सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ की काव्यकला की सबसे बड़ी विशेषता है चित्रणकौशल।
आंतरिक भाव हो या बाह्य जगत के दृश्यरूप, संगीतात्मक ध्वनियां हो या रंग और गंध, सजीव चरित्र हों या प्राकृतिक दृश्य, सभी अलगअलग लगनेवाले तत्त्वों को घुलामिलाकर निराला ऐसा जीवंत चित्र उपस्थित करते हैं
कि पॄने वाला उन चित्रों के माध्यम से ही निराला के मर्म तक पहुँच सकता है।
निराला के चित्रों में उनका भावबोध ही नहीं, उनका चिंतन भी समाहित रहता है।
इसलिए उनकी बहुतसी कविताओं में दार्शनिक गहराई उत्पन्न हो जाती है।
इस नए चित्रणकौशल और दार्शनिक गहराई के कारण अक्सर निराला की कविताऐं कुछ जटिल हो जाती हैं,
जिसे न समझने के नाते विचारक लोग उन पर दुरूहता आदि का आरोप लगाते हैं।
उनके किसानबोध ने ही उन्हें छायावाद की भूमि से आगे ब़कर यथार्थवाद की नई भूमि निर्मित करने की प्रेरणा दी। विशेष स्थितियों, चरित्रों और
दृश्यों को देखते हुए उनके मर्म को
पहचानना और उन विशिष्ट वस्तुओं को ही चित्रण का विषय बनाना, निराला के यथार्थवाद की
एक उल्लेखनीय विशेषता है।
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