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फरवरी के 'डायलोग' की विस्तृत रपट

 'अकादमी ऑफ़ फाईन आर्ट्स एंड लिटरेचर' के कार्यक्रम
 "डायलोग" (25 /2 /2012 ) की विस्तृत रपट

 कल शाम  अकादमी ऑफ़ फाईन आर्ट्स एंड लिटरेचर (सार्क राईटर्स की एक मान्यता प्राप्त संस्था)  के कार्यक्रम "डायलोग" का आयोजन ४/६ सिरीफोर्ट इनस्ट. एरिया, नयी दिल्ली में किया गया! यह कार्यक्रम हर बार की तरह महीने के आखिरी शनिवार को आयोजित किया गया!  अकादमी की संरक्षक सुश्री अजित कौर हैं और श्री मिथिलेश श्रीवास्तव, जिनका जीवन मानो कविता को समर्पित है, इसके मुख्य संयोजक हैं! इस काव्य-संध्या पर नौ कवियों ने काव्य पाठ किया, जिनमें कई सम्मानित और वरिष्ठ कवियों ने कवितायेँ सुना कर कार्यक्रम की सार्थकता में चार चाँद लगा दिए!  कार्यक्रम के प्रारंभ में मिथिलेश श्रीवास्तव जी ने कार्यक्रम के स्वरुप पर प्रकाश डाला और कविता के प्रचार-प्रसार के प्रति प्रतिबद्ध, मिथिलेश श्रीवास्तव जी ने समकालीन कविता के महत्त्व पर अपने विचार रखे और ये उम्मीद जताई कि कविता और श्रोताओं के बीच सेतु का काम कर रहे इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोग कविता का भरपूर आनंद उठाएंगे!  कार्यक्रम की अध्यक्षता का अनुरोध वरिष्ठ कवि श्री त्रिनेत्र जोशी जी ने स्वीकार किया!

कार्यक्रम को दो सत्रों में विभाजित किया गया!  कार्यक्रम का प्रारंभ महाकवि निराला जी की सुप्रसिद्ध रचना 'वर दे, वर दे, वीनावादिनी वर दे" से हुआ! श्री विनोद कुमार सिन्हा ने स्वरचित धुन में इसे इतने मधुर स्वर में गया कि सभी झूम उठे और सभी ने उनके स्वर में स्वर मिला कर आनंद उठाया!  ये निश्चित भी किया गया कि अब से 'डायलोग' की शुरुआत इसी गीत द्वारा की जाएगी! कार्यक्रम का सञ्चालन भार संभाला था आलोचक एवं चिन्तक श्री विक्रम सिंह जी ने!  प्रथम सत्र के प्रारंभ में मुंबई से आये युवा कवि स्वप्निल तिवारी ने अपनी दो कवितायेँ 'मछलियाँ' और 'सड़क' सुनाई!  उन्होंने अपनी उम्र से कहीं ज्यादा गहराई का परिचय दिया और सहज किन्तु अर्थवान कवितायेँ सभी को सुनाई!  इसके बाद कार्यक्रम में हिस्सा लेने कुरुक्षेत्र से आये कवि श्री सुबेसिंह सुजान, जिन्हें हम लोग सुजान कवि के नाम से जानते हैं, ने अपनी दो ग़ज़लें महफ़िल के नज़र कीं!  ग़ज़लें बहुत ही उम्दा थी, सभी को पसंद आई और बार-बार की फरमाईश आती रही, उन्होंने कुछ शेरों को श्रोताओं की मांग पर फिर से दोहराया!  इसके बाद डॉ. विनोद खेतान ने, जिनके काव्य-संग्रह का नाम है 'बार-बार यायावर'  अपनी दो कवितायेँ 'समुद्र' और 'बार-बार यायावर' सुनाई!  पेशे से एक चिकित्सक होते हुए भी विषय पर उनकी गंभीर पकड़ और संवेदनशीलता ने सभी को हतप्रभ कर दिया! कवितायेँ सभी द्वारा सराही गयीं! 

