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''जिस साहित्यकार के पास व्यंग्य दृष्टि नहीं है, वह सही अर्थो में साहित्यकार नहीं है। ''-नामवर सिंह


अगस्त का महीना हिंदी व्यंग्य के लिए अतिरिक्त लाभ का रहा है। अब तक, अधिकांशतः हिंदी व्यंग्य लेखन के दायरे तक ही सिमटा हुआ था और उसपर बातचीत का माहौल बहुत कम था। साहित्य की मुख्यधारा से उपेक्षित, आलोचकों की दृष्टि में तुच्छ, रचना के धरातल पर ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। व्यंग्य पर बातचीत दो -तीन मुद्दों पर ही सिमटी हुई थी।इस कारण, व्यंग्य के गांभीर्य स्थापित करने एवं आलोचना में उसकी उपस्थिति को रेखांकित करने के लिए कुछ रचनाकार निरंतर प्रयत्नशील थे। यह सम्मिलित प्रयास का ही परिणाम था कि हिंदी व्यंग्य पर न केवल व्यवस्थित बातचीत आरंभ हुई अपितु उसकी स्वीकार्यता भी बढ़ी। 

11 अगस्त को हिंदी अकादमी, दिल्ली ने व्याख्यानमाला श्रृंखला के अतर्गत पहला व्याख्या नही ‘व्यंग्य रचनात्मक सीमा का प्रश्न’ पर डॉ0 नामवर सिंह और राजेंद्र धोड़पकर का व्याख्यान रखा जिसका संचालन प्रेम जनमेजय ने किया। इसमें हिंदी आलोचना के आधार नामवर सिंह ने 45 मिनट व्यंग्य की व्यापकता, आवश्यक्ता, इतिहास आदि पर विस्तार से अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि 
जिस साहित्यकार के पास व्यंग्य दृष्टि नहीं है, वह सही अर्थो में साहित्यकार नहीं है। 18-19 अगस्त को हिंदी भवन भोपाल ने विष्णु प्रभाकर, भवानी प्रसाद मिश्र, भवानी प्र्रसाद तिवारी, गोपाल सिंह नेपाली के शताब्दी वर्ष के संदर्भ में, उनपर कें्िरदत सत्र आयोजित किए, वहीं 19 अगस्त को पंचवा सत्र, प्रेम जनमेजय की अध्यक्षता में हिंदी व्यंग्य का वर्तमान और संभावनाएं , विषय पर रखा। इस सत्र में नरेंद्र कोहली, सूर्यबाला, ज्ञान चतुर्वेदी, मूलाराम जोशी, श्रीकांत आप्टे, शांतिलाल जैन ने अपने विचार व्यक्त किए। हिंदी व्यंग्य के लिए 24 एवं 25 अगस्त का दिन एतिहासिक है। साहित्य अकादमी, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान एवं व्यंग्य यात्रा के सौजन्य से ‘ हिंदी व्यंग्य लेखन: कार्यशाला एवं व्यंग्य पाठ’ का आयोजन किया। इसका उद्घाटन सत्र ऐतिहासिक रहा। उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी थे, उद्घाटन भाषण डॉ0 नित्यानंद तिवारी का था एवं बीज वक्तव्य प्रेम जनमेजय का था। 

डॉ0 नित्यानंद तिवारी ने स्पष्ट घोषणा की कि हिंदी व्यंग्य ने निश्चित ही विधा का स्वरूप धारण कर लिया है और इसका आलोचना शास्त्र विकसित हो रहा है।डॉ0 विश्वनाथ त्रिपाठी ने व्यंग्य की व्यापकता और विधा के रूप में उसकी स्वीकार्यता की चर्चा की । दो दिवसीय इस आयोजन में, पहली बार हिंदी व्यंग्य की कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें 20 प्रतिभागियों और शंकर पुणतांबेकर, नरेंद्र कोहली, शेरजंग गर्ग,गौतम सान्याल,सुभाष चंदर, ने परामर्शमंडल की भूमिका निभाई। संचालन लालित्य ललित ने किया । इसके अतिरिक्त व्यंग्य पाठ सत्र में गोपाल चतुर्वेदी, सूर्यबाला, यज्ञ शर्मा, दिविक रमेश, गिरीश पंकज, अनूप श्रीवास्तव, अतुल चतुर्वेदी,लालित्य ललित आदि की रचनाओं ने व्यंग्य के रचनात्मक पक्ष को प्रस्तुत किया। 


निश्यित ही व्यंग्य की स्वीकार्यता बढ़ रही है। व्यंग्य अपने सीमित दड़बे से बाहर निकलकर एक व्यापक रूप ग्रहण कर रहा है। उपेक्षित दृष्टियां अब उसकी ओर स्नेह से देख रही है। यह एक बहुत बड़ा बदलाव है जिसे निरंतर रखने में हम सब की एकजुटता आवश्यक है।


जानी मानी लघु पत्रिका व्यंग्य यात्रा के सम्पादक 
प्रसिद्ध व्यंग्यलेखक
नई दिल्ली

Comments

व्‍यंग्‍ययाञा को लघु पञिका कैसे कहा जा रहा है श्रीमान। जहॉं तक व्‍यंग्‍य का सवाल है वह इस दौर की सबसे बड़ी पञिका है, आकार में भी और कंटेन्‍ट में भी।
lalitya lalit said…
VYANG YATRA HINDI VYANG KI EK SARTHAK PATRIKA HAY JO HINDI KE SATH SATH BHARTIYA BHASHAON KE VYANG KO BHI SAMAY SAMAY PAR PARKASHIT KAR RAHI HAY.AAJ IS KE ALAWA BHI VYANG KI KAI PATRIKAY HAY MAGAR SARAVSRESHT PATRIKAON ME VYANG YATRA KA NAAM LIYA JA SAKTA HAY.