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पुंग चोलोम नृत्य परिचय

पुंग चोलोम नृत्य परिचय 

स्पिक मैके आन्दोलन ने हमेशा से ही हमें भारत के विभिन्न प्रान्तों की शास्त्रीय और लोक संस्कृति से परिचय कराने के प्रयास किए हैं।आज का दिन भी हमारे लिए पूर्वोत्तर भारत का ख़ास पहचान मणिपुरी लोक नृत्य पुंग चोलोम के नाम है। आज हमारे बीच इस विधा के बड़े गुरु एल. येमा सिंहऔर उनके निर्देशन में संगतकार सात कलाकार आएं हुए हैं। हम गुरूजी सहित श्रीमान तोम्बा सिंह जीप्रेमानंद सिंह जी, रोमेंद्रो सिंह जी, रोजित सिंह जी, रोजर सिंह जीभारत सिंह जी का स्वागत करते हैं।आज ये तमाम कलाकार संकीर्तन परम्परा में अपनी पुंग बजायेंगे। इसे मृदंग कीर्तन,धुमाल या फिर ड्रम डांस भी कह सकते हैं। इसे क्वाल और केवल पुरुष नर्तक ही करते हैं । इस कलाकारी में सामान्यतया चौदह नर्तक होते हैं जो लगभग चालीस अलग-अलग तालों में नृत्य पेश करते हैं.इस नृत्य का सम्बन्ध हमारे भारतीय हिन्दू त्योहारों से जुदा है. पशु-पक्षियों सहित युद्ध की ध्वनि देने वाली यह पुंग चोलोम की प्रस्तुति हमारे भीतर रोमांच भर देती है क्योंकि इसमें शासिरिक हावभाव बड़ा उत्साहदायक होता है. एक ख़ास तरह की पगड़ी धारण किए ये कलाकार नृत्य के बीच सर काट फेंकने की मुद्रा में पगड़ी उतारते हुए नृत्य की ले बदलते हैं.

इनके क्षेत्र में पुंग का मतलब है ढोल/ढोलक। 'पुंग चोलोम' नाम की इस स्थानीय नृत्यशैली की खासियत है कि इसमें पुरुष 'पुंग' कहे जाने वाले इस ढोल को गले में बांधकर नाचते-गाते हैं। उछलकर बड़े सधे अंदाज में जब ये नर्तक पलटते हैं उस समय भी ढोल पर पड़ने वाली इनकी थाप बेबाक और मदमस्त ही रहती है। इस कलाकारी में आपको मार्शल आर्ट के भी दर्शन हो सकेंगे। मणिपुर की लोक संस्कृति को समझने के लिहाज से यह एक ख़ास लोक नृत्य है जिसे स्पिक मैके चित्तौड़गढ़ में पहली बार आमंत्रित किया गया है। पूर्वोत्तर भारत के इस प्रसिद्द और रोमांचित कर देने वाले नृत्य का यह आयोजन खासकर आपके लिए मणिपुर से आमंत्रित किया गया है।
  


सामूहिक गान का कीर्तन रूप नृत्‍य के साथ जुड़ा हुआ है, जिसे मणिपुर में संकीर्तन के रूप में जाना जाता है । पुरुष नर्तक नृत्‍य करते समय पुंग और करताल बजाते हैं । नृत्‍य का पुरुषोचित पहलू- चोलोम, संकीर्तन परम्‍परा का एक भाग है । सभी सामाजिक और धार्मिक त्‍यौहारों पर पुंग तथा करताल चोलोम प्रस्‍तुत किया जाता है ।मणिपुर का युद्ध-संबंधी नृत्‍य- थंग-ता उन दिनों उत्‍पन्‍न हुआ, जब मनुष्‍य ने जंगली पशुओं से अपनी रक्षा करने के लिए अपनी क्षमता पर निर्भर रहना शुरू किया था ।आज मणिपुर युद्ध-संबंधी नृत्‍यों, तलवारों, ढोलों और भालों का उपयोग करने वाले नर्तकों का उत्‍सर्जक तथा कृत्रिम रंगपटल है । नर्तकों के बीच वास्‍तविक लड़ाई के दृश्‍य शरीर के नियंत्रण और विस्‍तृत प्रशिक्षण को दर्शाते हैं ।मणिपुरी नृत्‍य में तांडव और लास्‍य दोनों का समावेशन है और इसकी पहुंच बहुत वीरतापूर्ण पुरुषोचित पहलू से लेकर शांत तथा मनोहारी स्‍त्रीयोचित पहलू तक है । मणिपुरी नृत्‍य की एक दुर्लभ विशेषता है, जिसे लयात्‍मक और मनोहारी गतिविधियों के रूप में जाना जाता है । मणिपुरी अभिनय में मुखाभिनय को बहुत ज्‍यादा महत्‍व नहीं दिया जाता- चेहरे के भाव स्‍वाभाविक होते हैं और अतिरंजित नहीं होते । सर्वांगाभिनय या सम्‍पूर्ण शरीर का उपयोग एक निश्चित रस को संप्रेषित करने के लिए किया जाता है, यह इसकी विशिष्‍टता है ।

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