने आती है और सर्वहारा वर्ग के शोषण पर सोचने पर मजबूर कर देती हैकिरोरिमल कॉलेज में प्रोफेसर बलि सिंह ने अपनी पांच कवितायेँ साझा कीउनके नाम हैं  - ये बुश, वराह, नदियाँ और हम, छाया, एक बैल की कथाकभी हंसी के ठहाके गूंजे तो कभी वाह-वाहबलि सिंह के बैल ने खूब समां बांध दियादिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे अंग्रेजी के प्रध्यापक संजीव कौशल ने अपनी कवितायेँ सुनाईरात-दिन, राष्ट्रीय संग्रहालय (), माएं होती हैं चींटियाँ, धूल होते पिताओं के लिए और कुत्तासंजीव की कविताओं में कहीं कर्तव्यों से बंधी माँ थी तो कहीं ढाल बनते पिता, उनकी कवितायेँ सभी को पसंद आई


आज के दौर में जब अक्सर कविता की मौत की घोषणा की जाती है, या कहीं साहित्यिक गलियारों में ये बयानबाजी सुर्ख़ियों का पन्ना बनती है कि कविता मरणासन्न स्थिति में हैं, ऐसे में "कविता पाठ" जैसे आयोजन वे सुखद ठंडी बयार हैं  जो अपने साथ ये आश्वासन भी लेकर आते हैं कि कविता आज भी सभी के दिलों में राज करती हैऔर इस बात के साक्षी बने वे सभी प्रबुद्ध सुधिजन जो इस आयोजन का हिस्सा बनने दूर दूर से त्रिवेणी कला संगम आये थेउनमें से कुछ नाम थेनीलाभ अश्क जी, रति सक्सेना, सुमन केशरी, कुमार मुकुल, विमल कुमार, आशुतोष कुमार, प्रेम चंद सहजवाला, बिनोद कुमार सिन्हा, वंदना शर्मा, जीतेन श्रीवास्तव, विवेक मिश्र, कुमार अनुपम, दैनिक भास्कर से आयीं पूजा सिंह, विपिन चौधरी, रूपा सिंह, आनंद द्विवेदी, सुदेश भारद्वाज, राघवेन्द्र अवस्थी, पूनम माटियाआदित्य दुबे, सीमा तोमर, रामेन्द्र चित्रांशी, नोरिन शर्मा, मनोज शर्मा  और अन्य लेखन की दुनिया से जुड़े बहुत से लोग वहां थे जिनकी उपस्थित उतनी ही महत्वपूर्ण थी जितने वे स्वयंलिखावट आप सभी को धन्यवाद देती है और आभार प्रकट करती है! लिखावट से जुड़े साथियों में अनीता श्रीवास्तव, राजीव वर्मा, अंजू शर्मा आदि सभी लोगों ने कविता-पाठ का आनंद उठायारति सक्सेना जी थोड़ी देर ही रहीं किन्तु उनकी उपस्थिति ने सभी का हौंसला बढ़ा दियाखचाखच भरा सभागार और तालियों की गूँज गवाह थी कि ये शाम सभी के लिए यादगार रहेगीऔर अंत में मैं पुनः जोर देती हूँ कि ऐसे आयोजनों का नियमित होना और उनका लेखन और सामाजिक सरोकारों से जुड़ना ही लिखावट का प्रमुख उद्देश्य है! जिसके लिए लिखावट और मिथिलेश श्रीवास्तव जी मुक्त-कंठ से बधाई के पात्र हैं!


योगदानकर्ता / रचनाकार का परिचय :-

अंजू शर्मा 
युवा कवयित्री हैं.दिल्ली में रहते हुए साहित्य-संस्कृति के कई बड़े संगठनों से जुडी हुई है. कविता रचना के साथ ही आयोजनों की अनौपचारिक रिपोर्टिंग के अंदाज़ के साथ चर्चा में हैं.प्रिंट मैगज़ीन के साथ ही कई ई-पत्रिकाओं में छपती रही है.वर्तमान में मैं अकादमी ऑफ़ फाईन आर्ट्स एंड लिटरेचर के कार्यक्रम 'डायलोग' और 'लिखावट' के आयोजन 'कैम्पस में कविता' से बतौर कवि और रिपोर्टरएक और पहचान है.
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