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''राजस्थानी भाषा साहित्य का इतिहास राजस्थानी में लिखा जाना चाहिए।''-प्रो. सत्यनारायण व्यास

उदयपुर

14 अक्टूबर। राजस्थानी भाषा की मान्यता का सवाल राजस्थान एवं राजस्थानीयों के अस्तित्व का सवाल है। उक्त विचार व्यक्त करते हुए अकादमी अध्यक्ष श्याम महर्षि ने राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, गांधी मानव कल्याण सोसायटी एवं डा. मोहनसिंह सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के द्वारा आयोजित दो दिवसिय संभाग स्तरीय राजस्थानी साहित्यकार सम्मेलन के समापन समारोह में व्यक्त किए। अकादमी अध्यक्ष ने आगे कहा कि राजस्थानी भाषा लेखकों को दिये जाने वाले पुरूस्कारों की राशि बढ़ाई गई है। जो पुरूस्कार 15000 के थे, उनकी राशि 51000 एवं जो महाकवि सूर्यमल मीसण शिखर पुरूस्कार 25 से 71000 एवं महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ पुरूस्कार की राशि 51 हजार से 1 लाख की गई है।

हिम्मत सेठ 
राजस्थानी में लिखने की जरूरत बतलाते हुए मुख्य अतिथी राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के पूर्व अध्यक्ष डा. देव कोठारी ने कहा कि राजस्थानी भाषा साहित्य का इतिहास वे स्वयं पांच खण्डों में लिख रहे है। डा. देव कोठारी ने बताया कहा कि खेतसी सांदू ने महाभारत का राजस्थानी अनुवाद किया है जो राजस्थानी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। इसकी पाण्डूलिपी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में उपलब्ध है। 

मूंघा पामणा प्रो. ओंकारसिंह राठौड़ ने कहा कि राजस्थानी अत्यन्त मिठास एवं सम्मान के भाव की भाषा है। हमारी पीढ़ीयों का लोक शिक्षण राजस्थानी भाषा में हुआ है। ऐसी सुन्दर भाषा की संवेधानिक मान्यता आवश्यक है। राजस्थानी राजस्थान के अलावा अन्य प्रान्तों में भी बोली जाती है। महाराणा कुंभा ने रसिक प्रिया टीका राजस्थानी में लिखी। इसी तरह मेवाड़ के लेखकों ने आदिकाल से आधुनिक काल से राजस्थानी भाषा लेखन को समृद्व करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। प्रो. राठौड़ ने मीरा बाई, गुमनाम सिंह, बावजी चतुरसिंह इत्यादि की लम्बी परम्परा उदाहरणों सहित समझाई। 

माणिक  आर्य 
सत्र का संचालन डा. राजेन्द्र बारहठ ने किया तथा धन्यवाद की रस्म ट्रस्ट सचिव नंदकिशोर शर्मा द्वारा अदा की गई। इस अवसर पर अकादमी अध्यक्ष श्याम महर्षि, अकादमी सचिव पृथ्वीराज रत्नू, गांधी मानव कल्याण सोसायटी के ललित नागदा, मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के नितेश सिंह कच्छावा तथा राजस्थानी भाषा संघर्ष समिती के महासचिव डा. राजेन्द्र बारहठ को शॉल ओढ़ा कर दो दिवसीय सम्मेलन के सफल आयोजन हेतु सम्मानित किया।

‘आजादी रै पछै री आधुनिक राजस्थानी में उदैपुर संभाग री पद्य लेखन परम्परा’ विषयक डा. अरविन्द आशिया ने पत्रवाचन किया। इसी तरह से ‘उदैपुर संभाग में राजस्थानी अनुवाद री परम्परा’ विषयक पत्रवाचन डा. इन्द्रप्रकाश श्रीमाली ने किया। नाथद्वारा के माधव नागदा ने ‘उदैपुर संभाग रौ आधुनिक राजस्थानी गद्य लेखन’ विषयक पत्र वाचन किया। परचा सत्र के पाटवी प्रो. सत्यनारायण व्यास ने कहा कि राजस्थानी भाषा साहित्य का इतिहास राजस्थानी में लिखा जाना चाहिए। राजस्थानी हिन्दी से प्राचीन भाषा है। 1200 वर्षो का इतिहास एवं 10 करोड़ लोग बोलने वाले है। सत्र की अध्यक्षता डा. भगवती लाल व्यास एवं खास पामणा डा. जयप्रकाश पण्ड्या ‘ज्यातिकुंज’ एवं डा. महेन्द्र भाणावत थे। संचालन उपेन्द्र अणु एवं शिवदान सिंह जोलावास ने किया। राजस्थानी साहित्य का इतिहास राजस्थानी भाषा में वी.एल.माल ‘अशांत’ ने लिखा। सत्र का संचालन शिवदान सिंह जोलावत ने किया तथा धन्यवाद ललित नागदा द्वारा किया गया।

दो दिवसीय सम्मेलन के इस अवसर पर रात्रि को आयोजित कवि सम्मेलन का आगाज डा. राजेन्द्र बारहठ की वाणी वन्दना से हुआ तथा रामसिंह सान्दू कपासन, बनवारीलाल पारीख फतेहनगर, सोहनलाल चोधरी चित्तोडगढ़, मनोहरसिंह आशिया राजसमन्द, डा. अरविन्द आशिया, जगदीश तिवारी, शिवदान सिंह, कैलाशसिंह जाड़ावत शाहपूरा, राधेश्याम मेवाड़ी बेंगू तथा मुराद मेवाड़ी ने कविता पाठ कर भरपूर तालियां बटोरी। प्रसिद्व शायर डा. प्रेम भण्डारी, कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथी एवं प्रसार भारती के उपमहानिदेशक माणिक आर्य ने अध्यक्षता की। कवि सम्मेलन का संचालन हिम्मतसिंह उज्जवल ने किया। धन्यवाद नितेश सिंह ने अर्पित किया। डा. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल परिसर में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के सम्पूर्ण कार्यक्रमों का संयोजन डा. राजेन्द्र बारहठ, मदन नागदा तथा नंदकिशोर शर्मा ने किया।

नंदकिशोर शर्मा

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