- ‘ओल्ड वर्ल्ड’ ने दर्शकों के मन को छुआ
- (जीवन में एकाकीपन की पीड़ा को उभारा)
उदयपुर।
4 अगस्त,आज एक
पीढ़ी अपने
कैरियर और
जीवन की
भागदौड़ में
व्यस्त है।
वहीं अपने
जीवन की
संध्या की
ओर अग्रसर
कई ऐसे
लोग जो
नितान्त एकाकी
जीवन बीता
रहे है।
जो परिस्थितीवश
ऐसे मोड़
पर है,
जहाँ किसी
अपने का
साथ नहीं
है। जो
अपने थे,
वो अब
नहीं है।
या जो
अपने है
भी या
तो वे
आना नहीं
चाहते, या
व्यस्तता भरी
जिन्दगी के
चलते, उनसे
बहुत दूर
है। अकेलेपन
की इसी
पीड़ा को
बखुबी उजागर
किया नाटक
‘ओल्ड वर्ल्ड’
ने।
विद्या
भवन ऑडिटोरियम
में शनिवार
शाम ‘अलेक्सेई
आर्बुजोव’ द्वारा लिखित एवं ‘भूपेश
पण्ड्या’ द्वारा
निर्देशित नाटक ‘ओल्ड वर्ल्ड’ का
सशक्त मंचन
किया गया।
नाटक दर्शकों
में जीवन
के प्रति
एक नया
नज़रिया, एक
नई सोच
छोड़ जाता
है।नाटक बुढ़ापे
की दहलीज
पर जा
रहे, एकाकी
जीवन बिता
रहे लोगों
डॉ.
रेडियों और
लीड़िया के
हालात पर
केन्द्रित है।
अतीत
की घटनाएं,
दुर्घटनाएं अलग-अलग तरह से
उनके जीवन
पर असर
छोड़ती हे।
अतीत की
ये जकड़
ऐसी घटनाओं
को भी
आसानी से
घटने नहीं
देती, जिनसे
बची-कुची
जिन्दगी को
संवारा भी
जा सकें।
परिस्थितियाँ ऐसी बनती है, की
दोनों लड़ते
है, अपने-अपने अतीत
की जकड़
से (और
एक-दूसरे)
से भी!
और यही
जद्दोजहद अतीत
के छालों
पर मरहम
का काम
करती है,
तो भविष्य
का चेहरा
उम्मीदों से
संवरने लगता
है। यही
जद्दोज़हद बाकी जिन्दगी के सफर
में मिलकर
साथ चलने
की अहमियत
का अहसास
कराती है,
और उसे
हकीकत में
बदलने का
साहस भी
जुटाती है।
दोनों मिलते
है। अपने
भिन्न-भिन्न
जीवन दर्शनों
के साथ
किन्तु, अन्त
में दोंनो
एक-दूसरे
का जीवन
दर्शन बड़े
ही स्वाभाविक
ढंग से
स्वीकार कर
लेते है।
सिकुड़ते सामाजिक
दायरे और
जीवन में
घुसपैठ कर
रहै, एकाकीपन
की इस
त्रासदी से
गुज़रते की
पीड़ा और
इससे उबरने
की यात्रा
को नाटक
में बखुबी
दिखाया गया
है।
निर्देशक
भूपेश पण्ड्या
ने दृश्य
संकल्पना व
रचित पात्रों
को बखुबी
उभारा। कलाकारों
में अपने
साथ घटी
त्रासदीयो के बावजुद जीवन के
प्रति सकारात्मक
दृष्टिकोण रखने वाली अधेड़ महिला
के किरदार
को रेखा
सिसोदिया उत्कृष्ठ
ढंग से
दर्शाया डॉक्टर
के रूप
में अनिल
दाधीच का
अभिनय अत्यन्त
स्वाभाविक रहा।
प्रस्तुति
पार्श्व में
संगीत का
प्रयोग उत्तम
बन सका।
दिक्षान्त राज सोनवाल ने रशियन
धूनों का
इस्तेमाल प्रभावी
ढंग से
किया। प्रकाश
परिकल्पना हेमन्त मेनारिया व महेश
आमेटा की
थी।मंच व्यवस्था
विजय लाल
गुर्जर की
थी एवं
मंच परिकल्पना
संदीप सेन
और अमित
श्रीमाली ने
की। वेशभूषा
कविता खत्री
और खुशबु
खत्री की
थी।रूपसज्जा रेखा शर्मा और नृत्य
निर्देशन मोना
शर्मा ने
किया। हेमन्त,
अनिल, निलाब
और प्रशान्त
ने मंच
पार्श्व और
प्रोपर्टी में सहयोग दिया। नाटक
का हिन्दी
अनुवाद डॉ.
बी. सफाड़िया
और भूपेश
पण्ड्या ने
किया। नाटक
के सह.
