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सूर्यमल्ल मिश्रण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शुरू हुआ मंथन

कोटा, 23 अक्टूबर।


‘‘इला न देणी आपणी हालरिये हुलराय, पूत सिखावे पालणे, मरण बडाई मांय...’’ जैसी कालजयी पंक्तियों के रचनाकार महाकवि सूर्यमल्ल मीसण अपने युग के सूरज थे। जिन्होंने अपने स्वाभिमान के चलते कईं जागीरें तक ठुकरा दी थीं। ये बात साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की ओर से ‘महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रणः व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ विषय पर होटल ग्रांड चंदीराम में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के प्रथम दिन शनिवार को वरिष्ठ साहित्यकार चन्द्रप्रकाश देवल ने मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित करते हुए कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता अर्जुनदेव चारण ने की तथा विशिष्ट अतिथि रघुराज सिंह हाड़ा थे। उद्घाटन सत्र में बीज वक्तव्य वरिष्ठ साहित्यकार अम्बिकादत्त चतुर्वेदी ने दिया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता हाड़ौती अंचल के राजस्थानी गीतकार मुकुट मणिराज ने की।

सीपी देवल ने कहा कि महाकवि सूर्यमल्ल मीसण का व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना विस्तारित है कि उनकी थाह नहीं पा सकते हैं। वे मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच की कड़ी थे। उन्होंने इतिहास को भी कविता के रूप में लिखा। राजस्थानी इतिहास को समझे बगैर राजस्थानी साहित्य को भी नहीं समझा जा सकता है। बूंदी से सूरजमल का नाम नहीं है, सूरजमल से बूंदी का नाम है। वे क्रांति चेता कवि थे।

अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार अर्जुनदेव चारण ने कहा कि आधुनिक राजस्थानी जिस कवि की अंगुली पकड़ कर खड़ी हुई है, वो सूर्यमल्ल मिश्रण हैं। सत्ता ने जब भी जीवन मूल्यों का प्रतिरोध किया, वे जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए सदैव खड़े नजर आए। बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए अम्बिकादत्त चतुर्वेदी ने कहा कि सूर्यमल्ल मीसण को जानना आसान नहीं है। उनकी लेखनी बहुआयामी थी और वे डिंगल और पिंगल के ज्ञाता थे।
रघुराज सिंह हाड़ा ने कहा कि सूर्यमल्ल जी ने अपने समय को पहचान लिया था। युवा रंगकर्मी राजेन्द पांचाल और उनकी टीम ने वंश भास्कर के छन्दों को सुर और ताल के साथ गाकर सुनाया। उन्होंने ‘हर आवे छै म्हाने बूंदी के मोर्या की..’’ प्रसंग का अभिनय किया। उनके द्वारा सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा 1857 की क्रांति के समय की चेतार बात बताई। इससे पूर्व साहित्य अकादमी के सहायक संपादक शांतनु गंगोपाध्याय ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। जोधपुर विश्वविद्यालय में राजस्थानी विभागाध्यक्ष गजेसिंह राजपुरोहित, अतुल कनक, डॉ. धनन्जय अमरावत, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा के राजस्थानी विभाग की संयोजक डॉ. मीता शर्मा, परीलिका हनुमानगढ़ के साहित्यकार डॉ. सत्यनारायण सोनी ने पत्रवाचन किया। संचालन ओम नागर ने किया।
साहित्य अकादमी के राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के सदस्य डॉ. ओम नागर ने बताया कि बताया कि रविवार को तृतीय सत्र की अध्यक्षता राजस्थानी गीतकार दुर्गादान सिंह गौड़ व चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता कुन्दन माली उदयपुर करेंगे। इन दोनों सत्रों में साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही, जोधपुर के डॉ. धनंजया अमरावत, डॉ. ओम नागर और चुरू की डॉ. गीता सामोर सूर्यमल्ल मिश्रण के रचना संसार पर पत्रवाचन करेंगे। दोपहर बाद आयोजित होने वाले समापन सत्र के मुख्य अतिथि जयपुर के वरिष्ठ साहित्यकार नन्द भारद्वाज होंगे तथा अध्यक्षता जोधपुर के वरिष्ठ साहित्यकार कल्याण सिंह शेखावत करेंगे। इस सत्र के दौरान विशिष्ठ अतिथि के रूप में डॉ. आैंकारनाथ चतुर्वेदी उपस्थित रहेंगे।
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‘‘पुनर्जागरण के कवि थे सूरजमल मिश्रण’’
मायड़ भाषा के सच्चे सपूत थे कवि सूर्यमल्लः नन्द भारद्वाज
साहित्य अकादमी की दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन
महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण की प्रतिमा लगाने की मांग
गूंजी राजस्थानी को मान्यता देने की मांग


