सोनभद्र, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बहराइच, गौंडा, गोरखपुर, चंदौली, सहारनपुर, लखनऊ, कानपुर, सीतापुर =3000 आदिवासी महिलाएं
लखनऊ में
सोनभद्र, लखीमपुर
खीरी, पीलीभीत,
बहराइच, गौंडा,
गोरखपुर, चंदौली,
सहारनपुर, लखनऊ, कानपुर, सीतापुर, उत्तराखण्ड
व दिल्ली
से करीब
3000 की संख्या
में आदिवासी,
अन्य वनाश्रित
समुदाय व
विभिन्न महिलाओं
के मुद्दों
पर काम
करने वाले
संगठनों जनसंगठनों
की महिलाऐं
अलग-अलग
जत्थों में
रैली की
शक्ल में
जमकर नारेबाजी
करते हुए
गोमती नदी
के किनारे
स्थित झूलेलाल
पार्क धरना
स्थल पर
पहुंची और
एक विशाल
महिला जनसभा
में तब्दील
हो गईं।
मौका था
10 मार्च क्रांतिज्योति
सावित्रीबाई फुले के परिनिर्वाण दिवस
को राष्ट्रीय
महिला दिवस
के रूप
में मनाने
का, जिसे
सावित्रीबाई फुले व गतवर्ष दिवंगत
हुई महिलाओं
के अधिकारों
को लेकर
अंतिम सांस
तक लड़ने
वाली महिला
आंदोलनों की
अगुआ रहीं
भारती राय
को आदर्श
मानते हुए
महिलाओं ने
अपनी हुंकार
से नवगठित
सरकार को
सीधी चुनौती
देते हुए
महिला संघर्ष
दिवस में
तब्दील कर
दिया।
महिला शक्ति जि़न्दाबाद, सावित्रीबाई फुले अमर रहें, भारती दीदी अमर रहें, इन्क़लाब जि़न्दाबाद, जो ज़मीन सरकारी है-वो ज़मीन हमारी है, लड़ेंगे-जीतेंगे, जो हमसे टकराएगा-चूर चूर हो जाएगा, वनाधिकार कानून लागू करो जैसे क्रान्तिकारी जोशीले नारे लगाते हुए महिलाऐं अलग अलग क्षेत्रों से अलग अलग समय शाम तक झूले लाल पार्क पहुंचती रहीं और शाम 5 बजे तक झूलेलाल पार्क महिला जनसभा में भी संभाषणों के बीच इन नारों से गुंजायमान होता रहा। संघर्ष व क्रान्ति के प्रतीक लाल रंग की साड़ी जिसके गुलाबी से लेकर नारंगी तक के शेड पहने इन हजारों महिलाओं की मौज़ूदगी और लाल रंग सहित कई रंगबिरंगे महिलाओं से जुड़ी कविताओं और नारों से सजे बैनरों से सजा मंच और पंडाल यहां उपस्थित महिलाओं और पुरुषों के अन्दर भी जोश भरने में एक अलग भूमिका निभाता दिखाई पड़ रहा था।
महिला शक्ति जि़न्दाबाद, सावित्रीबाई फुले अमर रहें, भारती दीदी अमर रहें, इन्क़लाब जि़न्दाबाद, जो ज़मीन सरकारी है-वो ज़मीन हमारी है, लड़ेंगे-जीतेंगे, जो हमसे टकराएगा-चूर चूर हो जाएगा, वनाधिकार कानून लागू करो जैसे क्रान्तिकारी जोशीले नारे लगाते हुए महिलाऐं अलग अलग क्षेत्रों से अलग अलग समय शाम तक झूले लाल पार्क पहुंचती रहीं और शाम 5 बजे तक झूलेलाल पार्क महिला जनसभा में भी संभाषणों के बीच इन नारों से गुंजायमान होता रहा। संघर्ष व क्रान्ति के प्रतीक लाल रंग की साड़ी जिसके गुलाबी से लेकर नारंगी तक के शेड पहने इन हजारों महिलाओं की मौज़ूदगी और लाल रंग सहित कई रंगबिरंगे महिलाओं से जुड़ी कविताओं और नारों से सजे बैनरों से सजा मंच और पंडाल यहां उपस्थित महिलाओं और पुरुषों के अन्दर भी जोश भरने में एक अलग भूमिका निभाता दिखाई पड़ रहा था।
