सलिला संस्था का 7 दिवसीय राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन का समापन
13 अक्टूबर,2012
स्थानीय साहित्यिक संस्था सलिला व राजस्थान साहित्य अकादमी के द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्टीय बाल साहित्यकार सम्मेलन के प्रथम दिन रावली पोल में आयोजित विराट कविसम्मेलन में अर्द्ध रात्रि तक राष्टीय कवियों व कवयित्रियों ने अपनी कविता, गीत व ग़ज़लों से समां बांधा। कवि सम्मेलन के पूर्व मुख्य अतिथि कोलकोता से आये श्री संजय शास्त्री , अध्यक्ष श्री सत्यदेव सवितेन्द्र, विशिष्ट अतिथि दिनेश शास्त्री श्री मदन मदिर व श्रीमती सुषमा चौहान ने हाड़ी रानी की प्रतिमा के समक्ष पुष्पाजंलि अर्पित की। कविसम्मेलन का शुभारंभ उदयपुर की कवयित्री श्रीमती शकुन्तला सरूपरिया ने सुमधुर स्वरों में किया। कविसम्मेलन में वरिष्ठ गीतकार किशन दाधीच ने एक भिखारी बालक के दुख से जुडे़ मार्मिक गीत से सभी की आंखों को नम कर दिया। वहीं बूंदी से आये श्री मदन मदिर ने आक्रमे अन्दाज़ में समय का चक्र नामक कविता में बताया कि युग और युग के लोग कितने बदल गये हैं।
कवि अंजीव अंजुम ने गीत मां को समर्पित किया - सुख दुख की सहेली लगे, मां को चेहरा पहेली लगे, चूमती है वो जब मेरा माथा, वो दुआओं की थैली लगे। जिसे सबने सराहा। उदयपुर से आये कवि सत्यम उपाध्याय ने वीर रस से ओत प्रोत मुक्तक व छन्द पेश किये। श्रीमती हेमलता दाधीच ने देशभक्ति गीत सरहद पे जा रहा हूं दुश्मन को मिटाने , मां की लाज बचाने , गीत गा कर की ख़ूब तालियां पाईं। कवयित्री सुषमा चौहान ने नारी के नये तेवर पर अपनी कविताएं पढी। जयपुर से आये युवा कवि नीरज शर्मा ने मुक्तक व गीत पढे़। संचालन कर रही शकुन्तला सरूपरिया ने राजस्थानी गीत प्यारा म्हारा साजनिया सरताज व बेटी चंदनी गीत सुमधुर स्वरों में सुनाया। आषा पांडे ओझा,ख़ामोश क़लमष् पल्लव मासूम ,सुशील जोशी व अन्य कवियों ने भी काव्य पाठ किया; आरंभ में सलिला की संस्थापक डॉ. विमला भंडारी ने सभी का स्वागत किया।
13 अक्टूबर,2012
पत्रवाचन सत्र
प्रातः 10.30 बजे आज का प्रथम सत्र द्वितीय पत्रवाचन से प्रारंभ हुआ। डॉ. अनुजा भट्ट ने बाल साहित्य: तब और अब विषय पर अपना शोधपत्र पढ़ा। अपने विस्तृत शोधपत्र में इस बात को रेखाकिंत किया कि भारतीय बाल साहित्य की पुस्तक विदेशी पुस्तको से कतई कम नहीं है। हमारे देश के सुसाहित्य के माध्यम से बालकों का सर्वांगीण विकास संभव है। आत्म प्रशंसा से कहीं ज्यादा जरूरी है कि हम अपनी जिम्मेदारी को समझे।
परिचर्चा के दौरान डॉ. विभा शुक्ल ने इसकी व्याख्या करते करते हुए एक कहानी सुनाई। डॉ. जाकिर अली ‘रजनीश’ ने अपनी कहानियों के माध्यम से पत्र को स्पष्ट किया। शकुंतला सरूपरिया ने बालको को बाजार से अच्छा साहित्य उपलब्ध करने की बात कही। हेमलता दाधीच ने देशभक्ति के गीतों से इसे जोड़ने पर बल दिया। अंजीव ‘अंजुम’, प्रहलाद पारीक आदि साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये। मुख्य अतिथि सुषमा चौहान ने अनुजा भट्ट के पत्र की प्रशंसा की। शिशुगीतों के माध्यम से बालकों में संस्कार भरने की बात कही। माताएं अगर साहित्य के प्रति सजग रहे तो निश्चित रूप से इसका बालकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. भैरूलाल गर्ग ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में पत्र के विषय की विशद व्याख्या करते हुए बताया कि बाल साहित्य क्या है? हम किसी निश्चित निष्कर्ष पर तो नहीं निकल सकते कि बाल की उम्र क्या हो? ये भी भ्रामक है पर पत्रिकाओं में मुद्रित कविताएं आयुवर्ग के अनुरूप होनी जरूरी है। ऐसी स्थिति में प्रथम सीढ़ी के रूप में शिशु गीत के रूप् में होगा। उसके बाद बालगीत, बालकहानी होगी। बाल साहित्य में अन्य विधाएं भी समाहित होनी चाहिए। ऐसे आयोजन का बड़ा महत्व है। अतः समय समय ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए।
