प्रेस विज्ञप्ति
अच्छा रचनाकार संकेतों में अपनी बात कह देता है-डॉ. सत्यनारायण व्यास
चित्तौड़गढ़ 21 मार्च 2015
इतिहास गवाह है कि चित्तौड़गढ़ की धरती ने रचनाकारों को सदैव आकर्षित किया है। यह माटी हमेशा ऊर्जा देती है।मेरा मानना है कि अच्छा रचनाकार सदैव संकेतों में ही कुछ कहता है और बाक़ी काम वो पाठक के भरोसे छोड़ता है। एक तरफ अब साहित्य में लोकप्रिय और सर्वश्रेष्ठ दो गुण हैं और इनके बीच चयन को लेकर बहुत सारे मत हैं।वहीं दूसरी तरफ इतना कूड़ा छप रहा है कि पाठक के सामने चुनने का संकट है। मैं साहित्यिक रचनाओं में प्रयोग का पक्षधर हूँ मगर खिलवाड़ का नहीं। हालांकि कल्पना के बगैर साहित्य रचना संभव नहीं है मगर साहित्य को सिर्फ कला के लिए रचना ग़लत दिशा में जाना हो जाएगा। योगेश कानवा की कहानियों में सामाजिक दायित्वबोध का साफ़ संकेत है और इस संग्रह को उनकी शुरुआत समझा जाना चाहिए। योगेश जैसे एक गैर-साहित्यिक का साहित्य को लेकर किया गया इतना रचनाकर्म भी स्वागत योग्य है।
यह विचार हिंदी समालोचक और कवि डॉ. सत्यनारायण व्यास ने बतौर मुख्य अतिथि स्पिक मैके द्वारा विजन स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट चित्तौड़गढ़ में आयोजित एक पुस्तक विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए। अतिथियों द्वारा दीप-प्रज्ज्वलन और कहानी संग्रह के लोकार्पण किया गया। सुनीत श्रीमाली, दीपमाला कुमावत, जे.पी.भटनागर और कामरेड आनंद छीपा ने अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया।इस साहित्यिक सत्र की भूमिका रखते हुए माणिक ने समारोह का संचालन किया।आयोजन में बतौर विशिष्ट अतिथि डॉ. साधना मंडलोई और आकाशवाणी जैसलमेर के केंद्र अभियंता जीतेन्द्र सिंह कटारा भी मौजूद थे।
इस मौके पर आमंत्रित वक्ताओं ने संग्रह पर समीक्षात्मक टिप्पणियाँ की। डॉ. संगीता श्रीमाली ने कहा कि लेखक ने कहानियों में अपने ढंग से समाज को आईना दिखाने का भरसक प्रयास किया है।शुरुआती तीन कहानियों में मानवीय संवेदनाओं के क्षरण पर चिंता ज़ाहिर की है और वहीं से पूरे संग्रह के प्रति रूचि जाग उठती है।युवा समीक्षक और कॉलेज के हिंदी प्राध्यापक डॉ. राजेन्द्र सिंघवी ने कहा कि कानवा की लघुकथाओं में वैश्वीकरण से उपजी चिंताओं को ठीक से उकेरा गया है और दलित चिंतन की छोटी सी आहट कहीं-कहीं दिखी है। इस पहले संग्रह को कथा साहित्य की आलोचना के मानकों पर नहीं कसा जाना चाहिए। मेरे अनुसार कहानियों में विभिन्न भाषाओं पर लेखक की पकड़ पाठकों का ध्यान ज़रूर खिंचेगी।
युवा आलोचक डॉ. कनक जैन के अनुसार इस दौर में लिखे जा रहे मुश्किल शब्दावली से भरे साहित्य में योगेश कानवा का संग्रह भाषा के लिहाज से सरल और सुगम साबित हुआ है जो पाठकों को सीधे-सीधे अपनी बात कह पा रहा है। समस्त कहानियों में लेखक की यात्राओं के एकाकीपन से निकली पीड़ा को आवाज़ मिली है। हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश चौधरी ने वर्तमान समय में स्त्री और दलित विमर्श देखी गयी दिशाहीनता पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि स्त्रियों की तरफदारी की जानी चाहिए मगर उसमें अतिवादी दृष्टिकोण से बचना होगा। उन्नीस सौ नब्बे के बाद से लगातार किसानों की आत्महत्या बाज़ारवाद की ही देन है ऐसे तमाम समीकरणों को हमें समझना होगा।दलित चिंतन के नाम पर रचे जा रहे साहित्य में दलित के प्रति झुकाव और उसमें बरता जाने वाला अति उत्साह उस दलित को भी कभी वंचक बना सकता है इस ख़याल को लेकर भी सावधानी की ज़रूरत है। इन विमर्शों के कुछ संकेत कानवा की कहानियों में आएं हैं। बाद में डॉ. रमेश मयंक ने भी एक संक्षिप्त टिप्पणी पेश की।
