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राजस्थानी री मान्यता प्रदेश रा विकास वास्तै जरूरी है।- रघुवीर सिंह मीणा


उदयपुर/13 जनवरी/2012/

 ‘‘राजस्थानी आपांरी मां है, आपांनै आपांरी भाषा री सेवा करणी है, यो आपारों फरज है। अणीरी संवैधानिक मान्यवाता वास्ते सांसद, सरकार, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत  गंभीर हैं। राजस्थानी री मान्यता प्रदेश रा विकास वास्तै जरूरी हैं। सांसद रघुवीर सिंह मीणा ने ये उदगार. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट में आयोजित’’ सज्जन कीर्ति’’ राजस्थानी अखबार के लोकार्पण उल्छब में खास पामणा रूप में प्रकट किए। उन्होंने कहा कि मैंने अन्य प्रदेशों के सांसदों से भी कहा कि हम आपकों सहयोग करेंगे। आप हमें संसद में राजस्थानी मान्यता हेतु सहयोग करों। उदयपुर से राजस्थानी के पहले अखबार के लोकापर्ण अवसर को एैतिहासिक एवं मन का कार्यक्रम बताया एवं शुभकामनांए दी। 

लोकार्पण-उच्छाब के पाहवी डॉ. देव कोठारी पूर्व अध्यक्ष राज. भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि 9वीं सदी से लगातार राजस्थानी भाषा में लेखन हो रहा हैं। कई गद्य विधाओं में लेखन भारतीय भाषाओं में संस्कृत के बाद राजस्थानी में समृद्ध परम्परा मिलती हैं। राजस्थानी में दुनिया में सबसे अधिक 5 लाख पांडूलिपियां पड़ी हैं। इतनी समृद्ध भाषा को मान्यता नहीं मिलना, प्रजातंत्र की मूल भावना के खिलाफ हैं। मूघा पामणा (वि. अतिथि) नगर परिषद उप सभापति महेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि 10 करोड़ लोगों की मातृभाषा राजस्थानी को मान्यता के लिए आंदोलन करना पड़ रहा हैं। यह दुःखद हैं। उन्होंने इसरायल की भाषा हिब्र के लिए उन लोगों के प्रेम व समपर्ण से प्रेरणा लेने की बात कही कि दुनिया में बिखरे यहूदियों ने अपनी भाषा को वापस प्राणवंत कर दिया।  हम तो हमारे प्रदेश में ही रह रहे हैं। मूंघा पामणा पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष वसीम खान ने केरल व गुजरात का उदाहरण देकर कहा कि वहां के लोग किसी भी पद व पेशे से हो अपनी मलयालम व गुजराती ही बोलते है। गर्व महसूस करते हैं। 

हम  हमारे मन में आ रही हीनता को निकालना होगा। तभी  प्रदेश की  अस्मिता बचेगी। कार्यक्रम में स्वागत भाषण ट्रस्ट अध्यक्ष विजय सिंह मेहता ने देते हुए कहा कि राजस्थानी भाषा के विकास के लिए पत्र-पत्रिकाओं का चलन जरूरी हैं। उदयपुर में यह पहला प्रयास स्वागतयोग्य हैं। कार्यक्रम का संायेजन करते हुए राज. भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश महामंत्री डॉ. राजेन्द्र बारहठ ने काह कि जो भाषांए संवधिान की 8वीं अनूसूची में है। उनमें आई.ए.एस. परीक्षा माध्यम व एक प्रश्नपत्र उस भाषा का मिलता हैं। उन प्रदेशों की पी.एस.पी. की परीक्षा का माध्यम वह भाषा होती हैं। अनिवार्य व ऐच्छिक प्रश्नपत्र उस भाषा का होता हैं। रेल्वे परीक्षा उनकी भाषा माध्यम से होती हैं। राजस्थानी भाषा की मान्यता के बिना राजस्थानी युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा हैं।  राष्ट्रीय व प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में राजस्थानी प्रतिभा पिछड़ रही हैं।  कार्यक्रम में ट्रस्ट के सचिव नंद किशोर शर्मा एवं सज्जन-कार्तिक उप संपादक धमेन्द्र सिंह गेहलोत ने विचार प्रकट किए। 

कार्यक्रम में सरस्वती वंदना पुरूषोतम पल्लव, वाणी वंदना हिम्मत सिंह उज्जवल, धन्यवाद सज्जन कीर्ति, संपादक मो. जहीर ने किया। लोकार्पण-उच्छब में अनेक साहित्य, संस्कृति, समाजसेवा से जुड़े लोगों ने बड़ी तादाद में भागीदारी की। जिनमें खासकर सुशील कुमार दशोरा, डॉ. विष्णुमाली, कमलेन्द्र सिंह पंवार, शिवदानसिंह जोलवास, मानसिंह निनामा, अनिल मेहता, शिवराज सोनवाल, ख्यालीलाल रजक, हाजी सरदार मोहम्मद, झूंझार अली, मुश्ताक चंचल, शकुन्तला सरूपरिया, कन्हैयालाल धाभाई, मंदाकिनी धाभाई आदि ने कार्यक्रम में शिरकत की। 

डॉ. राजेन्द्र बारहठ (नंदकिशोर शर्मा)
संयोजक-कार्यक्रम   सचिव 
(9829566084,9782526376)

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