सभा की शुरुआत
में खीरी
मौहम्मदी दिलावर
नगर से
आई आठ
साल की
बच्ची साहिबा
खातून ने
इंकलाब जि़न्दाबाद
के नारे
के साथ
एक क्रान्तिकारी
कविता के
पाठ से
की। कार्यक्रम
का संचालन
शान्ता भट्टाचार्या
व रोमा
द्वारा संयुक्त
रूप से
किया गया।
उन्होंने महिला
दिवस का
महत्व और
सावित्री बाई
फुले का
जीवन परिचय
दिया तथा
संगठन की
अग्रणी दिवंगत
साथी भारती
जी के
कार्यों से
भी उपस्थित
महिलाओं व
पुरुषों को
अवगत कराया।
पीलीभीत के वनक्षेत्र
से थारू
जनजाति की
गीता राणा
ने हुंकार
भरते हुए
कहा कि
हम नई
सरकार से
यहां कोई
भीख मांगने
नहीं आयीं
हैं, सरकार
कोई भी
हमारे अधिकारों
को कोई
मान्यता नहीं
देती। हम
शारदा सागर
बांध के
कारण विस्थापित
हुए लोग
हैं और
शारदा सागर
बांध के
कारण विस्थापित
होने के
बाद कई
बार अपनी
जगहों से
विस्थापित हो चुके हैं। अभी
भी हमारे
गांव की
तरफ शारदा
नदी लगातार
ज़मीन कटान
करके बढ़
रही है,
लेकिन हमारी
ना तो
कोई अधिकारी
सुनता है
और ना
ही सरकार।वनाधिकार
कानून लागू
हुए 5 साल
हो गए
हैं, लेकिन
अभी तक
वह भी
लागू नहीं
हो रहा
है।
हम अब चुप नहीं बैठने
वाले ,क्योंकि
हमें अपनी
आने वाली
पीढ़ी का
भविष्य देखना
है। अगर
आज हम
अधिकार नहीं
पाऐंगे तो
कल हमारी
आने वाली
पीढ़ी भी
हमारी तरह
दर-दर
की ठोकरें
खाने को
मजबूर होगी।
सोनभद्र की राजकुमारी
ने अपने
पारंपरिक तीर-कमान को
तानते हुए
अपनी पुरजोश
तकरीर में
कहा कि
सब
चुगले दलालों
का ही
राज होता
है। पूर्वांचल
की आंचलिक
भाषा में
तीरकमान तान
कर ही
प्रस्तुत किए
गए हमें मिलकर
महिलाओं को
संगठित होकर
इस राज
को खत्म
करना है
और अपना
हक़ इनसे
छीनना है।
जमीन छीन
रही है
और पेड़
लगाने के
नाम पर
हमे बेदखली
के नोटिस .अपने जंगल
और जमीन
पर पेड़
नहीं लगाने
देंगे क्योंकि
वो सब
खराब किस्म
के पेड़
लगाते हैं,
हम अपना
जंगल खुद
आबाद करेंगे
अच्छे पेड़
लगाकर जो
फल भी
दें और
पर्यावरण भी
बचाऐं। और
हम ऐसा
कर रहे
हैं, हमने
जंगल में
पिछले साल
10 हजार से
ज्यादा पेड़
लगाए हैं।
जंगल में
कौन सा
पेड़ लगना
है ये
हम ज्यादा
जानते हैं
गौंडा की साबिरा
बेग़म ने
वनक्षेत्रों में अंग्रेजों के समय
से उनके
द्वारा बरबाद
किए गए
जंगल को
टांगिया पद्वति
से उगाने
के लिए
बसाए गए
अपने टांगिया
गांव की
पीड़ा को
बयान करते
हुए कहा
कि ‘‘ हमें
अंग्रेजों के समय से बसाया
गया . हमारी
जमीनों पर
वो टांगिया
खतम हो
जाने के
बाद भी
पेड़ लगा
देता था।
हमारे जाबकार्डों
पर भी
उसीका कब्जा
था। हमने
जब से
संगठन बनाया
है तब
से हमपर और