अध्यक्षता कर रहे स्वतंत्र पत्रकार नटवर त्रिपाठी ने कथाकार कानवा के व्यक्तित्व पर अपने मन की कहते हुए उनके साथ के यात्रा अनुभवों पर बात की।अपनी रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए कवि और आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ के कार्यक्रम अधिकारी योगेश कानवा ने कहा कि इस संग्रह की सभी कहानियां चित्तौड़ प्रवास के दौरान लिखी गयी हैं।यहाँ की साहित्यिक बिरादरी और साथियों ने मुझे लगातार ऊर्जा दी है।अंत में उपस्थित सदन ने सामाजिक कार्यकर्ता गोविन्द पंसारे, कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण, हिंदी आलोचक कृष्णदत्त पालीवाल, राजनेतिक चिन्तक रजनी कोठारी, दलित चिन्तक प्रो. तुलसीराम, समाजवादी चिन्तक और कवि नन्द चतुर्वेदी को श्रृद्धांजलि दी गयी। आयोजन की शुरुआत और अंत में युवा गायक जिन्नी जोर्ज ने गिटार वादन के साथ उड़ान और आशाएं नामक संदेशपरक गीत पेश किए।
विमाचन में आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रमुख चिमनाराम, शिक्षाविद डॉ. ए.एल.जैन, अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन के समन्वयक मोहम्मद उमर, मीरा स्मृति संस्थान अध्यक्ष भंवर लाल सिसोदिया, नाबार्ड के निदेशक पंकज झा, कर्नल रणधीर सिंह, गीतकार अब्दुल ज़ब्बार, रमेश शर्मा, नन्द किशोर निर्झर, सोहनलाल चौधरी, चंद्रकांता व्यास सहित आकाशवाणी के लगभग चालीस कोम्पियर मौजूद थे। आयोजन के सूत्रधार भगवती लाल सालवी, देवेन्द्र पालीवाल, सांवर जाट,विष्णु गोस्वामी और स्नेहा शर्मा थे। अंत में आभार स्पिक मैके राज्य सचिव अनिरुद्ध ने व्यक्त किया।
सांवर जाट
सचिव स्पिक मैके चित्तौड़गढ़
यह विचार हिंदी समालोचक और कवि डॉ. सत्यनारायण व्यास ने बतौर मुख्य अतिथि स्पिक मैके द्वारा विजन स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट चित्तौड़गढ़ में आयोजित एक पुस्तक विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए। अतिथियों द्वारा दीप-प्रज्ज्वलन और कहानी संग्रह के लोकार्पण किया गया। सुनीत श्रीमाली, दीपमाला कुमावत, जे.पी.भटनागर और कामरेड आनंद छीपा ने अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया।इस साहित्यिक सत्र की भूमिका रखते हुए माणिक ने समारोह का संचालन किया।आयोजन में बतौर विशिष्ट अतिथि डॉ. साधना मंडलोई और आकाशवाणी जैसलमेर के केंद्र अभियंता जीतेन्द्र सिंह कटारा भी मौजूद थे।
