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चावल के उन्नत बीजों का प्रयोग एक बड़ा विकल्प है।


कृषि योग्य जमीन की कमी में हाइब्रिड राइस है विकल्प

5 अप्रैल, भागलपुर
बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि योग्य भूमि को संरक्षित कर पाना केवल बिहार ही नहीं , बल्कि राष्ट्रीय समस्या के रूप में सामने रहा है। चावल के उत्पादन के दृष्टिकोण से यह समस्या और बड़ी है क्योंकि सिंचाई के संसाधनों की कमी और जलवायु परिवर्तन चावल की खेती को ज्यादा प्रभावित कर रहा है। चीन अन्य देशों को वैश्विक उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो उन्होंने ऐसी ही परिस्थितियों में चावल के हाइब्रिड का इस्तेमाल कर चावल के उत्पादन में शीर्ष देशों में शामिल हो गए। तो क्या चावल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए चावल के उन्नत बीजों का प्रयोग बेहतर विकल्प हो सकता हैइसी विषय को केंद्र में ऱखकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित संस्था फिजिहा (फोरम फॉर इंडियन जर्नलिस्ट ऑन एनर्जी, इनवॉयरमेंट, हेल्थ ऐंड एग्रीकल्चर) की ओर से एक वर्कशॉप आयोजित की गई। वर्कशॉप में चावल की उत्पादकता बढ़ाने में हाइब्रिड बीजों की भूमिका: बिहार के संदर्भ में विषय पर चर्चा की गई। साथ ही साथ वैज्ञानिक कृषि के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए मीडिया की भूमिका पर भी बात हुई।   

फिजिहा की ओर वर्कशॉप में मौजूद पत्रकारों और किसानों को संबोधित करते हुए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर में निदेशक योजना अरुण कुमार ने बताया कि गेहूं और चावल हमारी मुख्य फसल है. गेहूं के उत्पादन में तो हम आत्मनिर्भर हो गए, लेकिन चावल के उत्पादन में निर्भरता अभी भी नहीं हासिल हो पाई है। उन्होंने कहा कि ऐसे में इस निर्भरता को पाने में चावल के उन्नत बीजों का प्रयोग एक बड़ा विकल्प है। एक पत्रकार द्वारा पूछे गए सवाल कि सरकार इस दिशा में क्या कर रही है का जवाब देते हुए प्रगतिशील कृषि मंच के संयोजक किशोर जायसवाल ने कहा कि सरकार भी अब इस दिशा में गंभीर हो रही है। हालिया केंद्रीय बजट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस बजट में सरकार ने पौध बीजों के शोध विकास के लिए के लिए 200 करोड़ रुपये का अलग से प्रावधान किया है। उन्होंने कहा कि किसान भी अब चावल के हाइब्रीड की जररूत को महसूस कर रहे हैं यही वजह कि इस फसल के उत्पादन के लिए हाइब्रिड का प्रयोग बढ़ा है। उन्होंने कहा कि सूखा और बाढ़ जैसी विषम परिस्थितियों में चावल की हाईब्रिड किस्में बेहद कारगर हैं। किशोर जायसवाल ने कहा कि बिहार की बात की जाए तो में चावल के उन्नत बीजों जैसे एराइज- 6444 प्राइमा जैसे हाइब्रिड चावल के उपयोग से इस फसल की पैदावार बढ़ी है।

इसी क्रम में वर्कशॉप में शामिल हुए लोगों को संबोधित करते हुए बिहार कृषि विश्वविद्यालय में सीड्स और फॉर्म के निदेशक डॉ के के सिंह ने कहा कि किसान भाइयों को यह समझना होगा कि अच्छा उत्पादन पाना है तो खेती के परंपरागत तरीके से ऊपर उठकर वैज्ञानिक खेती की ओर बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि मैं खुद बीज अनुसंधान के क्षेत्र से जुड़ा हूं और मेरा मानना है कि चावल के हाईब्रिड बीजों के प्रयोग के बाद इस फसल की पैदावार में बेहद इजाफा हुआ है। डॉ सिंह ने कहा कि बिजली की कटौती के चलते प्रदेश में सिंचाई की समस्या बहुत ज्यादा है। हाइब्रिड राइस ऐसे में एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि हाइब्रिड कम सिंचाई में भी बेहतर उत्पादकता देता है। 

वर्कशॉप में अपनी बात रखते हुए टी एम भागलपुर विश्वविद्यालय पत्रकारिता विभाग के अतिथि व्याख्याता के कृष्णन ने कहा कि वैज्ञानिक तरीके से कृषि समय की आवश्यकता बन गई है, लेकिन ज्यादातर किसान  अभी कृषि की वैज्ञानिक पद्धतियों से वाकिफ नहीं हैं। ऐसे में मीडिया की बड़ी भूमिका बनती है इन विषयों पर काम किया जाए। कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए पूर्व जनसंपर्क उपनिदेशक डॉ शिवशंकर सिंह पारिजात  ने कहा कि चीन ने 1970 में धान की हाइब्रिड किस्मों को उगाने का अभियान छेड़कर चावल क्रांति की शुरुवात की थी और अगले 20 साल में वह दुनिया का सबसे बड़ा धान उत्पादक देश बन गया। इन 20 सालों में वहां धान की खेती के आधे से ज्यादा इलाके में हाइब्रिड किस्में फैल चुकी थी। कार्यशाला में दिशा ग्रामीण विकाश मंच के मनोज पाण्डेय ने श्री विधि से हाईब्रिड धान की खेती की जानकारी दी. वहीँ महषि पाण्डेय और नकुल शाह ने खेती के अनुभवों को रखा.वर्कशॉप में स्थानीय पत्रकारों के अलावा आस-पास के जिलों के पत्रकारों के अलावा बड़ी संख्या में किसान भाइयों ने भी शिरकत की।  

योगदानकर्ता / रचनाकार का परिचय :-
सज्जन कुमार गर्ग
द्वारा हरिश्चन्द्र गर्ग
सदर बाजार मारवाड़ी मोहल्ला
पोस्ट-जमालपुर
जिला-मुंगेर
मो0-09931554140
garg.sajjan@gmail.com
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