ओम नागर को दिल्ली में मिला भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार ,पुस्तक -" निब के चीरे से "का हुआ विमोचन
कोटा। साहित्य जगत में हाड़ौती अंचल से विशिष्ट पहचान बनाने वाले राजस्थानी और हिंदी के युवा कवि -साहित्यकार ओम नागर को 28 जुलाई गुरुवार शाम को दिल्ली में आयोजित समारोह में भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार से नवाजा गया। दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सेंटर के गुलमोहर हॉल में अायोजित पुरस्कार और विमोचन समारोह में ओम नागर को नवलेखन पुरस्कार से पुरस्कृत करने के साथ ही ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक -" निब के चीरे से" ( युवा कवि की डायरी ) का भी विमोचन भी किया गया।
भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई के अनुसार समारोह में ज्ञानपीठ के प्रबंध न्यासी साहू अखिलेश जैन,वरिष्ठ पत्रकार मधुसुदन आनन्द के सानिध्य के साथ ही कई लेखक मौजूद रहें। इस अवसर वरिष्ठ कवि विष्णु नागर पुरस्कृत रचनाओं पर अपना वक्तव्य दिया।
वक्ताओं के अनुसार ओम नागर ने अपनी पुरस्कृत पुस्तक "निब के चीरे से" में अपने परिवेश और समाज का कोलाज हैं।जिसमें साधारण,अतिसाधारण, अपरिचित और अल्पपरिचित लोगों की कथा पर रोशनी हैं। लेखक की निगाह उधर अधिक गई है जहां शोषित प्रवंचित मनुष्य के जीवन में अँधेरा हैं। अँधेरे में एक बारीक प्रकाश रेखा के उल्लास को भी उनकी नज़र अचूक ढंग से पकड़ती है। यह डायरी अपने शहर और ग्रामीण लोकजीवन की अनेक छवियां बहुत मनोरम है और रोचक है। इस डायरी में पाठक अपना खोया या बिसरा हुआ जीवन भी कदाचित देख पायेंगे।
समारोह में ओम नागर को पुरस्कार स्वरुप 50 हजार रुपए का चैक, प्रशस्ति-पत्र और वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की । उल्लेखनीय है कि पुस्तक का प्रकाशन भी ज्ञानपीठ द्वारा ही किया गया हैं । और इस पुरस्कार योजना में अब तक प्रकाशित पुस्तकों में ओम नागर की कथेत्तर गद्य की पहली पुस्तक हैं। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवि ओम निश्चल ने किया। समारोह में नागर के अलावा अमलेंदु तिवारी को उनकेे उपन्यास 'परित्यक्त",राजस्थान के तसनीम खान को 'ऐ मेरे रहनुमा'और बलराम कांवट को उपन्यास 'मोरीला' के लिए पुरस्कृत और अनुसंशित श्रेणी में सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादेमी के युवा पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से पुरस्कृत युवा कवि ओम नागर की अब तक हिन्दी-राजस्थानी और अनुवाद की आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। ओम नागर का हाल ही में हिंदी कविता संग्रह ‘विज्ञप्ति भर बारिश’ प्रकाशित हुआ है। साथ ही पंजाबी, गुजराती, ने, संस्कृत, अंग्रेजी और कोंकणी भाषा में कविताओं का अनुवाद हुआ है। जयपुर लिटरेचर,सार्क लिटरेचर फेस्टिवल और गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की 150 वीं जयंती के उपलक्ष्य पर विश्व भारती विश्वविद्यालय, शांति निकेतन,कोलकाता में कविता पाठ के लिए अामंत्रित किया जा चुका हैं।
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