''उदभ्रांत की पहचान नवगीतकार,गज़लगो,समकालीन कविता के कवि, आलोचक ,प्रबन्धकाव्य रचियता के रूप में है।''-ब्रजेन्द्र त्रिपाठी
नई दिल्ली, 04 जुलाई 2012
‘‘कवि उदभ्रांत अपनी काव्ययात्रा की विविधता और सक्रियता से लगातार चौंकाते हैं। उनकी कविताओं में जीवन से जुड़ी स्थितियों पर सीधा प्रहार होता है।’’ उक्त विचार वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित ‘कवि संधि’ कार्यक्रम में कवि उदभ्रांत के काव्य पाठ के बाद व्यक्त किए।
कार्यक्रम में उदभ्रांत ने 30 से ज्यादा कविताएं पढ़ी। ‘स्वाह’ और पहल में प्रकाशित कविता ‘बकरा मंडी’ को श्रोताओं ने बेहद पसंद किया। ‘कठपुतली’, ‘केंचुआ’, ‘नट’, ‘रस्सी का खेल’, ‘प्रेत’, ‘स्वेटर बुनती स्त्री’, ‘पूर्वज’, पतंग’ आदि कविताओं में भूमण्डलीकरण, पड़ोसी देशों से हमारे संबंध पर टिप्पणियों के अतिरिक्त आम आदमी, पशु पक्षियों से जुड़े मार्मिक बिम्ब थे।
‘‘मैं केवल लंबी कविताएं लिखता हूँ’ के भ्रम को तोड़ते हुए उन्होंने कुछ छोटी कविताएँ भी सुनाईं। कार्यक्रम के अंत में श्रोताओं के अनुरोध पर उन्होंने कुछ नवगीत सस्वर सुनाएँ। इससे पहले अकादेमी के उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने उनका संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि 1948 में राजस्थान के नवलगढ़ में जन्मे उदभ्रांत जी की पहचान नवगीतकार, गज़लगो, समकालीन कविता के कवि, आलोचक के साथ-साथ प्रबन्धकाव्य रचियता के रूप में है। अभी तक उनकी साठ से ज्यादा कृतियाँ प्रकाशित हैं।
आपकी प्रमुख पुस्तकें हैं त्रेता, राधामाधव, स्वयंप्रभा, ब्लैक होल, शब्द कमल खिला है प्रमुख हैं। आपको हिंदी अकादमी दिल्ली के साहित्य कृति सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निराला पुरस्कार, शिव मंगल सिंह सुमन पुरस्कार के अतिरिक्त कई अन्य पुरस्कार मिल चुके है।कार्यक्रम में प्रदीप पंत, डॉ. वीरेन्द्र सक्सेना, डॉ. मधुकर गंगाधर, डॉ. कर्ण सिंहचौहान, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, डॉ. बली सिंह, हीरालाल नागर, राजेन्द्र उपाध्याय, अनुज, प्रताप सिंह, सुशील कुसमाकर सहित कई गणमान्य लेखक, पत्रकार उपस्थित थे।
अजय कुमार शर्मा-9868228620
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