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अदृभुत जिजीविषा के धनी औंकारश्री लम्बे समय तक अपने रोगों से लड़ते रहे।

उदयपुर

राजस्थानी और हिन्दी भाषा के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकार औंकार पारीक और डॉ. विश्वंभर व्यास के निधन पर राजस्थान साहित्य अकादमी कार्यालय में श्रद्धांजलि अर्पित की गई। हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. नंद चतुर्वेदी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि - औंकारश्री से पहली मुलाकात अकादमी के कार्यकर्ता के रूप में ही हुई थी। बाद में वे उदयपुर के स्थाई निवासी हो गए। औंकारश्री की मृत्यु राजस्थानी तथा हिन्दी दोनों भाषाओं और साहित्य के लिए गम्भीर क्षति है। औंकारश्री की साहित्यिक सेवाएं बहुआयामी है। उन्होंने जमकर पत्रकारिता की। औंकारश्री कवि भी थे और उनकी कविता का एक छोटा महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी प्रकाशित हुआ है। मुझे उनके सबसे महत्वपूर्ण अवदान का समर्पण करते हुए ब्रिटिश हाई कमीश्नर लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अभिनंदन ग्रन्थ ‘सृष्टि की दृष्टि’ का स्मरण आता है। अपने अस्वस्थ के बावजूद औंकारश्री ने यह ग्रन्थ एक साधक की तरह ही सम्पादित किया। अदृभुत जिजीविषा के धनी औंकारश्री लम्बे समय तक अपने रोगों से लड़ते रहे। इस बीच की उन्होंने अपने साहित्यकारों मित्रों का हमेशा आदरपूर्वक स्मरण किया। ऐसे राजस्थानी हिन्दी के साहित्यकार कवि श्री औंकारश्री को मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। डॉ. विश्वंभर व्यास महाराणा भूपाल नोबल्स कॉलेज में हिन्दी प्राध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने हिन्दी के मेधावी उपन्यासकार कवि डॉ. रांगेय राघव पर अपना शोध कार्य किया और विद्यावाचस्पति की उपाधि ग्रहण की। डॉ. विश्वम्भर व्यास अत्यधिक आधुनिक विचारों के विद्धान थे। कम्प्युटर संबंधी उनका ज्ञान उल्लेखनीय है और वे सम्प्रेषण के इस आधुनिक यंत्र के मुखर प्रशंसक थे। बहुत कम साहित्यकारों को यह मालूम हो कि डॉ. व्यास आधुनिक शैली के ख्यातनामा चित्रकार थे। गत वर्ष मेरी वर्षगांठ पर उन्होंने मुझे अपनी चित्रशैली के रोमांचक चित्र भेंट किए। विश्वम्भर व्यास अंत तक अपने मँुह के कैंसर से लड़ते रहे और उस पर विजय हासिल की। मुझे यह विश्वास भी नहीं हुआ कि हमारे नगर के साहित्याकाश से दो नक्षत्र इस तरह सहसा विलुप्त हो जाएंगे। मैं भाई विश्वम्भर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

प्रो0 नवल किशोर ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि एक साथ हमारे दो मित्रों का जाना उदयपुर के साहित्यकारों के लिए एक गहरा आघात है। औंकारश्री उदयपुर में साहित्य अकादमी के सहायक सचिव के रूप में आए थे। उन्होंने न केवल अकादमी कर्मचारी के रूप में बल्कि राजस्थानी के लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकार के रूप में जो जगह बनायी, वह गौरव का विषय है। हिन्दी में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। डॉ. व्यास ने हिन्दी के एक आलोचक के रूप में योगदान तो दिया ही, एक कलाकर्मी के रूप में भी अपनी जगह बनाई। अपनी लम्बी बीमारी के बावजूद वे निरन्तर सृजनशील बने रहे, यह कम विस्मय की बात नहीं है। अकादमी उपाध्यक्ष श्री आबिद अदीब ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि - श्री औंकारश्री और डॉ. विश्वम्भर व्यास दोनों मूर्धन्य साहित्यकारों का एक ही दिन इस संसार को छोड़ जाना साहित्य जगत के लिए बड़ी दुखद घटना है। ये दोनों लेखक लम्बे समय तक साहित्यिक सेवा में अपने जीवन के मूल्यवान क्षण अर्पित करते रहे। श्री औंकारश्री से तो 46 वर्षों से मेरे संबंध रहे है। उन्होंने लेखन को ही अपना जीवनकर्म बना लिया था और इसी में वे कष्ट और संघर्ष झेल कर ही सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहें। वास्तव में ये दोनों साहित्यकार खुश मिजाज, मिलनसार और प्रगतिशील विचारक और चिन्तक थे। साहित्य जगत सदैव उन्हें स्मरण करता रहेगा। 