उनके बाद डॉ. उमेश चौहान ने, जिनके 'गांठ में बांध लूँ थोड़ी चांदनी', 'दाना चुगते मुर्गे" और 'जिन्हें डर नहीं लगता' नामक तीन काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, अपनी २ कवितायेँ सभी से साझा की! यह थी 'दाना चुगते मुर्गे' और एक नयी कविता 'जनतंत्र का अभिमन्यु'!  उल्लेखनीय है उमेश जी की कवितायेँ वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा कटाक्ष करती हैं, मानीखेज बिम्बों के माध्यम से वे जब कविता में अपने विचार प्रकट करते हैं तो श्रोता एक गहरी सोच में डूबते हुए भी उन्हें सराहता रहता है!  यही उनकी कविताओं की विशेषता है!  उनके बाद श्री विनोद कुमार सिन्हा जी ने जिनका एक ग़ज़ल संग्रह "मोरपंख' शीघ्र ही आने वाला है, अपने चिर-परिचित अंदाज़ में दो कवितायेँ सुनाई, पहली कविता थी 'तारे' जिसमें वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को ख़ूबसूरती से अद्भुत बिम्बों के माध्यम से उकेरा गया था और दूसरी कविता थी 'आत्म-मुग्ध' जिसमें शहरी जीवन पर एक कटाक्ष के रूप में कवि ने सभी को गहरी संवेदना से भर दिया!  दोनों ही कवितायेँ बहुत सराही गयीं!  

उनके बाद मिथिलेश श्रीवास्तव जी ने काव्य पाठ किया, अपनी सधी हुई आवाज़ में उन्होंने अपने काव्य-संग्रह 'किसी उम्मीद की तरह" से 'दुःख' नामक कविता सुनाई!  कूड़ा बींनने वाली एक लड़की के माध्यम से उन्होंने निम्नवर्गीय जीवन की जीती जगती तस्वीर को सभी के सामने रख दिया, एक अन्य कविता उन्होंने अपने प्रतीक्षित संग्रह से भी सुनाई जिसका शीर्षक था 'स्थायी पता', अपने मूल स्थान से निकल कर आये और अन्य शहरों में बसे लोगों की व्यथा यहाँ मुखर हुई जो सदा ही अपने स्थायी पते की तलाश में रहते हैं!  मिथिलेश जी सहज और सरल शब्दों के माध्यम से बहुत ही मामूली नज़र आने वाली बातों या घटनाओं को जब शब्द-रूप देते हैं तो कविता एक आम आदमी के मौन को मुखर करती प्रतीत होती है!  

उनके पश्चात पंजाबी भाषा के वरिष्ठ कवि श्री बलबीर माधोपुरी, जिन्हें ढेरो सम्मानों द्वारा नवाज़ा जा चुका है, ने अपनी पंजाबी कवितायेँ सभी को सुनाई!  इनके तीन काव्य-संग्रह "बिरख", "भगता पाताल' और 'मेरी चोह्न्वी कविता' पंजाबी भाषा में प्रकाशित हो चुके हैं!  उन्होंने अपनी दो कवितायेँ 'मेरा बुजुर्ग' और 'माँ मेनू दसदी है (माँ मुझे बताती है)" सभी को सुनाई, कवितायेँ पंजाबी में होते हुए भी सभी के दिल को छू गयीं! उनके बाद वरिष्ठ और लोकप्रिय कवि लीलाधर मंडलोई जी ने अपनी एक लम्बी कविता 'भगवान विष्णु की मृत्यु का सपना' सुनाई, इस कविता में उन्होंने आधुनिक जीवन से जुडी पानी, पानी की कमी, जल प्रदूषण जैसे सभी चिंताओं को मिथकों से जोड़ते हुए बहुत ही मार्मिक वर्णन किया!  कविता सभी को बहुत पसंद आई और सोचने पर मजबूर कर दिया कि यदि अब भी मानव नहीं चेता तो  भविष्य में पानी की कमी दुनिया की सबसे बड़ी समस्या होगी!  कार्यक्रम के अध्यक्ष और वरिष्ठ कवि श्री त्रिनेत्र जोशी जी ने अपनी 'दुस्साहस' एवं एक अन्य कविता सभी को सुनाई!  दोनों ही कवितायेँ बहुत अच्छी थी और श्रोताओं को सहज संप्रेषित हो कर भाव विभोर कर गयीं! सभागार तालियों से गूंज उठा!

