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कविताएं समय को रचती हैं,समय में हस्तक्षेप करती हैं

कौशल किशोर

हिन्दी और विश्व की तमाम भाषाओँ के सच्चे कवि अपने समय की सच्चाइयों से सीधी मुठभेङ़ करते हैं। ऐसे कवियों की कविताएं अँधेरे समय में भी रास्ता दिखाती हैं। वे आम जन को विकल्पहीन स्थितियों के बीच भी विकल्प के लिए प्रेरित करती हैं। हिन्दी में नागार्जुन, केदार, मुक्तिबोध, धूमिल, गोरख, वीरेन डंगवाल की कवितायेँ हमें समय की सच्चाइयों से रू -ब -रू कराने के साथ -साथ विकल्प की ओर भी इशारा करती हैं। इसी मायने में वे प्रतिरोध के स्वर को भी मुखर करती हैं।

यह विचार कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर ने जन संस्कृति मंच की ओर से लेनिन पुस्तक केन्द्र, लखनऊ में आयोजित ‘समय को रचती, समय में हस्तक्षेप करती’ के अन्तर्गत कविता पाठ व संवाद कार्यक्रम का उदघाटन करते हुए व्यक्त किये। कार्यक्रम 13 अप्रैल 2014 को हुआ जिसके मुख्य अतिथि इलाहाबाद से आये ‘समकालीन जनमत’ के प्रधान संपादक व कवि रामजी राय थे। यहां पढ़ी गई कविताओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि कौन कहता है आज विकल्प नहीं है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कथाकार व ‘निष्कर्ष’ के संपादक गिरीशचन्द्र श्रीवास्तव ने की। उनका कहना था कि समय से जुड़ी कविताएं ही सर्वकालिक होती हैं। इस संदर्भ में उन्होंने वामिक जौनपुरी की ‘भूका बंगाल’ व नागार्जुन की ‘अकाल और उसके बाद’ कविता की खासतौर पर चर्चा की।

इस मौके पर रामजी राय ने ‘यूरेका हंसी यूरेका रुलाई’ तथा ‘दादी मां’ कविताएं सुनाई। चन्द्रेश्वर ने अपनी तीन कविताओं का पाठ किया। अपनी कविता ‘हमारा नहीं कोई मसीहा’ के माध्यम से कहा ‘नरेन्द्र मोदी हो या राहुल गाँधी/ या कोई और/हमारा मसीहा नहीं कोई भी /इस विपदा में/ सब के सब मोहरे हैं/ बदलते वक्त की सियासत के/अब और कितना छला जा सकता है हमें !’ पूंजी के क्रूर खेल ने आम जन के जीवन और देश को नष्ट किया है, चन्द्रेश्वर ने इसे उजागर करती ‘यह देश मेरा है’ और ‘लुढ़कना और उठना’ कविताएं सुनाई जिन्हें काफी पसन्द किया गया। 

कार्यक्रम की विशेषता कवयित्रियों का कविता पाठ था। डॉ उषा राय, प्रज्ञा पाण्डेय, विमला किशोर, इंदू पांडेय, कल्पना पांडेय आदि ने न सिर्फ अपनी कविताओं के माध्यम से स्त्री पीड़ा को व्यक्त किया बल्कि महंगाई, भ्रष्टाचार, धर्म व जाति भेद जैसी  समस्याओं को भी उठाया। इन कविताओं की विविधता गौर तलब है। उषा राय ने ‘पत्थर की आंखें’, ‘उसका होना’, मेरी लड़ाई’, ‘लौ’ कविताओं का पाठ किया। इनमें मन के गहरे उतरने वाला यथार्थ था। प्रज्ञा पांडेय अपनी कविताओं के माध्यम से कही गहरी संवेदना को व्यक्त किया ‘आओ न तुम पुल के पार/जैसे हर हर नदी से होकर आती छल छल धार’।

जहां विमला किशोर ‘हवाएं गर्म है’ में चुनाव की असलियत को सामने लाते हुए कहती हैं ‘चल रही है चुनाव प्रचार की आंधी/जनता के लिए नहीं/कुर्सी के लिए...... जल रहा है देश/धू धू सपने/अस्मिता खतरे में है/अयोध्या, बनारस, मेरठ, अलीगढ़, गुजरात...../और....और....मुजफ्फरनगर....’ वहीं इंदू पांडेय के लिए देश की बागडोर उनके हाथों में है जो ‘इंसान कम, तानाशाह ज्यादा’ हैं। वे कविता के द्वारा शासकों पर चोट करती हैं ‘तुम देश के सपनों की बलि चढ़ाते रहे/ महंगाई बढ़ाते रहे/कर ज्यादा ठोकते रहे/तुम्हें सत्ता मोह ने घेरा/टी वी पर संसद में झूठ बोलते रहे/देश देखता रहा’। अपनी समस्याओं के लिए जनता जागृत न हो, शासकों के लिए चुनौती न बन जाए, इसके लिए धर्म व जाति के आधार पर लोगो को विभाजित करना राजनेताओं का खेल बन गया है। कल्पना पांडेय इस सच्चाई को अपनी कविता ‘आओ दंगा दंगा खेलें’ में उजागर करती हैं।

उर्दू शायर तश्ना आलमी ने आम आदमी के दर्द और संघर्ष को अपनी कविता में यूं बयां किया: ‘जलते सिकम की आग बुझाने को कुछ नहीं/ बच्चे बिलख रहे हैं खिलाने को कुछ नहीं/जुम्मन अरब चले गये रोजी की फिक्र में/जैसे हिन्दोस्तां में कमाने को कुछ नहीं। वरिष्ठ कवि बी एन गौड़ ‘विप्लव बिड़हरी ने अपनी नई रचना ‘वर्तमान’ का पाठ किया। जहां वरिष्ठ कवि देवनाथ द्विवेदी ने राजनीति के चारित्रिक पतन तथा समय के साथ चीजें कैसे नष्ट की जा रही हैं, इस यथार्थ को सामने लाती कविताओं का पाठ किया। अपनी गजल के माध्यम से कहा ‘आज मयखाना ना साकी ना जाम लिखो, कलम उठाओ, गजल में कोई पैगाम लिखो’। वहीं उमेशचन्द्र नागवंशी ने लोगों को सचेत किया ‘इतिहास है बताता आगे की नई राहें/वर्तमान है सिसकता मुंह मोड़ते हो काहे/मिट जाओगे जहां से अब भी अगर न चेते’।

कार्यक्रम का संचालन जसम के संयोजक व कवि कौशल किशोर ने किया। अपने संयोजकीय वक्तव्य में कहा कि आज हम जिस समय में जी रहे हैं, वह सामान्य नहीं है। यह स्त्री विरोधी, किसान विरोधी या कहा जा सकता है कि यह मनुष्य विरोधी है। आज हम सभी इन स्थितियों से मुक्त होना चाहते है। मनुष्य का संघर्ष इसी के लिए है। आज की कविताएं आम लोगों की इसी भावना को अभिव्यक्त करती हैं। समय को बदलना ही आज कविता का संघर्ष है। कौशल किशोर ने अपनी कविता ‘जनता करे, तो क्या करे’ कविता सुनाई।कार्यक्रम में रोशन प्रेमयोगी, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, के के शुक्ला, के पी यादव, सूरज प्रकाश, अमित सिंह, राजू आदि श्रोता के रूप में मौजूद थे।

कौशल किशोर एफ - 3144, राजाजीपुरम, लखनऊ - 226017,मो 9807519227

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