नई दिल्ली: 21 जून 2013
पिछले एक दशक से जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हिंदी के वरिष्ठ आलोचक और प्राध्यापक डॉ. शिव कुमार मिश्र के निधन पर जन संस्कृति मंच हार्दिक शोक संवेदना व्यक्त करता है। प्रगतिशील जनवादी साहित्य और वैचारिकी पर चौतरफा हमले के दौर में पिछले दो दशक में उन्होंने जनवादी लेखक संघ की कमान संभाल रखी थी। 2003 में जलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने से पहले 1992 से लेकर 2003 तक वे जलेस के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे।
कानपुर में 2 फरवरी, 1931 को जन्मे प्रो. शिवकुमार मिश्र करीब दो सप्ताह से बीमार थे। उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी। सरदार पटेल के गाँव करमसद के एक अस्पताल में उनका इलाज हो रहा था, जो गुजरात के वल्लभ विद्यानगर के पास है, जहां उनके जीवन का लंबा समय गुजरा। तबीयत अधिक खराब होने पर उन्हें अहमदाबाद ले जाया गया था, जहां उन्होंने आखिरी सांसें लीं। आपातकाल के बाद जिन लोगों ने नए सिरे से साहित्यकारों को संगठित करने की जरूरत महसूस करते हुए जलेस का निर्माण किया था, शिवकुमार मिश्र उनमें से एक थे। आज जबकि पूरे देश में ही एक तरह से अघोषित आपातकाल जारी है और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले आंदोलनकारियों और साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों पर शासकवर्ग निरंतर हमले कर रहा है, जब चौतरफा राजनीतिक अवसरवाद जारी है, तब उसके खिलाफ प्रगतिशील-जनवादी रचनाकारों और बुद्धिजीवियों द्वारा व्यापक एकता बनाते हुए संघर्ष करना ही शिवकुमार मिश्र जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस लड़ाई में परंपरा से हरसंभव मदद लेनी होगी, जो कि खुद शिवकुमार मिश्र के आलोचनात्मक लेखन की पहचान रही है। नए पीढ़ी की रचनाशीलता के साथ संवाद बनाए रखने और हिंदी की प्रगतिशील-जनवादी कविता के साथ अपने आलोचक की गहरी अंतरंगता के लिए भी उन्हें याद रखा जाएगा। खासकर नागार्जुन की कई कविताएं हमेशा उनकी जुबान पर रहती थीं।
साहित्य के सत्ता केंद्र दिल्ली से शिवकुमार मिश्र की प्रायः दूरी ही बनी रही। 1976 में उनकी पुस्तक ‘मार्क्सवादी साहित्य चिंतन: इतिहास तथा सिद्धांत’ पर उन्हें सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार मिला था। साहित्य चिंतन की यह एकमात्र किताब है, जिस पर किसी को यह पुरस्कार मिला। उनकी प्रसिद्ध आलोचनात्मक कृतियों में ‘नया हिंदी काव्य’, ‘यथार्थवाद’, ‘प्रगतिवाद’ , ‘प्रेमचंद: विरासत का सवाल’, ‘रामचंद्र शुक्ल और आलोचना की दूसरी परंपरा’, ‘दर्शन, साहित्य और समाज’, ‘साहित्य और सामाजिक संदर्भ, ‘मार्क्सवादी साहित्य चिंतन: इतिहास और सिद्धांत’, ‘भक्ति काव्य और लोकजीवन’, ‘मार्क्सवाद देवमूर्तियां नहीं गढ़ता’ आदि मुख्य हैं। शिवकुमार मिश्र एक अच्छे वक्ता थे और साहित्यप्रेमियों के साथ साथ विद्यार्थियों में भी काफी लोकप्रिय थे। शिवकुमार मिश्र जी को जन संस्कृति मंच की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि!
सुधीर सुमन
राष्ट्रीय सहसचिव, जन संस्कृति मंच द्वारा जारी
संपर्क- 09868990959
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