इसके बाद द्वितीय सत्र की शुरुआत में विनोद कुमार सिन्हा जी ने अपनी एक ग़ज़ल सुनाई, सुजन कवि ने भी २ गज़लें सुनाई, स्वप्निल तिवारी ने भी एक ग़ज़ल सभी से साझा की,  उमेश चौहान जी ने 'बेटी से बहु बनने जाती लड़की' कविता  और एक प्रेम गीत सभी को सुनाया!  साथी कवियों और श्रोताओं की मांग पर बहु-प्रतिभशाली कवि ने अपनी एक अवधी कविता भी सभी को सुनाई तो वाह-वाह की ध्वनि से सभागार गूंज उठा!  बलबीर माधोपुरी जी ने अपनी दो कवितायेँ 'उसने केहा (उसने कहा) और 'मेरे बुजुर्ग' नामक दो पंजाबी रचनाएँ सुनाई!  द्वितीय सत्र में मिथिलेश श्रीवास्तव जी ने 'मेरी दीवार' और लीलाधर मंडलोई जी ने 'घोडानक्कास' और एक अन्य प्रेम कविता सुना कर सभी को मन्त्र-मुग्ध कर दिया!  त्रिनेत्र जोशी जी ने अपनी तीन लधु कवितायेँ 'अहसास', 'छोडो भी' और 'पहले की तरह' सुना कर सभी का दिल जीत लिया!  अंत में मनोज कुमार सिन्हा जी के धन्यवाद संभाषण द्वारा कार्यक्रम का समापन हुआ!  मैं विशेष रूप से कहना चाहूंगी कि विक्रम सिंह ने बड़ी ही कुशलता द्वारा मंच सञ्चालन किया और अपनी विनोद-शैली द्वारा सभी को हंसाते रहे, साथ ही समकालीन कविता पर बड़ी ही गंभीरता से अपने विचारों द्वारा सभी को अवगत भी करते रहे!  सभी सुधि श्रोतागण जिनमें सुश्री अनीता श्रीवास्तव, मनोज कुमार श्रीवास्तव, श्री कुमार मुकुल, श्री महेंद्र सिंह बेनीवाल, सुश्री ओमलता और अन्य काफी लोग थे, कवियों का उत्साह बढ़ाते रहे और तन्मय होकर इस काव्य संध्या का आनंद उठाते रहे!  इस यादगार शाम को सभी लोग कभी नहीं भूल पाएंगे!  

योगदानकर्ता / रचनाकार का परिचय :-

अंजू शर्मा 
युवा कवयित्री हैं.दिल्ली में रहते हुए साहित्य-संस्कृति के कई बड़े संगठनों से जुडी हुई है. कविता रचना के साथ ही आयोजनों की अनौपचारिक रिपोर्टिंग के अंदाज़ के साथ चर्चा में हैं.प्रिंट मैगज़ीन के साथ ही कई ई-पत्रिकाओं में छपती रही है.वर्तमान में मैं अकादमी ऑफ़ फाईन आर्ट्स एंड लिटरेचर के कार्यक्रम 'डायलोग' और 'लिखावट' के आयोजन 'कैम्पस में कविता' से बतौर कवि और रिपोर्टरएक और पहचान है.
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