जन
संस्कृति मंच
पाँचवाँ
कुबेर दत्त स्मृति व्याख्यान संपन्न
अंधेरे
वक्त में रोशनी के लिए ज्ञान-मीमांसा की कुदरती मानवीय प्रवृत्ति को बढ़ावा देना
होगा: लाल्टू
‘कल के लिए’
पत्रिका के कुबेर दत्त विशेषांक और
कुबेर
दत्त के गद्य की पहली पुस्तक ‘एक पाठक के नोट्स’
का लोकार्पण
नई
दिल्ली: 20 नवंबर 2016
‘ज्ञान की
जमीन’ यानी मनुष्य को वह कहां से मिलता है और जो
कुछ वह जानता है, जिसे सच मानता है, वह किस हद तक ठोस सचाई है, इस बारे में आज कवि-वैज्ञानिक और पत्रकार लाल्टू ने गांधी शांति
प्रतिष्ठान में ‘ज्ञान की जमीन और जमीनी ज्ञान:
अंधेरे वक्त में रोशनी की तलाश’ विषय पर आयोजित
पांचवे कुबेर दत्त स्मृति व्याख्यान में अपने विचार रखे।लाल्टू ने कहा कि आदतन लोग उन बातों को नहीं जानना चाहते जो उनकी
मान्यताओं से संगति नहीं रखती हैं। इसलिए उनकी हर जानकारी के साथ उनकी पृष्ठभूमि
और पूर्वाग्रह जुड़े होते हैं। उदाहरण के तौर पर गुजरात और मानव विकास के आंकड़े का
संदर्भ देखा जा सकता है। भाजपा के चुनाव प्रचार के लिए लगभग एक दशक से यह झूठ
फैलाया गया कि गुजरात देश का सबसे विकसित राज्य है, लेकिन तथ्य यह है कि मानव विकास के आंकड़े में गुजरात पिछले तीन दशकों से
ग्यारहवें नंबर पर रुका हुआ है। भक्तों को यह जानकारी नहीं चाहिए, इसलिए वे इसे कभी नहीं देखते हैं।
लाल्टू ने
सवाल उठाया कि जो कुछ प्रत्यक्ष दिखता है, वही सच
होगा यह मान लेना स्वाभाविक है, पर ऐसा क्या है,
जो दिखने से छूट गया ? अगर वह दिख जाए तो क्या जो पहले दिख रहा था, उस बारे में हमारा निर्णय पहले जैसा ही रह जाएगा ? उन्होंने कहा कि सामान्य समझ ज्ञान की बुनियाद नहीं होती, वह देशकाल पर निर्भर होती है और अक्सर विरोधाभासों से भरी
होती है। उन्होंने कहा कि कि ‘हमें ज्ञान है’
का अहसास एक तरह का अहं पैदा करता है। यह जान लेना कि हम
इस अहंकार से ग्रस्त हो सकते हैं, काफी नहीं होता।
इस अहंकार के नतीजे भयंकर होते हैं। लाल्टू ने सवाल उठाया कि जिन्हें अज्ञानी
मानकर हम अनजाने में दरकिनार कर रहे होते हैं, वे किसके दर जा पहुंचते हैं? क्या वे किसी
शैतान के गुलाम हो जा सकते हैं? उन्हें वह समझ
क्यों नहीं हासिल हासिल होती है, जो हममें है?
ये कौन हैं जो ‘झूठ ही सच
है’ का नारा लगाते हुए हमें दबोच रहे हैं?