इस मौके पर आमंत्रित वक्ताओं ने संग्रह पर समीक्षात्मक टिप्पणियाँ की। डॉ. संगीता श्रीमाली ने कहा कि लेखक ने कहानियों में अपने ढंग से समाज को आईना दिखाने का भरसक प्रयास किया है।शुरुआती तीन कहानियों में मानवीय संवेदनाओं के क्षरण पर चिंता ज़ाहिर की है और वहीं से पूरे संग्रह के प्रति रूचि जाग उठती है।युवा समीक्षक और कॉलेज के हिंदी प्राध्यापक डॉ. राजेन्द्र सिंघवी ने कहा कि कानवा की लघुकथाओं में वैश्वीकरण से उपजी चिंताओं को ठीक से उकेरा गया है और दलित चिंतन की छोटी सी आहट कहीं-कहीं दिखी है। इस पहले संग्रह को कथा साहित्य की आलोचना के मानकों पर नहीं कसा जाना चाहिए। मेरे अनुसार कहानियों में विभिन्न भाषाओं पर लेखक की पकड़ पाठकों का ध्यान ज़रूर खिंचेगी।
युवा आलोचक डॉ. कनक जैन के अनुसार इस दौर में लिखे जा रहे मुश्किल शब्दावली से भरे साहित्य में योगेश कानवा का संग्रह भाषा के लिहाज से सरल और सुगम साबित हुआ है जो पाठकों को सीधे-सीधे अपनी बात कह पा रहा है। समस्त कहानियों में लेखक की यात्राओं के एकाकीपन से निकली पीड़ा को आवाज़ मिली है। हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश चौधरी ने वर्तमान समय में स्त्री और दलित विमर्श देखी गयी दिशाहीनता पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि स्त्रियों की तरफदारी की जानी चाहिए मगर उसमें अतिवादी दृष्टिकोण से बचना होगा। उन्नीस सौ नब्बे के बाद से लगातार किसानों की आत्महत्या बाज़ारवाद की ही देन है ऐसे तमाम समीकरणों को हमें समझना होगा।दलित चिंतन के नाम पर रचे जा रहे साहित्य में दलित के प्रति झुकाव और उसमें बरता जाने वाला अति उत्साह उस दलित को भी कभी वंचक बना सकता है इस ख़याल को लेकर भी सावधानी की ज़रूरत है। इन विमर्शों के कुछ संकेत कानवा की कहानियों में आएं हैं। बाद में डॉ. रमेश मयंक ने भी एक संक्षिप्त टिप्पणी पेश की।
अध्यक्षता कर रहे स्वतंत्र पत्रकार नटवर त्रिपाठी ने कथाकार कानवा के व्यक्तित्व पर अपने मन की कहते हुए उनके साथ के यात्रा अनुभवों पर बात की।अपनी रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए कवि और आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ के कार्यक्रम अधिकारी योगेश कानवा ने कहा कि इस संग्रह की सभी कहानियां चित्तौड़ प्रवास के दौरान लिखी गयी हैं।यहाँ की साहित्यिक बिरादरी और साथियों ने मुझे लगातार ऊर्जा दी है।अंत में उपस्थित सदन ने सामाजिक कार्यकर्ता गोविन्द पंसारे, कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण, हिंदी आलोचक कृष्णदत्त पालीवाल, राजनेतिक चिन्तक रजनी कोठारी, दलित चिन्तक प्रो. तुलसीराम, समाजवादी चिन्तक और कवि नन्द चतुर्वेदी को श्रृद्धांजलि दी गयी। आयोजन की शुरुआत और अंत में युवा गायक जिन्नी जोर्ज ने गिटार वादन के साथ उड़ान और आशाएं नामक संदेशपरक गीत पेश किए।
विमाचन में आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रमुख चिमनाराम, शिक्षाविद डॉ. ए.एल.जैन, अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन के समन्वयक मोहम्मद उमर, मीरा स्मृति संस्थान अध्यक्ष भंवर लाल सिसोदिया, नाबार्ड के निदेशक पंकज झा, कर्नल रणधीर सिंह, गीतकार अब्दुल ज़ब्बार, रमेश शर्मा, नन्द किशोर निर्झर, सोहनलाल चौधरी, चंद्रकांता व्यास सहित आकाशवाणी के लगभग चालीस कोम्पियर मौजूद थे। आयोजन के सूत्रधार भगवती लाल सालवी, देवेन्द्र पालीवाल, सांवर जाट,विष्णु गोस्वामी और स्नेहा शर्मा थे। अंत में आभार स्पिक मैके राज्य सचिव अनिरुद्ध ने व्यक्त किया।
सांवर जाट
सचिव स्पिक मैके चित्तौड़गढ़
Comments