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''यह विकास असल में कुविकास है जहाँ चिंता सिर्फ ऊपर के दो फीसद लोगों की होती है''-प्रोफ़ेसर कमल नयन काबरा

दख़ल की परिचर्चा और पुस्तक विमोचन

दख़ल विचार मंच के तत्वावधान में “नवउदारवाद के दौर में कामगार आन्दोलन की दिशा” विषय पर एक परिचर्चा गत 10 मई को गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में आयोजित की गयी. इस अवसर पर विपिन चौधरी द्वारा लिखित पुस्तक “मैं रोज़ उदित होती हूँ (माया एंजेलो का विद्रोही जीवन)” का विमोचन भी हुआ. पुस्तक पर बोलते हुए प्रो. सविता सिंह ने कहा कि दुनिया भर के ज्ञान को अपनी भाषा में लाना ज़रूरी है. जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती उन्हें भी दुनिया का श्रेष्ठतम साहित्य पढने और साहित्यकारों/सामजिक कार्यकर्ताओं के बारे में जानने का हक है. माया एंजेलो दुनिया भर की महिलाओं और वंचितों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं और विपिन चौधरी ने उनकी जीवनी हिंदी में लिख कर एक प्रसंशनीय कार्य किया है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए.


प्रोफ़ेसर कमल नयन काबरा ने नव उदारवाद पर बात करते हुए इसके अनेक पहलुओं का ज़िक्र किया और कहा कि यह विकास असल में कुविकास है जहाँ चिंता सिर्फ ऊपर के दो फीसद लोगों की होती है. बाक़ी मरें या जियें क्या फर्क पड़ता है? प्रोफ़ेसर एस एन मालाकार ने नवउदारवाद के लक्षणों पर विस्तार से चर्चा करते हुए वाम और मज़दूर आन्दोलन की कमियों को रेखांकित किया तो कामरेड प्रदीप भट्टाचार्य ने वाम आन्दोलन की खामियों पर बहुत बेबाकी से बात की. परिचर्चा में शरद श्रीवास्तव, अविनाश पाण्डेय, देवेश त्रिपाठी, तारा शंकर, अनघ शर्मा, शशि प्रकाश सहित कई लोगों ने हिस्सेदारी की.  इसके अलावा “पलटन” तथा “मंज़िल” समूह ने कविता कोलाज और जनगीतों की प्रस्तुति दी. कार्यक्रम का संचालन अशोक कुमार पाण्डेय ने किया.





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