भारत और
अमेरिका की हाल की राजनैतिक घटनाएं ऐसे सवाल खड़ी करती हैं। लाल्टू ने कहा कि जिस
अंधेरे दौर से हम गुजर रहे हैं उसमें कुदरती तौर पर हमें ज्ञान-मीमांसा की जो
काबिलियत मिली है, उसको बढ़ावा देना होगा। इस अँधेरे दौर
में हम रोशनी की तलाश कैसे करें, यह हमारे लिए अहम
सवाल है। मनुष्य तर्क और भावनात्मकता के साथ भाषा और एहसासों के अर्थ ढूंढ सकता
है। इसे बचाए रखना इस वक्त की सबसे बड़ी लड़ाई है।
व्याख्यान
के बाद श्रोताओं के साथ लाल्टू का विचारोत्तेजक संवाद हुआ। शम्भु यादव ने मौजूदा
वैज्ञानिक विकास और मार्क्सवाद के अंतर्संबंधों पर सवाल किया। मृत्युंजय ने ज्ञान
के माध्यमों के लगातार अप्रामाणिक होते जाने का सवाल उठाया। वन्दना ने ज्ञान की
प्रक्रिया में ‘एक्सपोजर’ का सवाल उठाया। आस्था और भ्रम के सन्दर्भ का सवाल महेश महर्षि ने पूछा।
मंगलेश डबराल ने ज्ञान के सामान्यीकरण का प्रश्न उठाते हुए बहस को और जीवंत बनाया।
इसके पहले कवि-वैज्ञानिक लाल्टू ने कुबेर दत्त के गद्य की पहली पुस्तक 'एक पाठक के नोट्स', कवि कृष्ण
कल्पित ने जयनारायण द्वारा सम्पादित 'कल के लिए' के कुबेर दत्त
विशेषांक का और वरिष्ठ कवि विष्णुचंद्र शर्मा ने कुबेर दत्त की बिल्लियों और
बिल्लियों पर लिखी गई देश-दुनिया की कविताओं पर आधारित टेबल कैलेण्डर का लोकार्पण
किया। इस मौके पर वरिष्ठ कवि रामकुमार कृषक ने कुबेर दत्त पर केंद्रित कविता पढी,
'कल के लिए' के सम्पादक
जयनारायण का ऑडियो सन्देश सुनाया गया। डॉ. बलदेव बंशी ने कुबेर जी से जुड़े संस्मरण
सुनाए। कृष्ण कल्पित ने कहा कि दुनिया में शायद ही कुबेर जी जैसा कोई दूसरा
प्रसारक होगा, जिसने 30 साल तक कला-साहित्य पर उत्कृष्ट कार्यक्रम बनाया हो। उन्होंने उनको उच्च
कोटि के प्रसारक और संवेदनशील कवि के रूप में याद किया। युवा आलोचक गोपाल प्रधान
ने उन्हें अत्याधुनिक दृष्टि वाला और भारतीय समाज में गहरे धंसा जनसांस्कृतिक
बुद्धिजीवी बताया।
आयोजन की
अध्यक्षता वरिष्ठ कवि विष्णुचंद्र शर्मा ने की। उन्होंने कहा कि हम किससे संवाद
करते हैं, इस पर विचार करना बेहद जरूरी है। हमारे समय
की विडम्बना यह है कि संवाद के भीतर से जनता गायब होती जा रही है जबकि इस दौर में
दोस्तों की खोज बेहद जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन सुधीर सुमन ने किया। कार्यक्रम
के आरम्भ में रेल दुर्घटना और नोटबंदी के कारण मारे गए आम लोगों के शोक में एक
मिनट का मौन रखा गया। उसके बाद संगवारी के कपिल शर्मा, अतुल और देवव्रत ने हबीब जालिब की नज़्म 'क्या लिखना’ सुनाया। धन्यवाद ज्ञापन दूरदर्शन
आर्काइव्स की पूर्व निदेशक और सुप्रसिद्ध नृत्य निर्देशक कमलिनी दत्त ने किया। इस
अवसर पर कवि मंगलेश डबराल, मृत्यंजय,
कहानीकार महेश दर्पण, योगेन्द्र आहूजा, चर्चित चित्रकार
अशोक भौमिक, जसम के महासचिव आलोचक प्रणय कृष्ण,
आशुतोष कुमार, बजरंग
बिहारी तिवारी, कवितेंद्र, पत्रकार आनंद प्रधान, पंकज श्रीवास्तव,
रंगकर्मी लोकेश, राजेशचंद्र,
फ़िल्मकार संजय जोशी, शिक्षिका उमा गुप्ता, शुभेंदु घोष,
भारतेंदु मिश्र, श्याम
सुशील, वासुदेवन, मालती गुप्ता, जितेन्द्र, किरण शाहीन, बृजेश, मनीषा, वंदना, तूलिका, सोमदत्त शर्मा, रविदत्त शर्मा, अरुणाभ सौरभ,
इरेंद्र, रामनिवास,
रोहित, दिनेश, अनुपम आदि मौजूद थे।
जसम
दिल्ली की ओर से
रामनरेश
द्वारा जारी
Comments