हमले हुए है हमने
भी इसका
कड़ा जवाब
दिया।लेकिन हमें
कोई डर
नहीं है
अपने संगठन
की ताकत
पर हमें
पूरा भरोसा
है, हम भी
कड़ा
जवाब देंगे।
खीरी की तहसील
मौहम्मदी के
गाँव दिलावर
नगर की
कदमा देवी
ने कहा
कि 10 जून
2005 को हमारे
गाँव दिलावर
नगर को
आग लगाकर उजाड़ दिया था
और हमारी
खेती की
करीब 400 एकड़
ज़मीन वनविभाग
से छीन
ली थी।
जब कि
हम शारदा
सागर बांध
के कारण
विस्थात लोग
हैं और
जिलाधिकारी के आदेश से यहां
बसे हुए
हैं। लोगों
को महिलाओं
को बच्चों
व बूढ़ों
को भी
इतना मारा
था कि
एक बुजुर्ग
कबीर चाचा
की आवाज़
चली गई
और दूसरे
बुजुर्ग मोहन
की दोनो
टांगें बेकार
हो गईं।
लेकिन अब
हम और
इन्तज़ार करने
वाले नहीं
हैं,
जनपद खीरी के
दुधवा नेशनल
पार्क क्षेत्र
के गाँव से आयी
थारू जनजाति
की महिला
रुकमा देवी
ने कहा
कि वनाधिकार
कानून लागू
हुए 5 साल
हो गए
लेकिन अभी
भी हमारे
जलौनी लकड़ी
फूस आदि
लेने के
लिए जंगल
जाने पर हम पर हमला होता है।
हम पीछे
हटने वाले
नहीं हैं,
हम अपने
आंदोलन की
ताकत से
इन दोनों
को जेल
भी भिजवाऐंगे
और हम
अपना अधिकार
भी लेकर
रहेंगे। हम
दावे ठीक
तरीके से
भर कर
ही वनाधिकार
कानून में
मिले सारे
अधिकार ले
सकते हैं।
ये कानून
आने के
बाद भी
हमसे सब
कुछ छीन
लेना चाहते
हैं, जोकि
हम किसी
भी हाल
में होने
नहीं देंगे।
बहराईच गिरिजापुरी से
आयीं फातिमाबी
ने कहा
कि उनके
क्षेत्र गिरिजापुरी
के जंगल
में पुरखों
के समय
से हम
यहां स्थित
सैन्ट्रल फार्म
की जिस
ज़मीन पर
खेती कर
रहे थे
उस करीब
4000 एकड़ ज़मीन को हमसे छीन
कर 1972 में
वनविभाग को
सौंप दिया
गया था।
अब वनाधिकार
कानून के
आने के
बाद वो
सारी ज़मीन
हमें वापिस
लौटाई जानी
चाहिए। लेकिनइस
तरफ कोई
ध्यान नहीं
है। हमें
वो सारी
ज़मीन वापस
लेनी जो
कि हम
वनाधिकार कानून
के तहत
लेंगे। अगर
सरकार ने
इस ओर
कोई ध्यान
नहीं दिया
तो हम
सामूहिक रूप
से इस
ज़मीन को
दख़ल करेंगे।
उत्तराखण्ड खटीमा से
गंगा आर्या
ने कुमाउनी
भाषा में
क्रान्तिकारी गीत सुनाया।महिलाओं के मुद्दों
पर काम
करने वाली
जागोरी संस्था
दिल्ली से
आईं मधु
ने कहा
कि महिला
चाहे शहर
की रहने
वाली हों
या गाँव
की उनकी
समस्याऐं, मुद्दे और तक़लीफ एक
सी ही
होती हैं।
अपने अधिकारों
को पाने
के लिए
और इस
तकलीफ से
मुक्ति पाने
के लिए
महिलाओं को
जागरुक होना
और अपने
अधिकारों के
बारे में
जानकारी होना
बहुत ज़रूरी
है। हमें
पता होना
चाहिए कि
हमारे लिए
कौन-कौन
से कानून
हैं और
हम इन
कानून को
हथियार बनाकर
कैसे लड़
सकती हैं।सोनभद्र से राजकुमारी,
खीरी कटैया
से सावित्री
देवी, दुधवा
से सीमा,
सीतापुर से
मीना व
लखनऊ से
आयीं मंजू
सिहं ने
भी अपने
विचारों को
व्यक्त किया
।
राष्ट्रीय वन-जन
