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करुणाजनित व्यंग्य ही श्रेष्ठ है - डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी

  • नई दिल्ली
  • 24 अगस्त 2012


 ‘‘व्यंग्य में यदि करूणा के तत्व नहीं हैं तो वह बहुत दूर तक नहीं चलेगा,’’ उक्त बात प्रसिद्ध आलोचक/लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी ने हरिशंकर परसाई के लेखन का उदाहरण देते हुए साहित्य अकादेमी, उ.प्र. हिंदी संस्थान और ‘व्यंग्य यात्रा’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी और कार्यशाला में अपने अध्यक्षीय भाषण में कहीं। आगे उन्होंने कहा कि बड़े साहित्यकार पाठकों की रुचियों को बदलते हैं। आज के समय में यह बड़ी जिम्मेदारी गंभीर व्यंग्य लेखन ही उठा सकता है, क्योंकि उसमें दूसरी सभी लेखन विधाओं का प्रवेश सबसे ज्यादा है। उन्होंने कहा कि अभी पाठक ही व्यंग्य को विधा घोषित करने में लगे हैं, जबकि आलोचक तो इसे अभी एक शैली के रूप में ही देख रहे हैं।



इससे पहले उद्घाटन व्याख्यान देते हुए प्रसिद्ध आलोचक नित्यानंद तिवारी ने कहा कि कबीर आज की व्यंग्य की परिभाषा पर भी खरे उतरते हुए हिंदी साहित्य के पहले व्यंग्यकार हैं। अच्छा व्यंग्यकार वह ही हो सकता है, जो विषमता एवं अन्याय को गहराई से समझता है और भोगता है। रीतिकाल के जिस साहित्य को हम व्यंग्य की श्रेणी में डालते हैं, दरअसल वह वागवैदग्ध्य है। आगे उन्होंने स्पष्ट किया कि व्यंग्य को शैली कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि शैली हमेशा व्यक्तिगत होती है।



प्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रेमजनमेजय ने अपने बीज भाषण में कहा कि व्यंग्य लिखा तो विभिन्न स्तरों पर जा रहा है, लेकिन उस पर बातचीत नहीं हो रही है। व्यंग्य के अर्थों को हमने सीमित कर दिया है। हमें व्यंग्य का आलोचना शास्त्र बनाने की जरूरत है। व्यंग्य केवल टिप्पणियों से नहीं बनेगा बल्कि उसमें चिंतन के तत्व पडे़ बिना वह कबीर या परसाई की तरह महत्त्वपूर्ण नहीं होगा।



कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक सुधाकर अदीब ने विभिन्न उपन्यासों के उदाहरण देकर स्पष्ट किया कि समकालीन खतरों को सबसे पहले व्यंग्य ही पकड़ता है। अतः उसका महत्त्व समझे जाने की जरूरत है। साहित्य अकादेमी के सहयोग से यह कार्यक्रम कर संस्थान इसी महत्त्व को समझने की पहल कर रहा है। 



कार्यक्रम के दूसरे दिन (25 अगस्त 2012) प्रथम सत्र में प्रख्यात व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी की अध्यक्षता में अतुल चतुर्वेदी (कोटा), अनूप श्रीवास्तव (लखनऊ), कृष्ण प्रताप सिंह (फैजाबाद), गिरीश पंकज (रायपुर), दिविक रमेश (दिल्ली), यज्ञ शर्मा (मुंबई), सूर्यबाला (मुंबई), ललित लालित्य (दिल्ली) और सुधाकर अदीब (लखनऊ) ने अपनी व्यंग्य रचनाएँ प्रस्तुत की। यज्ञ शर्मा जी की रचना ‘बिना पुस्तक का विमोचन’ सूर्यबाला जी की रचना ‘अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन’, गिरीश पंकज जी की रचना ‘ई मनुष्य’, कृष्ण प्रताप सिंह की ‘जंगल की आग’ को श्रोताओं ने बेहद पसंद किया। दिविक रमेश ने अपनी कविताओं का पाठ किया। अंत में गोपाल चतुर्वेदी ने अपनी दो रचनाओं ‘विकास का चौथा पहिया’ और ‘पिनपिनाने का राष्ट्रीय शोक’ प्रस्तुत कीं।

दूसरे सत्र में दो दिवसीय व्यंग्य लेखन कार्यशाला का समापन हुआ। प्रख्यात लेखक/व्यंग्यकार नरेन्द्र कोहली के निर्देशन में संपन्न हुई इस कार्यशाला में विशेषज्ञ के तौर पर शंकर पुणतांबेकर, शेरजंग गर्ग, गौतम सान्याल और सुभाष चंदर थे। कार्यशाला का संचालन ललित लालित्य ने किया।

कार्यशाला में 16 प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमें से सात दिल्ली और नौ दिल्ली से बाहर के प्रतिभागी थे। कार्यशाला में प्रतिभागियों के सवालों के जवाब देने के साथ-साथ उनके द्वारा लिखी गई रचनाओं पर विचार-विमर्श हुआ। शंकर पुणतांवेकर जी ने कहा कि व्यंग्य लिखने से पहले समाज की तह तक पहुँचना जरूरी है, वहीं गौतम सान्याल ने कहा कि व्यंग्य में आया सारा ‘अतिरिक्त’ ही ‘अश्लील’ है। सुभाष चंदर ने जहाँ सपाट ब्यानी से बचने की सलाह दी तो कार्यशाला के निदेशक नरेन्द्र कोहली ने हास्य-व्यंग्य में फर्क समझने और उसके उचित अनुपात तथा भाषा की शुद्धता एवं अचूकता पर ध्यान देने की जरूरत पर बल दिया।
कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन उ.प्र. हिंदी संस्थान के अनिल मिश्र और ‘व्यंग्य यात्रा’ के संपादक प्रेम जनमेजय ने किया।



प्रस्तुति -
अजय कुमार शर्मा (मो. 9868228620)

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