Featured

वास्तविकता यह है कि पूँजी अपने अवरोध के सारे बंधनों को तोड़ती है।


लेनिन पुस्तक केन्द्र का स्थापना दिवस  
‘आज के समय में वामपंथ के समक्ष चुनौतियां’ पर सेमिनार
लखनऊ
वामपंथी आंदोलन के लिए 22 अप्रैल बड़े महत्व का दिन है। यह सर्वहारा के अन्तर्राष्ट्रीय नेता तथा रूसी क्रान्ति के प्रणेता कामरेड लेनिन का जन्म दिन है। इसी दिन क्रान्तिकारी वामपंथ की पार्टी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ;मालेद्ध का निर्माण हुआ था तथा 22 अप्रैल के दिन ही ग्यारह साल पहले लखनऊ में वामपंथी व जनवादी विचारधारा व साहित्य.संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए लेनिन पुस्तक केन्द्र की स्थापना हुई थी। अपने स्थापना दिवस के मौके पर 22 अप्रैल 2012 को लेनिन पुस्तक केन्द्र की ओर से लखनऊ के लालकुँआ स्थित कार्यालय पर ‘आज के समय में वामपंथ के समक्ष चुनौतियाँ’ विषय पर व्याख्यान तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हुआ। मुख्य अतिथि प्रदेश के जाने माने कम्युनिस्ट नेता जयप्रकाश नारायण थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी के कवि भगवान स्वरूप कटियार ने की तथा संचालन किया जन संस्कृति मंच के संयोजक कौशल किशोर ने।

लेनिन पुस्तक केन्द्र के बारे में बताते हुए कौशल किशोर ने कहा कि सोवियत समाजवादी व्यवस्था के पतन के बाद समाजवादी व्यवस्था तथा विचारधारा पर हमले किये गये और कहा गया कि यह उस इतिहास का अन्त है जो समाजवादी क्रान्ति के रूप में मेहनतकश जनता ने सृजित किया था। लेकिन जनता के सपने कभी नहीं मरते। वह सपने देखती है और उसे मूर्त करने के लिए संघर्ष करती है। लेनिन पुस्तक केन्द्र की स्थापना हमारे उसी सपने का जीवन्त रूप है।  कोई भी परिवर्तन बगैर विचारधारा के संभव नहीं। लेनिन पुस्तक केन्द्र परिवर्तन और नये समाज के निर्माण का वैचारिक केन्द्र है। इस केन्द्र ने प्रदेश व देश के विभिन्न हिस्से तक विचारधारा को पहुँचाया है। इस मायने में इस केन्द्र की बड़ी भूमिका है। 

मुख्य अतिथि जयप्रकाश नारायण ने वामपंथ की चुनौतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि जिस साम्राज्यवादी व्यवस्था को अपराजेय कहा गया, वह आज स्वयं संकटग्रस्त है। इस व्यवस्था के बारे में मार्क्सवादी व्याख्या लेनिन ने की थी। लेनिन का मुख्य योगदान है कि उन्होंने पूँजीवाद की चरम अवस्था के रूप में उसके चरित्र की पड़ताल की। लेनिन ने साम्राज्यवाद के बारे में जो स्थापनाएँ  प्रस्तुत कीं, वह आज की वित्तीय पूँजी व साम्राज्यवाद पर लागू है। वास्तविकता यह है कि पूँजी अपने अवरोध के सारे बंधनों को  तोड़ती है। युद्ध, तनाव, राष्ट्रों का दमन.उत्पीड़न, मानवता का संहार इसके परिणाम है।

जयप्रकाश नाराण का कहना था कि सोवियत रूस की क्रान्ति का हमारी आजादी के संघर्ष पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा था।1925 में कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ। आजादी का क्या मॉडल हो, इस पर बहसें थीं। आजादी के साथ यह बहस खत्म नहीं हुई। यह आज भी जारी है। ंदुनिया में और हमारे देश में पूँजीवाद व साम्राज्यवाद के विरुद्ध आंदोलन तेज हुए हैं। हमारा शासक वर्ग अमरीका का पिछलग्गू बन गया है। विकास के जो सब्जबाग दिखाये गये, वह आम जनता के लिए विनाश का कारण बन रहा है। यही कारण है कि चाहे जल, जंगल व जमीन का सवाल हो, भ्रष्टाचार का प्रश्न हो या रोजी रोटी, आजादी, लोकतंत्र जैसे मुद्दे हों, जनता का आंदोलन व प्रतिरोध तीव्रतर हुआ है। इनमें बहुत से आंदोलन किसी वैज्ञानिक चेतना से संचालित नहीं है और बहुत कुछ स्वतःस्फूर्त हैं। इसकी खासियत है कि ये संसदीय शक्तियों के दायरे से बाहर हैं। वामपंथ बराबरी के नये समाज के संघर्ष का पंथ है। इन आंदोलनों में ही उसका भविष्य है। उसके सामने चुनौती है कि जनता के अन्दर परिवर्तन और सच्ची आजादी जो आंकांक्षा अभिव्यक्त हो रही है, उसका नायक वह कैसे बने। पुराने तौर तरीके की जगह उसे सृजनात्मक तरीके से समय व समाज को देखना व समझना होगा।

कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर का कहना था कि यह नव साम्राज्यवाद का दौर है जहां एक तरफ ग्लोबल गांव की चर्चा हो रही है, वहीं दूसरी तरफ विकास के पश्चिमी मॉडल की वजह से गांव, लोक संस्कृति व सभ्यता नष्ट हो रही है। यह ऐसा किसान विरोधी समय है जब किसान आत्महत्या कर रहें हैं। ऐसे समय में नामवर सिंह जैसे प्रगतिशील आलोचक आज विचारधारा को साम्प्रदायिक व जड़ विचार बता रहे हैं तथा विचारधारा के महत्व को नकारने में लगे हैं जबकि मनुष्य को बेहतर बनाने में विचारधारा की अहम भूमिका रही है। यह उतरआधुनिक विचारों का असर है जिसकी वजह से प्रगतिशील व वामपंथी इनके विरुद्ध संघर्ष करने की जगह समर्पण कर रहे हैं। देखा जाय तो आज वामपंथ के समक्ष बाजारवाद, उपभोक्तावाद की चुनौती है। इससे संघर्ष करके ही वामपंथ आगे बढ़ सकता है।

इस मौके पर प्रगतिशील महिला एसोसिएशन ;एपवाद्ध की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन ने कहा कि 1990 के दशक में हम फासीवाद और उदारवाद को साथ साथ उभरते हुए देखतें हैं। ये दोनो एक सिक्के के दो पहलु हैं। देश में भाजपा की तेरह दिन की सरकार आती है और एनरान जैसी कम्पनी के लिए दरवाजे खोल दिये जाते हैं। आज मार्क्सवाद को पुराना और गैर जरूरी कहा जा रहा है जबकि मार्क्सवाद 1990 के बाद कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गया है। इस दौर की वैज्ञानिक व्याख्या मार्क्सवाद से ही संभव है।इसीलिए यह दौर मार्क्सवाद के लिए सर्वाधिक उर्वर है। यह समय वामपंथ के लिए जोरदार पहल की मांग करता है।

कार्यक्रम के अन्त में जनगायक रवि नागर कों श्रद्धांजलि दी गई तथा कहा गया कि रवि नागर के निधन से जनता ने अपने संघर्षें का गायक व संस्कृतिकर्मी खो दिया है। कार्यक्रम के अध्यक्ष भगवान स्वरूप कटियार ने कहा कि रवि नागर ऐसे संस्कृतिकर्मी रहे जिन्होंने अपनी गायकी से जन जन में नई चेतना फूँकी है। उनका जाना हमारे लिए बड़ी क्षति है। रवि नागर को याद करते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। इस मौके पर अवधी व हिन्दी के वयोवृद्ध कवि महेश प्रसाद श्रमिक ने अपनी कई कविताएँ सुनाईं। कार्यक्रम में नाटककार राजेश कुमार, कथाकार सुभाषचन्द्र कुशवाहा, कवि ब्रहमनारायण गौड़ व श्याम अंकुरम, रंगकर्मी कल्पना पाण्डेय ‘दीपा’, कवयित्री विमला किशोर व इन्दू पाण्डेय, सामाजिक कार्यकर्ता जानकी प्रसाद गौड़ आदि शामिल थे। लेनिन पुस्तक केन्द्र के प्रबन्धक गंगा प्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। 

योगदानकर्ता / रचनाकार का परिचय :-



जसम की लखनऊ शाखा के जाने माने संयोजक जो बतौर कवि,लेखक लोकप्रिय है.उनका सम्पर्क पता एफ - 3144,राजाजीपुरम,लखनऊ - 226017 है.
SocialTwist Tell-a-Friend

Comments