श्रमजीवी मंच
के संयोजक
अशोक चैधरी
ने
कहा कि
आज वनक्षेत्रों
में आन्दोलन
एक अभूतपूर्व
तेज़ी के
साथ आगे
बढ़ रहे
हैं और
उत्साह की
बात है
कि ये
सभी महिलाओं
की अगुआई
में आगे
बढ़ रहे
हैं। हमारा
मानना भी
यही है
कि जब
तक आंदोलनों
में महिलाऐं
और अग्रणी
भूमिका में
नहीं रहेंगे
तब तक
कोई आंदोलन
सफल नहीं
हो पाएगा।
आज महिलाओं
की और
समुदाय के
लोगों की
चेतना में
एक अभूतपूर्व
विस्तार देखने
को मिल
रहा है,
जोकि आगे
चलकर एक
परिवर्तनकारी ताकत में तब्दील होगा।सहारनपुर से आई
सामाजिक कार्यकर्ता
कौशल ने
इस अवसर
पर महिला
दिवस व
सावित्रीबाई फुले के जीवन पर
निकाला गया
पर्चा पढ़कर
सभी को
सुनाया व
अपनी बात
रखी।
महिला समाख्या से
आई विभा
सिंह ने
कहा कि
महिला चाहे
किसी भी
क्षेत्र की
रहने वाली
हो किसी
भी क्षेत्र
में काम
करने वाली
हो उनकी
समस्या एक
ही होती
है। इसलिये
ये लड़ाई
हम सब
महिलाओं को
मिलकर ही
लड़नी होगी।
उन्होंने कहा
कि इस
अवसर पर
हमें कल
23 मार्च को
शहीद-ए-आज़म भगत
सिंह की
शहादत का
दिन होने
के कारण
उन्हें भी
याद करने
की ज़रूरत
है।
सभास्थल पर शाम
करीब 4 बजे
मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के रूप
एसीएम-5 अरुण
कुमार ज्ञापन
लेने के
लिए पहुंचे।
उनके समक्ष
एक बार
फिर पीलीभीत
की गीता
राणा ने
ज़ोरदार तरीके
से वनक्षेत्रों
में रहने
वाली महिलाओं
व लोगों
की समस्याओं
को रखा
और कहा
कि हम
यहां आज
सरकार को
सीधी चुनौती
देने आए
हैं। अगर
सरकार हमारी
बात नहीं
सुनेगी तो
हम किसी
भी हाल
में रुकने
वाले नहीं
हैं, हम
लड़कर अपना
हक़ लेंगे।
इसके लिए
चाहे हमें
जान गंवानी
पड़े हमें
मंज़ूर है।
क्योंकि यह
अधिकार लेना
हमारी अगली
पीढ़ी के
भविष्य से
जुड़ा हुआ
है।
तत्पश्चात विभा सिंह
द्वारा कार्यक्रम
के आयोजक
विभिन्न महिला
संगठनों की
ओर से
मुख्यमंत्री के नाम लिखा गया
18 सूत्री ज्ञापन पढ़ कर सुनाया
गया ओर
इस ज्ञापन
को मंचासीन
सभी क्षेत्रों
की प्रतिनिधि
महिलाओं ने
सामूहिक रूप
से मुख्यमंत्री
प्रतिनिधि एसीएम अरुण कुमार को
सौंपा। मुख्यमंत्री
प्रतिनिधि ने कहा कि उन्होंने
उनके सामने
महिलाओं द्वारा
रखी गई
बातों को
बहुत बारीकी
से सुना
है और
वे इन
सभी बातों
को और
आप द्वारा
सौंपे गए
ज्ञापन को
मुख्यमंत्री तक पूरी गंभीरता के
साथ पहुंचाऐंगे।तत्पश्चात नारों और
गीतों की
गूंज के
साथ बहुत
ही उत्साह
पूर्वक महिला
दिवस के
उपलक्ष्य में
आयोजित किए
गए इस
कार्यक्रम का समापन किया गया।
इस कार्यक्रम को
सफलता पूर्वक
आयोजित करने
में महिला
वनाधिकार एक्शन
कमेटी, जागोरी,
राष्ट्रीय घरेलू कामगार यूनियन-लखनऊ,
कैमूर क्षेत्र
महिला मज़दूर
किसान मंच-कैमूर क्षेत्र,
थारु आदिवासी
व तराई
