हिंदी साहित्य के
चिरपरिचित कथाकार अरुण प्रकाश जी
का
१८ जून को दोपहर
एक बजे
दिल्ली के
पटेल चेस्ट
अस्पताल में
निधन हो
गया.
वह
लंबे समय
से सांस
की बीमारी
से लड़
रहे थे.
उनका जन्म
२२ फ़रवरी
१९४८ में
बेगुसराय (
बिहार)
के नितनिया ग्राम
में हुआ
था.
अरुण
प्रकाश जी
नई कहानी
के दौर
के महत्वपूर्ण
कथाकारों मे
से एक
थे.
उनकी
चर्चित कहानी
संग्रह ‘
भैया
एक्सप्रेस’,
जल-
प्रांतर,
लाखो के
बोल सहे,
किनारे,
बिषम
राग (
कहानी
संग्रह) ‘
कोंपल
कथा’(
उपन्यास)
‘
रात के
बारे में’
(
कविता संग्रह
)
आदि कृतियां
है.
पिछले
दिनों गंभीर
रूप से
बीमार होने
के बावजूद
उन्होंने एक
आलोचनात्मक पुस्तक “
गद्दय की पहचान”
लिखी जो
अंतिका प्रकाशन
से है.
अरुण प्रकाश
ने दुरदर्शन
की बहुचर्चित
टीवी सांस्कृतिक
पत्रिका ‘
परख’
की पटकथा
भी लिखी
थी,
और
उन्हों मुझे
बातचीत में
बताया था
की मैंने
‘
जमीदार’
नाम
एक फिल्म
की स्क्रिप्ट
भी लिखी
थी,
जिसमे
बतौर हीरो
गोविंदा ने
काम किया
था,
जिसका
निर्माण तो
हुआ पर
निर्देशक और
निर्माता में
विवाद को
लेकर फिल्म
रिलीस नहीं
हो पाई.
अरुण प्रकाश
जी ने
अंग्रेजी से
हिंदी में
विभिन्न विषयों
की आठ
पुस्तकों का
अनुवाद किया.
सम्मान के
रूप में
उन्हें हिंदी
अकादमी सम्मान,
रेणु पुरस्कार,
दिनकर सम्मान,
सुभाषचन्द्र बोस कथा सम्मान और
कृष्ण प्रताप
स्मृति कथा
पुरस्कार से
नवाजा जा
चूका था.
वह साहित्य
अकादमी की
पत्रिका ‘
समकालीन
भारतीय साहित्य’
के संपादक
के पद
पर थे.
बीमार अवस्था
में भी
एक परियोजना
पर काम
कर रहे
थे.
उनके
निधन पर
विश्वनाथ त्रिपाठी,
पंकज बिष्ट,
अरविन्द मोहन,
अनिल चमडिया,
अजय तिवारी,
विष्णु नागर,
मंगलेश डबराल आदि साहित्यकारों
ने गहरा
शोक व्यक्त
किया.
उनका
जाना साहित्यसमाज
के लिए
भारी क्षति
है.
भावभीनी श्रद्धांजलि
अरुण प्रकाश का हमारे बीच से यूं चले जाना हिंदी साहित्य के लिए प्रचलित अर्थों में रस्मी किस्म की अपूरणीय क्षति नहीं है, बल्कि सही मायनों में देखा जाए तो ऐसी क्षति है, जिसकी भरपाई मौजूदा हालात में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। मैंने उन्हें एक सिद्धहस्त कथाकार ही नहीं वरन ऐसे कई रूपों में देखा-जाना है, जिन्हें समझे बिना असली अरुण प्रकाश को नहीं जाना जा सकता-प्रेमचंद गांधी
पहले शिवराम और कुबेर दत्त...और आज अरुण प्रकाश भी चले गये. उनकी पहली कहानी 'कहानी नहीं' जब मैंने 'कथन' में प्रकाशित की थी, तब उनसे मेरा कोई निजी परिचय नहीं था. लेकिन बाद में वे साहित्यिक और सामाजिक स्तर पर ही नहीं, पारिवारिक स्तर पर भी मेरे आत्मीय हो गये थे...मैं नहीं जानता कि छोटे भाइयों को 'श्रद्धांजलि' कैसे दी जाती है-रमेश उपाध्याय
अरुण प्रकाश से मेरी वो पहली और आखिरी मुलाकात थी. हम अजय ब्रह्मात्मज के साथ उनके यहां गए थे और अब पिछले तीन सालों से उनके पड़ोसी भी हो गए. फिर भी कभी जाना नहीं हुआ. आज से चार साल पहले हम उन्हें यहां गए थे तब भी उनकी हालत हमसे देखी नहीं जा रही थी. वैसा जीना भी क्या जीना. वो लगातार मशीन से ऑक्सीजन ले रहे थे और हमारे साथ टीवी भी देख रहे थे. लगभग दिनभर हमने उनके साथ बिताए. वो हमसे एक के बाद एक सिनेमा पर बात कर रहे थे लेकिन जब अजयजी ने बताया कि ये टेलीविजन पर लिखता और रिसर्च कर रहा है तो उस पर बात करने लगे. टीवी पर उनकी गहरी समझ थी और मजे की बात ये कि दिवंगत कमला प्रसाद के बाद वो मुझे हिन्दी के दूसरे गंभीर अध्येता मिले जो लगातार टीवी सीरियल देखते थे. उस दिन हमारे साथ बालिकी वधू भी देखा. मुझे उनके जाने की खबर के बाद सबसे पहले अपने साथी निरुपम की बात बार-बार टीस मार रही है. पिछले सप्ताह ही उसने कहा था - अरुण प्रकाश सालों से बीमार हैं, किसी हिन्दीवाले के पास उनकी सुध लेने का समय नहीं है. देखना न,वो भी किसी दिन इसी तरह चले जाएंगे और तब देखना लोग उन्हें कैसे महान, संत, अतुलनीय रचनाकार आलोचक करार देने लगेंगे और विशेषांक निकालेंगे.-विनीत कुमार
हमारे बेहद प्रिय कथाकार मित्र अरुण प्रकाश नहीं रहे। वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे। वे जुझारूख् मेहनती और बुलंद हौसलों वाले कथाकार थे। सरकारी नौकरी में विकलांग व्यक्तियों के लिए कुछ प्रतिशत पद रखने की शुरूआत के पीछे उनका भी हाथ था। इसके लिए वे एक बार राष्ट्रपति से भी मिलने गये थे। जब राष्ट्रपति के सचिव ने पूछा कि राष्ट्रपति को आपसे क्यों मिलना चाहिये तो अरुण जी का जवाब था - क्योंकि वे देश के प्रथम नागरिक हैं और मैं देश का आम नागरिक हूं। इसी बात पर उन्हें राष्ट्रपति से मुलाकात की अनुमति मिल गयी थी। उनसे जुड़ी तमाम बातें याद आ रही हैं। हमारी विनम्र स्मृति।-सूरज प्रकाश
अरुण प्रकाश अपनी कहानियों के लिए सदैव याद किये जायेंगे. गद्य की पहचान उनकी अद्भुत आलोचना पुस्तक है.श्रद्धांजलि.-पल्लव
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