प्रख्यात व्यंग्यकार व अकादमी के पूर्व सचिव डॉ. लक्ष्मीनारायण नंदवाना ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि - श्री औंकार पारीक राजस्थान साहित्य अकादमी में सहायक सचिव थे और मैं भी उस समय सहायक सचिव था। हम दोनों उस समय साहित्य के संवर्धन बढ़ाने के लिए कार्यरत थे। राजस्थानी और हिन्दी के विद्वान साहित्यकार औंकार पारीक ने राजस्थानी अकादमी और साहित्य अकादमी की बड़ी सेवाएं की। डॉ. विश्वम्भर व्यास सुप्रसिद्ध आलोचक रहे हैं और उनसे घनिष्ठ संबंध रहे। उस समय साहित्यिक वातावरण सौहार्दपूर्ण रहा है, जिसमें इनका महत्वपूर्ण योगदान था। डॉ. लोककलाविद् डॉ. महेन्द्र भाणावत ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि - श्री औंकारश्री हिन्दी और राजस्थानी के ऐसे शब्द-शिल्पी थे जिन्होंने अपनी निजी शब्दावली से अलग पहचान बनायी। उन्होंने कई नये अल्प और अजान साहित्यकारों की खोज कर नई पहचान दी। वे मुख्यतः अभिनंदन ग्रन्थों और स्मृति ग्रन्थों के सम्पादन के लिए भी याद किये जाते रहेंगे। डॉ. विश्वंभर व्यास पहले व्यक्ति थे जिन्होंने रांगेय राघव के जीवन और काव्य पर शोधप्रबंध लिखा और पहली बार उदयपुर विश्व विद्यालय से पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। वे अच्छे समीक्षक और सर्वथा नयी जानकारियों से जुड़े रहते थे। उन्होंने कई साहित्यकारों के अपने ढं़ग से साक्षात्कार लिए । चित्रकला के क्षेत्र में भी उन्होंने अपने अनूठे चित्रों से अलग पहचान दी।

अकादमी सचिव  डॉ. प्रमोद भट्ट ने श्री औंकार पारीक को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि श्री पारीक का प्रारम्भिक काल राजस्थान साहित्य अकादमी का रहा। सन् 1982 में वे राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति अकादमी के उप सचिव बने और यही से सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए। श्री पारीक हिन्दी और राजस्थानी भाषा के अधिकृत विद्वान थे और उन्होंने अपना जीवन हिन्दी और राजस्थानी भाषा के विकास और संवर्धन के लिए समर्पित कर दिया। डॉ. व्यास को श्रद्धांजलि देते हुए अकादमी सचिव ने कहा कि श्री व्यास श्रेष्ठ साहित्यकार होने के साथ-साथ उत्कृष्ट चित्रकार भी थे। इस अवसर पर अकादमी कार्यालय के सर्वश्री दुर्गेश नंदवाना, जयप्रकाश भटनागर, विष्णु पालीवाल, रामदयाल मेहर, रमेश कोठारी, दिनेश अरोड़ा आदि ने श्रद्धांजलि अर्पित की।

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