- रामविलास शर्मा ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद का जैसा विरोध किया वैसा ही अमेरिकी साम्राज्यवाद का विरोध आज जरूरी है: मैनेजर पांडेय
- रामविलास जी का लेखन साम्राज्यवाद के खिलाफ एक प्रकार का सांस्कृतिक अभियान है: राजेंद्र कुमार
- रामविलास शर्मा ने हिंदी साहित्य के स्वर को साम्राज्यवाद-विरोधी बनाया: विश्वनाथ त्रिपाठी
- साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष के लिए रामविलास जी के विचार प्रासंगिक: मुरली मनोहर प्रसाद सिंह
- साम्राज्यवादी विचारों से दलितों की मुक्ति संभव नहीं: अवधेश प्रधान
- हिरावल की कविताओं की आडियो सीडी ‘जाग मेरे मन मछंदर’ का लोकार्पण हुआ
- रामविलास शर्मा जन्मशती आयोजन संपन्न
दिल्ली: 22 जुलाई 2012
‘अपने समय में रामविलास शर्मा ने जिस तरह ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सुसंगत विरोध किया, उसी तरह आज अमेरिकी साम्राज्यवाद का विरोध बेहद जरूरी है।’ जन संस्कृति मंच द्वारा साहित्य अकादमी सभागार में दो सत्रों में आयोजित प्रख्यात माक्र्सवादी आलोचक डाॅ. रामविलास शर्मा के जन्मशती आयोजन में बीज वक्तव्य देते हुए प्रो. मैनेजर पांडेय ने यह कहा। प्रो. पांडेय ने कहा कि रामविलास शर्मा की आलोचनात्मक चेतना का विकास स्वाधीनता आंदोलन के साथ हुआ। 1857 का महासंग्राम, प्रेमचंद-निराला-रामचंद्र शुक्ल की आकांक्षाओं, प्रगतिशील आंदोलन और माक्र्सवादी विचारधारा- वे बुनियादी स्रोत हैं, जिनसे उनकी आलोचनात्मक दृष्टि निर्मित हुई थी। उनकी नवजागरण की धारणा बुनियादी तौर पर साम्राज्यवाद-विरोधी धारणा है। उन्होंने आजीवन इस साम्राज्यवादी प्रचार का विरोध किया कि अंगे्रज भारत का विकास करने आए थे या उनकी कोई प्रगतिशील भूमिका थी।आयोजन की शुरुआत जबरीमल्ल पारख और सत्यकाम द्वारा इग्नू की ओर से रामविलास शर्मा के व्यक्तित्व, रचनाकर्म और विचारधारा पर बनाई गई फिल्म ‘अडिग यही विश्वास’ के प्रदर्शन से हुई। फिल्म रामविलास जी के सुपुत्र विजयमोहन शर्मा के सौजन्य से दिखाई गई।
इस अवसर पर रामविलास शर्मा के छोटे भाई रामशरण शर्मा जी ने हिरावल संस्था के कलाकारों द्वारा निर्मित प्रसाद, निराला, फैज, मुक्तिबोध, शमशेर, नागार्जुन, वीरेन डंगवाल, दिनेश कुमार शुक्ल की कविताओं पर आधारित आॅडियो सीडी ‘जाग मेरे मन मछंदर’ का लोकार्पण किया। ‘साम्राज्यवाद-विरोधी आलोचक रामविलास शर्मा’ विषयक पहले सत्र में रांची-झारखंड से आए आलोचक प्रो. रविभूषण ने कहा कि जिन सवालों और समस्याओं को लेकर रामविलास जी ने वैचारिक संघर्ष किया, वे चाहते थे कि उन्हें याद करने के बजाए उन सवालों और समस्याओं पर विचार किया जाए। उन्होंने जो इतिहास लेखन और विवेचन किया, वह इतिहास निर्माण के लिए किया। भारत में सामंतवाद किस तरह साम्राज्यवाद का मुख्य आधार बना रहा है, इस पर उनकी पैनी निगाह थी। साम्राज्यवाद से संप्रदायवादी शक्तियों और सामंती अवशेषों के संबंध को उन्होंने बार-बार चिह्नित किया।
