कार्यक्रम की अध्यक्षता-अपनी मैथिली कविताओं के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित-डा.शेफाली वर्मा ने की।उन्होंने इस अवसर पर ,मैथिली भाषा की कई भाव-पूर्ण कविताओं का पाठ किया। अपनी मैथिली कविता’हाँ!हम नारी छै’ में उन्होंने नारी-जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं को बडी ही भावुकता से छुआ।शेफाली जी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा-कि नारी में अपार शक्ति है। उसे अपनी शक्ति को पहचानना होगा। पति-पत्नि का रिश्ता स्नेह का है।यदि वे एक-दूसरे के अधीन है भी तो आपसी स्नेह के कारण हैं।धीरे-धीरे नारी में चेतना आ रही है।सवाल यह भी है कि आज नारी, किससे मुक्ति चाह रही है? पुरुष से या इस दकियानूसी समाज से।दर-असल नारी को अपनी जड़ता से मुक्ति लेनी होगी,तभी वह आगे बढ पायेगी।
महिलाओं पर केन्द्रित पत्रिका’बिदिंया’की सम्पादक-गीताश्री को विशेष अतिथि के रुप में आमंत्रित किया गया था।आज के संदर्भ में महिला-दिवस मनाये जाने की प्रासांगिकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा-कि जब आप अपना जन्म-दिन मनाना नहीं भूल सकते तो महिलाएं अपने आप को कैसे भूल सकती हैं?आज के इस प्रदूषित वातावरण में,हमें आने वाली पीढी को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करना हैं-इसलिए महिला-दिवस मनाये जाने की आवश्यकता है।उन्होंने इस अवसर पर-‘एक बेहत्तर सुबह के इंतजार में’शीर्षक से कविता भी पढी।
कवियित्रियों में-लक्ष्मी भारद्वाज,वाजदा खान,ममता किरण,मनीशा कुलश्रेष्ठ,रुपा सिंह,विपिन चौधरी,इन्दु श्री,शोभना मित्तल,मृदुला शुक्ला,वंदना गुप्ता,अर्चना गुप्ता,कनुप्रिया,ओमलता शाक्या व पूनम माटिया ने अपनी कविताएं पढीं।अमृत बीर कौर ने Unwritten Poem(अलिखित कविता) तथा Woman(औरत) शीर्षक से अपनी अंग्रेजी कविताएं पढीं।कवियों में शामिल थे-कार्यक्रम के संयोजक श्री मिथिलेश श्रीवास्तव,नार्वे में बसे अप्रवासी भारतीय श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल,विनोद कुमार सिन्हा,शारिक आसिर,अजय-अज्ञात,भरत कुलश्रेष्ठ,उपेन्द्र कुमार व विनोद पाराशर।
कार्यक्रम का संचालन श्रीमती ओम लता जी ने किया।लगभग तीन घंटे तक चली यह बहु-भाषी काव्य-गोष्ठी बीच-बीच में श्रोताओं को नीरस भी लगने लगी। कवि-कावियित्रियों की अधिक संख्या होने के कारण संचालक ने पहले ही आग्रह किया था कि प्रत्येक कवि अपनी केवल एक ही रचना सुनाये ताकि सभी को सुनने का अवसर मिल सके। इस आग्रह को दर-किनार करते हुए-कुछ कवियों ने अपनी कई-कई कविताएं श्रोताओं को जबर्दस्ती सुनायीं। एक महाशय तो एक कविता के नाम पर-पूरा का पूरा खण्ड-काव्य ही सुनाकर माने। परिणाम-स्वरुप कुछ अच्छे कवि/कवियित्रियों को श्रोता सुनने से वंचित रह गये। किसी भी कार्यक्रम की रोचकता व सफलता के लिए यह बहुत जरुरी है कि कवि/कलाकार जन-भावनाओं का सम्मान करते हुए ही अपनी कविता अथवा कला का प्रदर्शन करे तथा संचालक/आयोजक जिन नियमों की शुरु में घोषणा करे,उनपर अंत तक कायम भी रहे।
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रिपोर्ट को ’अपनी माटी’में स्थान देने के लिए आभार।
mithilesh shrivastav