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जन्म स्थान | मुज़फ्फ़रनगर उत्तर प्रदेश, भारत। |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | काल काल आपात, केरल प्रवास, कविता की रंगशाला, अंतिम शीर्षक (सभी कविता-संग्रह), धरती ने कहा फिर (लम्बी कविताएँ) |
विविध | अज्ञेय शिखर सम्मान, सार्क लेखक सम्मान । |
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हिन्दी के वरिष्ठ कवि और दूरदर्शन के पूर्व वरिष्ठ निदेशक कुबेरदत्त हमारे
बीच नहीं रहे। एक बेहतरीन टी वी प्रोड्यूसर के रूप में कुबेरदत्त ने अपने
जीवनकाल में असंख्य कार्यक्रमों का निर्माण किया और एक कवि रचनाकार के रूप
में चार दशक तक साहित्य की अथक सेवा की। मात्र 62 वर्ष की आयु में उनका यह
असामयिक निधन साहित्य और मीडिया जगत की अपूरणीय क्षति है। उन्हें
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
उनकी एक कविता यहाँ पढ़ने हेतु
कविता कोश से साभार प्रकाशित कर रहे हैं.
देह का सिंहनाद
यह मेरा
अपमानित, तिरस्कृत शव...
शव भी कहाँ-
जली हडडियों की केस प्रापर्टी,
मुर्दाघर में अधिक-अधिक मुर्दा होती...
चिकित्सा विज्ञान के
शीर्ष पुत्रों की अनुशोधक कैंचियों से बिंधी,
विधि-विधान के जामाताओं का
- सन्निपात झेलती...
- ढोती
- शोध पर शोध पर शोध-
- यह तिरस्कृत देह...
सामाजिकों की दुनिया से
जबरन बहिष्कृत
अख़बारनवीसी के पांडव दरबार में नग्न पड़ी
यह कार्बन काया-
मुर्दाघर में अधिक-अधिक मुर्दा होती...
भाषा के मदारियों की डुगडुगी सुनती...
कट-कट
जल-जल
फुँक-फुँक कर भी
पहुँच नहीं पाती पृथ्वी की गोद तक...
न बची मैं
न देह
न शव...
भूमंडलीकरण की रासलीला के बीच
लावारिस मैं
अधिक-अधिक मुर्दा होती...
झेलती
पोस्ट-पोस्ट पोस्टमार्टम
उत्तर कोई नहीं
न आधुनिक, न उत्तर आधुनिक
न प्राचीन...
क्या
मुर्दों के किसी प्रश्न का
कोई उत्तर नहीं होता?
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