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राजन को ‘जनकवि रामदेव भावुक स्मृति-सम्मान’

पटना

राजकिशोर राजन

युवा कवि राजकिशोर राजन को वर्ष 2011 का ‘जनकवि रामदेव भावुक स्मृति-सम्मान’ दिए जाने की घोषणा ‘रचना’ (एक साहित्यिक मंच) की ओर से स्थानीय केदार भवन, अमरनाथ रोड, पटना के कविवर कन्हैया कक्ष में की गई। संस्था के अध्यक्ष तथा वरिष्ठ साहित्यकार छंदराज ने कहा कि युवा कवि राजकिशोर राजन के अबतक तीन कविता-संग्रह छपे हैं। इन्हें पूर्व में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद सहित अन्य महत्वपूर्ण संस्थाओं ने भी सम्मानित किया है। राजभाषा विभाग, पूर्व मध्य रेल, हाजीपुर में कार्यरत राजकिशोर राजन की कविताओं में मनुष्य की पक्षधरता धारदार रूप से दिखाई देती है।   पुरस्कार चयन समिति के सदस्यों में चर्चित कवि शहंशाह आलम तथा राज्यवर्द्धन भी थे। यह सम्मान एक विशेष आयोजन में दिनांक - 24 दिसंबर 2011 को पटना में दिया जाएगा.

उनकी दो कवितायेँ 


इमरती गली


कहने भर को पटना शहर में
पर सैकड़ों साल से वहीं का वहीं
जैसे कहीं पड़ा हो पहाड़, खड़ा हो बूढ़ा पेड़

बबलू इमरती वाला जब शाम को कड़ाही चढ़ाता
मुँह मीठा हो जाता है इमरती गली का

हाथ में रुमाल रखे गुज़र रहे भद्र लोग भी
एक बार कनखियों से देख लेते रंग इमरती का

तरह-तरह की सब्ज़ियां, किसिम-किसिम के सामान लिए
खोमचे वाले आते-जाते
अगल-बगल के मजनूँ-छाप लड़के मँडराते
शाम होते ही रौनक बढ़ जाती
इमरती गली की

पता नहीं क्या है इस गली में
कि जो गुज़रता यहाँ से पसीने से तरबतर
जाता अपना पसीना सुखा कुछ देर गली में बैठकर

मौसम-बेमौसम यहाँ उड़ती रहती पतंग
जैसे कि ज़माना ही हो पतंगबाज़ी का

हँसते लोट-पोट होती रहतीं लड़कियाँ
यहाँ के लड़कों की, कटी पतंगें देखकर

हर शहर में मिलती हैं ऐसी गलियाँ
जिन्हें तरक्कीपसंद लोग देते हैं गालियाँ
मगर इन गलियों की बाँहें रहती हैं फैली
किसी आगंतुक का करने स्वागत

ऐसी गलियाँ धड़कती हैं शहर के सीने में
ज़िदगी बनकर
और मीठी, जलेबी से ज़्यादा

भय 
भेंट हुई, पिछले दिनों एक आदमी से
जिसे, हवा-पानी और धरती की तरह
ज़रूरत रहती थी, एक शत्रु की

जिस दिन से, कोई शत्रु
होने लगता, निर्बल-असहाय
या हार मानकर, बनने लगता मित्र
उसी दिन से, उसकी बेमज़ा होने लगती ज़िंदगी
और दूसरे ही दिन, सुबह से
ढूँढ़ने लगता वह किसी दूसरे शत्रु को

दुनिया भर को देता वह गालियाँ
कोसता भूत, भविष्य, वर्तमान को
उसके अनुसार कुछ लोग, कुछ चीज़ें ही बची हैं
जिनका किया जा सकता है एहतराम

उसे जानने वाले
कतराते, मुँह चुराते
निकल जाते अपनी राह
और वह खिलखिला कर हँसता, उन चूहों पर
जो आदमी की तरह थे
हाथ-पैर-नाक और चार पैरों वाले

जो मिलता उससे
याद करता, किसका मुँह देख निकला था घर से?
और उस बुरे दिन को याद कर
मिसरी की तरह मीठा हो
वही सुनता जो वह कहता
वही करता जो वह चाहता

लोगों का मानना है
वह आदमी 
शत्रु है, अपना ही
और जो बन जाता इस समय में अपना शत्रु
उसे नहीं, किसी से दुनिया में भय!


स्त्रोत :-
अशेष मार्ग, मधेपुरा (बिहार),
मोबाइल- 09431080862.
मधेपुरा,बिहार से हिन्दी के युवा कवि हैं, लेखक हैं। संपादन-रेखांकन और अभिनय -प्रसारण जैसे कई विधाओं में आप अक्सर देखे जाते हैं। जितना आप प्रिंट पत्रिकाओं में छपते हैं, उतनी ही आपकी सक्रियता अंतर्जाल पत्रिकाओं में भी है।

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