पिपरिया , मध्य प्रदेश
से हरिशंकर
अग्रवाल के
संपादन में
निकलने वाली
पत्रिका ‘आकंठ’
का , हमारे
समय के
महत्वपूर्ण आलोचक ‘जीवन सिंह’ पर
केंद्रित अंक
पिछले दिनों
आया है
| साहित्य के तथाकथित केन्द्रों से
दूर रहते
हुए जीवन
सिंह ने
जिस तरह
आलोचना की
लोकधर्मी परम्परा
को विकसित
और समृद्ध
किया है
, यह अंक
उसी खासपने
को रेखांकित
करता है
| ध्यान देने
वाली बात
यह है
कि इस
अंक को
जहाँ एक
तरफ ‘आकंठ’
जैसी दूरस्थ
पत्रिका ने
निकाला है
, वहीँ इसको
सम्पादित करने
का काम
जिन चार
युवा रचनाकारों
ने किया
है , वे
सभी भी
‘जीवन सिंह’
और ‘आकंठ’
की ही
तरह साहित्य
के तथाकथित
केंद्र से
दूर रहने
वाले नाम
हैं | ये
नाम हैं
बलभद्र , केशव
तिवारी , महेश
चंद्र पुनेठा
और सुरेश
सेन निशांत
| इनके अतिथि
संपादन में
निकलने वाले
इस अंक
में जीवन
सिंह की
रचना धर्मिता
और उनके
द्वारा विकसित
किये गए
आलोचना के
लोक धर्मी
प्रतिमानों को व्यवस्थित तरीके से
रेखांकित किया
गया है
| नन्द चतुर्वेदी
, विजेंद्र , नवल किशोर , अजय तिवारी
, ज्ञानेंद्रपति , मदन कश्यप
, एकांत श्रीवास्तव
, रेवती रमण
, भरत प्रसाद
, अशोक कुमार
पाण्डेय जैसे
कई और
लोगों को
‘आकंठ’ के
इस अंक
में पढ़ा
जा सकता
है | इसमें
जीवन सिंह
का एक
व्याख्यान , कपिलेश भोज और रेवती
रमण के
साथ दो
साक्षात्कार , डायरी के कुछ पन्ने
और उनकी
कुछ चुनिन्दा
कविताएं भी
दी गयी
हैं , जिनसे
उनकी रचनात्मकता
के विविध
पक्षों से
हम अवगत
होते है
|
निराला , नागार्जुन , त्रिलोचन
, केदारनाथ अग्रवाल और मुक्तिबोध को
जिस महत्वपूर्ण
तरीके से
जीवन सिंह
ने अपनी
आलोचना में
मुख्य स्थान
दिया गया
है , साथ
ही साथ
हमारे दौर
के महत्वपूर्ण
कवियों – विजेंद्र
, कुमारेन्द्र पारस नाथ सिंह , ज्ञानेंद्रपति
, मदन कश्यप
, आलोक धन्वा
, अरुण कमल
, राजेश जोशी
, ऋतुराज , कुमार विकल और वेणुगोपाल
– को भी
उचित स्थान
देते हुए
अपनी लेखनी
चलायी है
, इस तथ्य
को इस
अंक महत्वपूर्ण
माना गया
है |इस
अंक की
मुक्तकंठ से
प्रशंशा की
जानी चाहिए
और यह
उम्मीद भी
कि आने
वाले दिनों
में ऐसे
महत्वपूर्ण रचनाकारों का उचित मूल्यांकन
होता रहेगा
, जो तथाकथित
केन्द्रों से दूर बैठकर हमारे
समय और
साहित्य में
बेहद महत्वपूर्ण
योगदान कर
रहे है
...
आकंठ ,
इंदिरा गाँधी वार्ड
,
तहसील कालोनी , बनवारी
रोड ,
पिपरिया , जिला- होशंगाबाद
,
मध्य प्रदेश , फोन
न. 09424435662
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