निर्देशक शिवराज
सोनवाल थे।
नाट्य
प्रस्तुति के प्रारम्भ मे स्वागत
भाषण देते
हुए ट्रस्ट
के सचिव
नन्द किशोर
शर्मा ने
बुढ़ापे की
दहलीज पर
जा रहे,
एकाकी जीवन
बिता रहे
लोगों
के जीवन पर प्रकाश डालते
हुए बुढ़ापे
की दिक्कतो
का वर्णन
किया।शर्मा ने कहा कि नाटक
सवाद का
सशक्त माध्यम
हैं। संस्कृति
मंत्रालय के
सहयोग से
आयोजित नाट्य
प्रस्तुति नादब्रह्म और डॉ. मोहनसिंह
मेहता मेमोरियल
ट्रस्ट के
सौजन्य से
किया गया।
5 अगस्त,
2012
वृद्धावस्था
और एकाकीपन
वरिष्ठ नागरिकों
के जीवन
में निराशा
व्याप्त कर
देती है
ये निराशा
उम्र के
इस पड़ाव
पर चिड़चिड़ा
और नैराश्य
उत्पन्न करने
के साथ-साथ शरीर
को व्याधियों
में धकेल
देती है।
वृद्धजन अपने
अनुभवों तथा
यादों को
आज के
परिवेश में
बांटना चाहते
हैं, वे
इस परिवेश
को अपनाना
चाहते हैं,
समाज की
वर्तमान धारा
में बहना
चाहते हैं
किन्तु सामजिक
बंधनों को
याद करके
अपने स्वच्छन्द
मन को
कुछ करने
से रोकने
का यत्न
भी करते
हैं - अन्ततः
जब अवसर
मिलता है
तब वृद्ध
के मन
में बसा
व्यक्ति जागता
है और
खुली हवा
में सांस
लेता है
। बुजूर्ग
व्यक्ति भी
व्यक्ति है
मात्र दादा
नाना ही
नहीं उसे
भी जीने
का हक
है ।
नाट्क के
दौरान वरिष्ठ
नागरिक अपने
आप को
नाटक के
पात्रों से
जोड़ते दिखाई
दिये ।
ये नाट्क
की सफलता
है ।
मूल रूप
से रशियन
नाट्यकार अलेक्सी
अर्हूजोव द्वारा
लिखित तथा
भूपेष पण्डया
द्वारा निर्देशित
नाटक ‘ओल्डवर्ल्ड’
का दुसरा
मंचन डा.
मोहन सिंह
मेहता मेमोरियल
ट्रस्ट, नाद्ब्रह्म
तथा वरिष्ठ
नागरिक मंच
के साझे
में विद्याभवन
ऑडिटोरियम में हुआ।
कसी
हुई पठकता
और संवाद
बेहतरिन साऊण्ड,
लाईंिटंग तथा
वेशभूषा के
मध्य एक
खुले विचारों
की महिला
मिस लिडिया
की भूमिका
में रेखा
सिसोदिया तथा
दुनियादारी को समेटे डाक्टर की
भूमिका में
अनिल दाधीच
के अभिनय
ने शहर
के वृद्धजनों
का मन
मोह लिया
। प्रस्तुति
पार्श्व में
संगीत का
प्रयोग उत्तम
बन सका।
दिक्षान्त राज सोनवाल ने रशियन
धूनों का
इस्तेमाल प्रभावी
ढंग से
किया। प्रकाश
परिकल्पना हेमन्त मेनारिया व महेश
आमेटा की
थी। मंच
व्यवस्था विजय
लाल गुर्जर
की थी
एवं मंच
परिकल्पना संदीप सेन और अमित
श्रीमाली ने
की। वेशभूषा
कविता खत्री
और खुशबु
खत्री की
थी। रूपसज्जा
रेखा शर्मा
और नृत्य
निर्देशन मोना
शर्मा ने
किया। हेमन्त,
अनिल, निलाब
और प्रशान्त
ने मंच
पार्श्व और
प्रोपर्टी में सहयोग दिया। नाटक
का हिन्दी
अनुवाद डॉ.
बी. सफाड़िया
और भूपेश
पण्ड्या ने
किया। नाटक
के
सह.
निर्देशक शिवराज
सोनवाल थे।
नाट्क
के प्रारंभ
में ट्रस्ट
सचिव नंद्कशोर
शर्मा ने
स्वागत करते
हुए कहा
कि इलेक्ट्रोनिक
मनोरंजन की
तरफ बढ़ते
हुए दौर
में नाटकों
का होना
समाज में
एक जीवन्त
संवाद स्थापित
करता है
।
धन्यवाद
की रस्म
नाटक के
सह-निदेशक
और वरिष्ठ
नाट्यकर्मी शिवराज सोनवाल ने ज्ञापित
करते हुये
कहा कि
नाटक जीवन
का दर्शन
है - नाटक
हकिकत की
दुनिया से
रूबरू करवाता
है ।
आयोजन के
मुख्य अतिथि
विद्याभवन के सचिव एस.पी.गौड, विशिष्ठ
अतिथि शिक्षाविद्
भंवर सेठ
तथा दीपक
दीक्षित थे
तथा आयोजन
की अध्यक्षता
विजय मेहता
ने की।
नन्द
किशोर शर्मा,ट्रस्ट सचिव
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