आलोचक मुरली मनोहर प्रसाद ने विस्तार से ब्रिटिश साम्राज्यवाद की क्रूरताओं और उसके खिलाफ भारतीय जनता के संघर्ष का विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि साम्राज्यवाद-विरोधी और सामंतवाद-विरोधी संघर्ष के लिहाज से रामविलास शर्मा के लेखन की प्रासंगिकता आज भी है। आक्रामक वित्तीय पूंजीवाद के खिलाफ देश के मजदूरों किसानों में जो बेचैनी है, जिस व्यापक संघर्ष की संभावना है, उसमें रामविलास के विचार सहयोगी होंगे।पहले सत्र की अध्यक्षता करते हुए इलाहाबाद से आए प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि रामविलास जी का लेखन साम्राज्यवाद के खिलाफ एक प्रकार का सांस्कृतिक अभियान है। नवजागरण की मूल प्रतिज्ञा के रूप में साम्राज्यवाद-विरोध का जिक्र उन्होंने बार-बार किया। साम्राज्यवाद जिस देश में जाता है वहां भाषा, धर्म, जाति, संप्रदाय, क्षेत्र के आधार जनता को बांटता है, रामविलास जी हमेशा इस साम्राज्यवादी साजिश का विरोध करते रहे।
‘हिंदी आलोचना में साम्राज्यवाद विरोध का समकालीन संदर्भ’ विषयक दूसरे सत्र में बनारस से आए प्रो. अवधेश प्रधान ने 1857 के संघर्ष को लेकर होने वाली वैचारिक बहसों का जिक्र करते हुए कहा कि उस वक्त साम्राज्यवाद ने भारत में जिस तबाही को अंजाम दिया, उससे सवर्ण और दलित दोनों समुदाय बर्बाद हुए। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में दलितों की भूमिका को सामने लाने की जरूरत पर बल दिया और कहा कि साम्राज्यवाद से दलितों की कभी भी मुक्ति संभव नहीं है। जिस तरह आधुनिकता के तर्क पर अंग्रेजी राज का समर्थन किया गया था, उसी तरह विकास के नाम पर आज अमेरिकी राज का समर्थन किया जा रहा है। आज स्वाधीनता संग्राम की महान उपलब्धियों को खारिज करने की कोशिश की जा रही है, जिसका जोरदार विरोध किया जाना चाहिए। रामविलास जी से इसकी हमें प्रेरणा मिलती है।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि रामविलास शर्मा की पूरी जिंदगी खुली किताब है। उनको पढ़कर ही नहीं उन्हें देखकर भी लोग माक्र्सवादी हुए हैं। उनकी आलोचना या उनकी सीमाओं की चर्चा जरूर करनी चाहिए, पर इसके लिए उन्होंने जो लिखा है, उसे गंभीरता से पढ़कर ही ऐसा करना चाहिए। रामविलास शर्मा हिंदी साहित्य के स्वर को साम्राज्यवाद-विरोधी बनाने वाले अग्रगण्य लेखक हैं। उन्होंने साम्राज्यवाद-विरोध को हिंदी कविता का सांैदर्यबोध बना दिया। वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल और युवा आलोचक अमिताभ राय, कवितेंद्र इंदु, शहबाज और बजरंग बिहारी तिवारी ने रामविलास शर्मा की आलोचनात्मक दृष्टि और सौंदर्यबोध को लेकर कुछ विचारोत्तेजक सवाल भी किए और खासकर दलित और स्त्री संबंधी उनकी धारणाओं को लेकर विमर्श किया।
संचालन युवा आलोचक गोपाल प्रधान ने किया। आयोजन में हरिसुमन बिष्ट, प्रेमपाल शर्मा, हरिपाल त्यागी, आनंद प्रधान, प्रणय कृष्ण, आशुतोष कुमार, अली जावेद, अजेय कुमार, प्रेमशंकर, देवेंद्र चैबे, राधेश्याम मंगोलपुरी, अच्युतानंद मिश्र, सवि सावरकर, योगेंद्र आहूजा, कुमार मुकुल, एके अरुण, संतोष झा, समता राय, उदय शंकर, श्याम शर्मा, श्याम सुशील, संजय जोशी, भाषा सिंह जैसे साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों के अतिरिक्त दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के छात्र भारी संख्या में इस आयोजन में मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए जसम के महासचिव प्रणय कृष्ण ने सूचना दी कि जसम की ओर से आगरा, गोरखपुर, दरभंगा समेत देश के कई शहरों में रामविलास जी पर केंद्रित कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
सुधीर सुमन द्वारा जारी
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