अपनी माटी वेबपत्रिका का पहला ई-विशेषांक 'चित्तौड़ दुर्ग के बहाने' में
लिखने हेतु हार्दिक आमंत्रण
साथियो,नमस्कार
सबसे पहले आप
सभी का
आभार कि आपके जाने/अजाने सहयोग से वेबपत्रिकाओं के क्षेत्र में 'अपनी
माटी' समूह
की अब
ठीक-ठाक
पहचान बन
चुकी है.हमारे लिए ये भी बड़ी बात है कि हम अनौपचारिक रूप से काम करते हुए वर्तमान में आपके बीच हैं.हम अपनी
स्थापना के
तीसरे साल
में है.इस बार
'अपनी माटी'
वेबपत्रिका (www.apnimaati.com) पर आप
सभी की
तरफ से
मिलने योग्य
संभावित सहयोग
के बूते
एक ई-विशेषांक निकालने
का मन
बना रहे
हैं.जो
'चित्तौड़ दुर्ग के बहाने' शीर्षक
से
प्रकाश्य होगा.इस अंक में ख़ास
तौर पर
हमारी कोशिश
यही रहेगी कि हम
चित्तौड़ के
इतिहास पुरुषों,विद्वानों,ईमारतों को
नए सिरे
से रेखांकित
कर पाएं.इस बहाने
चित्तौड़ में
बसे/रहे
वरिष्ठ,युवा
लेखक साथियों
को फिर
से इस
धरती के
लिए लिखने/जुड़ने का
एक अवसर
अनुभव करा
सकें.जो भी इस बहाने कुछ नया लिख सके बड़ी बात होगी.
हमारा
सम्पादक मंडल
पच्चीस मई
दो हज़ार
बारह तक आपकी भेजी रचनाओं
को चयनित
रूप में छापेगा.अंक
दस जून
से लगातार
प्रकाशित होगा.आपको छपने पर पूरी सूचना देंगे.नितांत मौलिक
और अब
तक अप्रकाशित
रचनाएं ही
स्वीकार कर
सकेंगे,ताकि
उन्हें पाठक
पूरी तन्मयता
से पढ़
सके और उन्हें भी कुछ नवीन सामग्री मिल सके.आपसे निवेदन है कि इस ई-विशेषांक के जानकारी अपने साथियों के बीच साझा करिएगा.
आप दुर्ग चित्तौड़
और इसके
इतिहास से
जुड़े आलेख,कविता,संस्मरण,बातचीत,रिपोर्ताज,शोध पत्र,विशिष्ट छायाचित्र,यात्रा वृतांत,पुस्तक अंश,तुलना,विवेचन,आलोचना आदि हमें
भेजिएगा. इसी
विशेषांक में
हमारे पाठक
साथियों को
इस मेवाड़
प्रदेश को
नए रूप
में पढ़ने
का एक
अवसर मिल
सकेगा.इस
बहाने हम
जयमल राठौड़,फ़तेह सिंह
सिसोदिया,मीरा,कुम्भा,पन्ना,प्रताप,रैदास,मुनि जिनविजय,महाराणा राजसिंह,राणा हम्मीर,रावल रत्न सिंह,रानी पद्मिनी,रानी कर्मावती,सांगा,कल्ला राठौड़, और चन्दन
को अपने
दृष्टि में
फिर से
बयान कर
सकेंगे.लेखक
साथी यहाँ
के पर्यटन
मानचित्र में
चित्तौड़ को
फिर से
नई परिभाषाएं
देते हुए
अपनी तरफ
से इसमें
कुछ जोड़
सकेंगे.
हमारा मानना है कि आप अपने यात्रा संस्मरण में इस शहर की अपनी अब तक की यात्राओं और ठहराओं को फिर से याद कर सकेंगे.इन सभी अनुभवों को 'अपनी माटी' प्रकाशित कर गौरव का अनुभव करगी.इसी बहाने हम इतिहास के आईने में फिर से झांकते हुए वर्तमान में उन इमारतों के मायने जान सकेंगे जहां हम अक्सर योंही घंटो बैठे रहे.आप इस विशेषांक के बहाने वैश्विक दौर में एतिहासिक किलों के बदलते मायने जैसे विषय पर बात-विचार कर सकंगे.
हमारा मानना है कि आप अपने यात्रा संस्मरण में इस शहर की अपनी अब तक की यात्राओं और ठहराओं को फिर से याद कर सकेंगे.इन सभी अनुभवों को 'अपनी माटी' प्रकाशित कर गौरव का अनुभव करगी.इसी बहाने हम इतिहास के आईने में फिर से झांकते हुए वर्तमान में उन इमारतों के मायने जान सकेंगे जहां हम अक्सर योंही घंटो बैठे रहे.आप इस विशेषांक के बहाने वैश्विक दौर में एतिहासिक किलों के बदलते मायने जैसे विषय पर बात-विचार कर सकंगे.
- अपनी कृतिदेव,यूनिकोड या चाणक्य फॉण्ट में टाईप की हुए रचनाएं पर info@apnimaati.com हमें ई-मेल द्वारा भेज सकेंगे.
- रचनाओं के साथ अपना एक फोटो,जीवन परिचय,सम्पूर्ण संपर्क सूत्र ज़रूर भेजिएगा.
- ई-मेल भेजते समय 'ई-विशेषांक के लिए' शीर्षक लिखना नहीं भूलिएगा.
- कवितायेँ संख्या में तीन से पांच हो तो ठीक रहेगा.
- यदि आप इस बहाने लिखने का मन बना रहे है तो हमें अपना नाम ई-मेल से बता दीजिएगा.ताकि संभावित रचनाकारों की सूचि में आपका नाम दर्ज किया जा सके.
ये
सम्पूर्ण प्रकाशन
प्रक्रिया पूर्ण रूप से अव्यावसायिक
अंदाज़ में
संपन्न होगी,अत: हम
रचनाओं के
बदले आपको
किसी भी
तरह का
मानदेय अदा
नहीं कर
पाएंगे.अगर आपके मन में कोई सुझाव हो तो ज़रूर बताएं,ये आपकी अपनी वेबपत्रिका है.
अब तक के संभावित रचनाकार:-
- डॉ.रेणु व्यास
- डॉ. राजेन्द्र सिंघवी
- डॉ. एल.एस.चुण्डावत
- डॉ.सुशीला लड्ढा
- विकास अग्रवाल
माणिक-डॉ.राजेन्द्र सिंघवी
ई-विशेषांक सम्पादकद्वय
चित्तौडगढ,राजस्थान
मो-09460711896
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