कोटा, 24 अक्टूबर।

साहित्य अकादमी नई दिल्ली की ओर से आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का सोमवार को होटल ग्राण्ड चंदीराम पर समापन हो गया। समापन सत्र से पहले आयोजित दो सत्रों में साहित्यकारों के द्वारा पत्रवाचन कर महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण के ‘कृतित्व एवं व्यक्तित्व’ पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। समापन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार नन्द भारद्वाज थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता जोधपुर के वरिष्ठ साहित्यकार कल्याण सिंह शेखावत ने की। वहीं डाॅ. औकारनाथ चतुर्वेदी विशिष्ठ अतिथि के रूप में मौजूद रहे। तृतीय सत्र की अध्यक्षता राजस्थानी गीतकार दुर्गादान सिंह गौड़ व चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता कुन्दन माली उदयपुर ने की। इन दोनों सत्रों में साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही, राजेन्द्र बारहठ, डाॅ. ओम नागर और चुरू की डाॅ. गीता सामोर ने सूर्यमल्ल मिश्रण के रचना संसार पर पत्रवाचन किया।


मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार नन्द भारद्वाज ने कहा कि महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने मायड़ भाषा की अलख जगाई। वे मायड़ भाषा के सच्चे सपूत के रूप में लोक और जनमानस में रचे बसे थे। भाषा का संस्कार बांकीदास ने बढाया, सेठिया ने बढाया, वह संस्कार का मार्ग मिश्रण के द्वारा ही दिखाया गया था। उन्होंने बिना डर और सम्मान की इच्छा किए अन्याय के खिलाफ लिखा। महिला शक्ति के साथ ही शोषित वर्ग की आवाज उनकी लेखनी में सदैव झलकती रही। वे किसी रस की सीमाओं में बंधे बगैर लिखते थे। उनके काव्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ ही स्त्री विमर्श भी भरा पड़ा है।

अध्यक्षता कर रहे कल्याण सिंह शेखावत ने कहा कि सूर्यमल्ल मिश्रण दुनिया के समस्त वाङ्मय विमर्श के नायक थे। उनके द्वारा लिखे गए राजस्थानी साहित्य की ध्वजा ने सदैव अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य का मान बढाया है। सूरजमल जी का काव्य पुनजार्गरण का काव्य है। वीर सतसई भारतीय वाङ्मय में नारी चेतना की भागवत गीता है। पूरे संसार के साहित्य में इससे बड़ा कोई महाकाव्य नारी की वंदना में नहीं लिखा गया है। वीर सतसई नारी का मार्मिक वंदन ही है। बूंदी के राव रामसिंह की पहचान कवि सूरजमल से थी, सूरजमल की पहचान राव रामसिंह से नहीं। उन्होंने साबित किया कि कलम हमेशा तलवार से बड़ी होती है। कलम ने हमेशा बड़े बड़े बदलाव लाए हैं।

औकारनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि सूर्यमल्ल मिश्रण को साहित्य अकादमी ने आज के कार्यक्रम के द्वारा राष्ट्रीय कवि की मान्यता दे दी है। मिश्रण ने जब कलम चलाई उस समय सच लिखना आसान कार्य नहीं था। कवि दुर्गादान सिंह गौड़ ने कहा कि कभी भी कोई कवि आश्रित नहीं रहा है, यदि हमें अपने पूर्वजों की कीर्ति पर शंका हो रही है तो हम अपने वर्तमान पर कभी भी गर्व नहीं कर सकते हैं। सूरजमल मिश्रण की विशेषता वंश भास्कर में नजर आती है। कुंदन माली ने कहा कि सूरजमल जी कवि होने केे साथ हमारे लिए शक्ति पुंज भी थे।
पत्रवाचन करते हुए डाॅ. ओम नागर ने बताया कि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा है कि राजस्थान ने जो साहित्य सरजा है, वैसा कहीं भी नहीं मिलता है। मीसण जी वीर रस के अग्रणी कवि थे। वीर सतसई उनकी अनमोल कृति है। वे ऋग्वेद और अथर्ववेद में बताए गए कवि रूप का साक्षात् प्रतिमान थे। आजादी के आन्दोलन में जिन पुरूषों ने सहयोग नहीं किया मीसण जी ने उन्प्हें आड़े हाथों लिया। वे सामाजिक और राजनैतिक परिदृश् के चितेरे बन गए थे। गीता सामोर ने कहा किमीसण जी धैर्यवान वीर थे। सामन्तवादी मध्यकालीन समाज में उन्होंने महिलाओकं के उत्थान का साहित्य रचा था। जितेन्द्र निर्माेही ने कहा कि सूर्यमल्ल मिश्रण आधुनिकता और पुरातनता के समागम के कवि थे। वे साहित्य की परंपरा के चन्द्रबरदाई और पृथ्वीराज राठौड़ की अगली कड़ी के कवि थे। राजेन्द्र बारहठ ने कहा कि 1857 की क्रांति से संबंधित पत्रों में मीसण जी के क्रांति के विचार संगृहीत हैं। उन्होंने आश्रय काव्य के दौर में भी स्वतंत्र विषयों पर काव्य रचना की। संचालन गोरस प्रचण्ड ने किया।

राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के सदस्स डाॅ. ओम नागर ने बताया कि संगोष्ठी में साहित्य अकादमी राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल संयोजक अर्जुन देव चारण, राजस्थानी भाषा के विद्वान कवि चन्द्रप्रकाश देवल, मुकुट मणिराज, बशीर अहमद मयूख, अरविंद सोरल, विश्वामित्र दाधीच, किशन वर्मा, डाॅ. नन्दकिशोर महावर, खुशवंत मेहरा, कमलेश दीक्षित, सीएल सांखला, प्रेस क्लब के अध्यक्ष गजेन्द्र व्यास समेत कईं लोग मौजूद रहे।

कल्याण सिंह शेखावत ने राजस्थानी भाषा को मान्यता की बात उठाते हुए कहा कि बोडो भाषा को मान्यता के लिए 10 हजार लोगों ने आन्दोलन किया था। इस भाषा में कोई रचना और साहित्य विशेष तौर पर नहीं लिखा गया है। इसके बावजूद राजनीतिक कारणों से इसे रातोंरात मान्यता मिल गई। राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए 10 करोड़ लोग मांग कर रहे हैं, लेकिन इसे मान्यता नहीं मिल पाई है। सभी लोगों को एकजुट होकर काम करना पड़ेगा। गीता सामोर ने कहा कि विश्वविद्यालय परिवेश में राजस्थानी भाषा का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। मिश्रण की शहर मे प्रतिमा लगाने को लेकर हाथ उठाकर प्रस्ताव पारित किया गया।


ओम नागर
सदस्य राजस्थानी 
भाषा परामर्श मण्डल 
साहित्य अकादमी नई दिल्ली
94606 77638

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