क्षेत्र महिला
मज़दूर किसान
मंच, घाड़क्षेत्र
महिला मोर्चा,
घाड़क्षेत्र महिला किसान संघर्ष समिति-पश्चिमांचल, पाठा
दलित कोल
भू-अधिकार
मंच-बुंदेलखंड,
वनग्राम एवं
भू-अधिकार
मंच, शारदा
महिला वनाधिकार
समिति-उत्तराखंड
शामिल रहे
व पर्दे
के पीछे
रहकर इसका
प्रबंधन संभालने
में अंशुमान
सिंह, विपिन
गैरोला, यशवंत,
जि़ब्रैल व
लखमी सिंह
ने भी
अहम् कि़रदार
निभाया।
18 सूत्रीय ज्ञापन
क्रांतिज्योति सावित्री बाई
फूले की
याद में
राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं
की जनसभा
में 22 मार्च
2012 को झूलेलाल
पार्क, गोमती
नदी के
किनारे धरना
स्थल पर
महिलाओं ने
क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फूले के परिनिर्वाण
दिवस (10 मार्च)
के मौके
पर उ0प्र0 राज्य
सरकार के
नाम निम्नलिखित
18 सूत्रीय ज्ञापन पारित किया गया
-
1. प्रदेश में ग़रीब,
दलित आदिवासी
महिलाओं
पर पुलिस विभाग, वनविभाग व
सांमतों द्वारा
किए जा
रहे हमले
व उत्पीड़न
को समाप्त
किया जाए।
2. महिलाओं की सुरक्षा
के लिए
सभी थानों
में अलग
से महिला
थाना स्थापित
किए जाऐं।
3. महिलाओं की शिक्षा
के लिए
प्राईमरी से
लेकर उच्च
स्तरीय शिक्षा
के लिए
पूरे प्रदेश
में शिक्षा
की समुचित
व्यवस्था की
जाए व
शिक्षा संस्थानों
को सावित्री
बाई फूले
के नाम
से खोला
जाए।
4. घरेलू महिला हिंसा
कानून के
क्रियान्वन की दिशा में समुचित
कदम उठाए
जाऐं व
हर जिले
में सरंक्षण
अधिकारी की
नियुक्ति जल्द
से जल्द
की जाए।
5. प्रदेश में अभी
तक वनाधिकार
कानून के
क्रियान्वयन की प्रक्रिया अधूरी पड़ी
हुई है,
इस कानून
के अंतर्गत
सामुदायिक अधिकारों के दावों को
अभी तक
आमंत्रित नहीं
किया गया
है इसे
तुरन्त आरंभ
किया जाए।
6. वनों के अंदर
लघुवनोपज पर
महिलाऐं सबसे
ज्यादा निर्भर हैं. जो
कि उनकी
आजीविका का
साधन भी
हैं, लेकिन
अभी तक
इन वनोपज
पर वनविभाग
व ठेकेदारों
का कब्ज़ा
है। वनाधिकार
कानून लघुवनोपज
का मालिकाना
हक़ समुदाय
को प्रदान
करता है,
इसलिए वनोपज
का मालिकाना
हक़ महिलाओं
को दिया
जाए।
7. वनों के अंदर
शासन द्वारा
जापान इंटरनेशनल
कारपोरेशन की मदद से संयुक्त
वनप्रबंधन के तहत वृक्षारोपण के
कार्य की
योजना लागू
कर संसद
द्वारा पारित
वनाधिकार कानून
2006 की अवमानना
की जा
रही है।
जिसके कारण
वनों के
अंदर समुदाय
व वनविभाग
में तनावपूर्ण
स्थिति बनी
हुई है,
जिसे दूर
करने के
लिए संयुक्त
वनप्रबंधन के वृक्षारोपण के कार्य
व गड्ढा
खोदने के
कार्य पर
तुरंत रोक
लगाई जाए।
8. खेती में 80 फीसदी
भूमिहीन किसान
घरों की
महिलाए कार्य
करती हैं,
उनको भूमि
उपलब्ध कराई
जाए।
9. घरेलू कामगार महिलाओं
के श्रम
अधिकारों की
सुरक्षा के
लिए प्रदेश
में अलग
