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तेबीस मार्च के मायने ग्वालियर आकर देखे

ग्वालियर 

२३ मार्च भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शहादत का दिन है. ठीक 80 साल पहले अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था. |उस दौर में अंग्रेज उनसे इतना डरते थे कि उनकी लाशें तक उनके परिवार वालो को नहीं देने की कोशिश की गयी कि कही उन्हें देखकर जनता विद्रोह न कर दे. उन दिनों भगत सिंह की लोकप्रियता महात्मा गांधी से भी अधिक बढ़ गयी थी. ऐसा क्या था उस २३ साल के नौजवान में जिसने उसे भारतीय युवा की क्रांतिकारी चेतना का प्रतीक बना दिया ?

दरअसल आम समझदारी से अलग भगत सिंह न केवल एक ऐसे जाबांज योद्धा थी जिन्होंने देश की आजादी के लिए हँसते -हँसते अपना बलिदान दिया बल्कि उन्होंने दुनिया भर में साम्राज्यवाद के खिलाफ चल रहे संघर्षो का विस्तृत अध्ययन कर आजाद हिन्दुस्तान के लिए बराबरी पर आधारित एक सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था का स्वप्न भी देखा. जेल में लिखी गयी डायरी तथा उनके पचास से भी अधिक लेख उनकी इस सोच के गवाह है जिसके अनुसार “आजादी का मतलब सिर्फ इतना नहीं की गोरे अंग्रेजो की जगह काले अंग्रेज सत्ता में आ जाए.” वह एक इसे हिन्दुस्तान का सपना देखते थे जहा जाती धर्म जैसे भेदभाव खत्म हो और आर्थिक गैर-बराबरी की बुनियाद गिरा दी जाय.

लेकिन अफ़सोस कि आजादी के बाद धीरे धीरे न केवल भगत सिंह और उनके साथियों को बल्कि उनके इन सपनो को भी धीरे धीरे भुला दिया गया. जाती और धर्म की दीवारे और ऊँची हुई तो अमीर गरीब के बीच खाई और गहरी. इसलिए आज केवल उन शहीदों की तस्वीर पर साल में एक बार माला पहना देना उनकी विरासत का सही सम्मान नहीं होगा. जरुरी है कि न केवल उनके विचारों को सही तरीके से पढ़ा जाय बल्कि उनके सपनो का हिन्दुस्तान बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश भी की जाय.

ग्वालियर में सक्रिय युवाओं के समूह “दखल विचार मंच’’ ने पिछले कई वर्षों से लागातार इन्ही सवालों के इर्द-गिर्द जनता में चेतना पैदा करने का प्रयास किया है. इस साल भी हम 23 मार्च को शाम 6 बजे से मुरार में 7 नंबर चौराहे पर स्थित भगत सिंह प्रतिमा पर एक “शहीद मेले’’ का आयोजन कर रहे है. इसमें भगत सिंह के विचारों पर वक्तव्य, कविता पाठ, जनगीत गायन तथा पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन होगा.

यह आप सब की भागीदारी के बिना अधूरा है. आईये साथ चले ताकि शहादत की वह मशाल बुझने ना पाए. आखिर हमें ही तो इस संकल्प का मान रखना है –  


शहीदों की चिताओं पर लगेगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालो का यही बाकी निशा होगा |
इन्कलाब जिंदाबाद 

अशोक कुमार पाण्डेय 9425787930 ,जितेन्द्र विसारिया 9893375309 ,अमित शर्मा 9039003252

योगदानकर्ता / रचनाकार का परिचय :-


अशोक कुमार पाण्डेय 
  • जन्म:-चौबीस जनवरी,उन्नीस सौ पिचहत्तर 
  • (लेखक,कवि और अनुवादक के साथ ही प्रखर कामरेडी छवी के धनी.)
  • भाषा में पकड़:-हिंदी,भोजपुरी,गुजराती और अंग्रेज़ी 
  • वर्तमान में ग्वालियर,मध्य प्रदेश में निवास 
  • उनके ब्लॉग:http://naidakhal.blogspot.com/
  • http://asuvidha.blogspot.com
सदस्य संयोजन समिति,कविता समय
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