सूचनात्मक बाल साहित्य: तलाश नई संभावनाओं की विषय पर दूसरे सत्र का तृतीय शोधपत्र डॉ. परशुराम शुक्ल द्वारा पढ़ा गया। जिसमें उनहेंने ये सवाल उठाया कि ऐसा क्या है जो बाल साहित्य में लाना जरूरी है? आज परियों की कथा, रोबोट की कहानियों पर विशेष बल दिया जा रहा है। अतः हमें अपनी संस्कृति को समझने के लिए लोकसाहित्य को समझना अतिआवश्यक है। मंचासीन शिवनारायण आगाल ने विद्यालयों में बाल साहित्य बच्चों को उपलब्धकराने की कही। इस सत्र के अतथि मंडल में उदय किरौला, विष्णु भट्ट एवं दमयन्ती जाड़ावत थी। विष्णु भट्ट ने बालिकाओं की कार्यशाला चलाया जाना समाज एवं देशहित में एक अच्छाा प्रयोग बताया। सभी ने मुक्त कंठ सलिला द्वारा पिछले तीन वर्षो से निरंतर होने होने वाले इस बाल साहित्यकार सम्मेलन की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि इस निरंतरता को बनाये रखने की कामना की।
सम्मान एवं समापन सत्र:
इस वर्ष सलिला संस्था द्वारा सलूम्बर के नागरिक रहे स्वतंत्रता सैनानी औंकारलाल शास्त्री की स्मृति में 10 मूर्धन्य साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। सम्मानित होने वाले साहित्यकारों में डॉ. जाकिर अली ‘रजनीश’ लखनऊ, डॉ. भैरूलाल गर्ग भीलवाड़ा, उदय किरौला अलमोड़ा, डॉ. ज्योतिपुंज उदयपुर, डॉ. देव कोठारी उदयपुर, प्रत्यूष गुलेरी धर्मशाला, डॉ. परशुराम शुक्ल भोपाल, अंजीव ‘अंजुम दौसा, सत्यदेव ‘सवितेन्द्र’ जोधपुर, डॉ. रामनिवास ‘मानव’हिसार थे। सभी को 2100 रूपये की राशि, शॉल, प्रशस्तिपत्र, एवं माल्यर्पण कर स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। इस अवसर पर सभी अतिथि साहित्यकारों एवं सलिला संस्था द्वारा राजस्थानी भाषा, साहित्य संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष श्याम महर्षि को शॉल ओढ़ा कर सभी ने अभिनन्दन किया।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उदयपुर के सांसद रघुवीरसिंह मीणा ने सभी अतिथि साहित्यकारों का माल्यार्पण से स्वागत किया। अपने उद्बोधन में समाज छायी कुरीतियो को समाप्त करने के लिए बाल साहित्य की महत्ता को स्वीकार करते कहा कि इसमें बालिकाओं की सहभागिता प्रेरक एवं अनुकरणीय है। उन्होंने साहित्यकारों के उज्जवल भविष्य की कामना की।
इस सत्र के प्रारंभ में गजेन्द्र ‘गुलशन द्वारा संस्था गीत गाया गया। मेवाड़ महिमा के बखान करते हुए पूंजीलाल वरनोती ने स्वागत गीत प्रसतुत किया। जगदीश भंडारी ने स्वागत उद्बोधन दिया। इस अवसर पर पंडित जवाहर लाल नेहरू पर लिखी डॉ. परशुराम शुक्ल की पुस्तक का लोकार्पण किया गया। राकेश त्रिपाठी एवं पूंजीलाल वरनोती की सहभागिता को सहराते हुए संस्था ने उन्हें शॉल ओढ़ा कर सम्मानित किया। डॉ. विमला भंडारी ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया। राजस्थान साहित्य अकादमी के प्रतिनिधी रामदयाल मेहर ने धन्यवाद दिया। संचालन शकुंतला सरूपरिया ने किया। संस्था के संरक्षक नंदलाल परसारामाणी ने सभी को विदाई गीत के साथ विदाई दी।
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