से कानून
बनाया जाए
व प्लेसमेंट
एजेंसियां जो कि दलालों का
काम करती
हैं, उनके
लाईसेंस रद्द
किए जाए।
10. महिला व पुरुष
मजदूरों को
समान वेतनमान
व मजदूरी
दिए जाऐं।
11. श्रमिक मजदूर महिलाओं
व पुरुषों
के लिए
प्रीविडेंट फंड व बीमा की
व्यवस्था की
जाए।
12. सभी सार्वजनिक स्थलों
पर महिलाओं
के लिए
अलग शौचालयों
की व्यवस्था
की जाए।
13. हर सरकारी परिवहन
में महिलाओं
के लिए
अलग आरक्षित
सीटों की
व्यवस्था की
जाए।
14. गरीब ग्रामीण व
शहरी सभी
भूमिहीन महिलाओं
के लिए
कम से
कम 4 हैक्टेअर
ज़मीन की
व्यवस्था की
जाए।
15. महिला सुरक्षा कानून
लाया जाए।
16. प्रदेश में वनों
के अंदर
व वनों
से सटे
हुए इलाकों
में हो
रहे अवैध
खनन पर
तुरंत रोक
लगाई जाए।
27 फरवरी 2012 को सोनभद्र में अवैध
खनन में
पहाड़ी के
दरकने से
सैंकड़ों मज़दूरों
की मौत
पर अभी
तक श्रमविभाग,
वनविभाग, खनन
विभाग व
राजस्व विभाग
के अधिकारियों
को दण्डित
नहीं किया
गया है।
उनके ऊपर
एफआईआर कर
उन्हें फौरन
जेल भेजा
जाए।
17. दुधवा नेशनल पार्क
में 20 जनवरी
2012 को बनकटी
रेंज में
जलौनी लकड़ी
लेने जाती
हुई थारू
आदिवासी महिलाओं
नबादा देवी,
करूआ व
सीमा देवी
पर पुलिस
व वनविभाग
ने जानलेवा
हमला किया,
लेकिन अभी
तक इस
हमले के
अभियुक्त कोतवाल
गौरीफंटा शुभसुचित
राम व
वार्डन ईश्वर
दयाल को
गिरफ्तार नहीं
किया गया
है। इन
दोनों अभियुक्तों
को फौरन
गिरफ्तार कर
जेल भेजा
जाए। व
वनविभाग की
तहरीर पर
600 थारू आदिवासी
महिलाओं पर
झूठे मुकदमें
किए गए
हैं उन्हें
वापिस लिया
जाए।18. नेपाल सीमा से
सटे कई
जनपदों में
सशस्त्र सीमा
बल, पुलिस,
वनविभाग, कस्टम
विभाग द्वारा
की जा
रही आदिवासी
महिलाओं व
नेपाली लड़कियों
की तस्करी
पर तुरंत
रोक लगाई
जाए व
इन अंतर्राष्ट्रीय
सीमाओं पर
अलग से
महिला थानों
का गठन
किया जाए।
महिला वनाधिकार
एक्शन कमेटी,
राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी
मंच, जागोरी,
राष्ट्रीय घरेलू कामगार यूनियन
(लखनऊ), कैमूर
क्षेत्र महिला
मजदूर किसान संघर्ष
समिति (कैमूर
क्षेत्र) , तराई क्षेत्र एवं थारू
आदिवासी महिला मज़दूर
किसान मंच (तराई
क्षेत्र ), घाड़ क्षेत्र महिला मोर्चा,
घाड़ क्षेत्र
महिला किसान संघर्ष समिति (पश्चिमांचल),
वनग्राम
एवं भू-अधिकार मंच
(उत्तराखंड) , पाठा दलित कोल भू अधिकार मंच (बुंदेलखंड), शारदा
महिला वनाधिकार
समिति-उत्तराखंड
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press, Tagore Nagar Robertsganj, District Sonbhadra 231216 Uttar Pradesh Tel : 91-9415233583, 05444-222473 Email : romasnb@gmail.com http://jansangarsh.blogspot. |
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