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अब कविता लिखने के नाम से कोई जेल नहीं जाता।

शहीद दिवस की पूर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी 

चित्तौड़गढ़ 23 मार्च,2014

अब कविता लिखने के नाम से कोई जेल नहीं जाता। किसी की कविता सुनकर राजनीति में बदलाव नहीं आता और हम देख रहे हैं कि कविता के विषयों में हमारे देश के बहुत ज़रूरी मुद्दे अब भी गायब ही हैं। कविता करना पेटभर खाने के बाद की डकार की मानिंद हो गया है। हमारे सामने की ये बेरोजगारी, पूंजीवाद, जातिवाद, आतंकवाद, भुखमरी, साम्प्रदायिकता जैसी बड़ी मुश्किलें अब कविता के इस वर्तमान परिदृश्य को सीधे-सीधे चिढ़ा रही है।आदमी अपने स्वार्थ के खातिर लगातार टूट रहा है। हमने देश की गुलामी और फिर इस आज़ादी के अंदाज़े खो दी हैं। जाने कब तक ये आदमी गिरेगा। इस दौर में हमारे कहने और करने में लगातार फरक आता जा रहा है। भौतिकता की अंधी दौड़ में हम बस भागे जा रहे है। एकदम बिना उद्देश्य के। ये विचार समग्र रूप से निकल आये तब जब शहीद दिवस की पूर्व संध्या पर चित्तौड़गढ़ की मधुवन कोलोनी में एक काव्य गोष्ठी संपन्न हुयी। आयोजन में मुख्य अतिथि टीकमगढ़ के रचनाकार लाल सहाय, विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद डॉ. ए.एल. जैन और महेंद्र पोद्दार थे। अध्यक्षता साहित्यकार डॉ. सत्यनारायण व्यास ने की. नन्दकिशोर निर्झर की मेवाड़ी में की गयी सरस्वती वंदना और कुछ मुक्तकों से गोष्ठी का आगाज़ हुआ। इससे पहले मेजबान डॉ.ए.बी.सिंह ने सभी कवियों और अतिथियों का स्वागत किया।  

अनौपचारिक माहौल में शुरू हुयी संगोष्ठी में आगंतुक अतिथि लाल सहाय ने तहत में राजनैतिक माहौल और लगातार छीजती मानवीयता पर कुछ गज़लें कही। चंदेरिया के शाइर अब्दुल हकीम अजनबी ने गंगा-जमुनी तहजीब से जुड़े शेर पढ़कर समा बाँध दिया। इस बीच कई युवा कवियों ने भी पाठ किया। भरत व्यास ने एक पत्ता, मनोज मख्खन ने मन के भाव ,राजेश राज ने फ़िल्मी गीतों पर पैरोडी, माणिक ने वक़्त का धुंधलका पूरण रंगास्वामी ने प्रेम में ईर्षा, डॉ. धीरज जोशी ने खुद को जाना  ए.के. डांगी ने दोस्ती  और देवी लाल दमामी ने महाराणा प्रताप शीर्षक वाली कवितायेँ सुनायी। रामेश्वर राम ने राजनैतिक माहौल में देश को बचाने और आम आदमी की पीड़ा को समझने की ज़रूरत पर जोर दिया। इस मौके पर राजस्थानी के गंभीर गीतकार जयसिंह राजपुरोहित ने अपनी प्रतिनिधि रचना मेवाड़ वंदना जिससे गोष्ठी में जान आयी। 

संगोष्ठी में कुलमिलाकर कवियों ने पीड़ित मानवता के पक्ष में आवाज़ लगाती कविताओं का पाठ किया इस तरह एक बार फिर से अपनी कलमों के जनपक्षधर होने का संकेत दिया है। समय के समीकरण में उलझे आदमी को उकेरती कविता से डॉ. रमेश मयंक ने और कन्याभ्रूण ह्त्या पर अब्दुल ज़ब्बार ने बहुत बेबाकी से पाठ करके गोष्ठी को सार्थकता दी।  डॉ.ए.बी.सिंह ने भी अपने चयनित दोहे पढ़ते हुए हाथ में कुचरनी करके एक कविता सुनाकर समाज में व्याप्त विसंगतियों को इंगित किया। उनके दोहों में श्रोताओं को मुश्किलों के साथ ही कठिनाइयों से सुलझने के संकेत भी मिले। कवि अमृत वाणी ने नाई की दूकान  और  सामूहिक विवाह सम्मलेन नामक कविताओं से हास्य बिखेरा। सभा का संचालन करते हुए उदघोषक और एडवोकेट अब्दुल सत्तार ने भी बेटियों और बुजुर्गों के नाम कुछ छंद तरन्नुम में पढ़े। 

आखिर में वरिष्ठ कवि डॉ सत्यनारायण व्यास ने कविता के विरोध में , टाइम नहीं , जीवन ढोता आदमी सुनाकर इस दौर में रचनाकर्म कर रहे तमाम रचनाकारों को चुनौती दी कि देश में हालात बदतर है और कविता नाकाम है।  दूसरी तरफ मेट्रो शहरों के दाम्पत्य जीवन में तेज़ी से आ रहे बदलावों की तरफ भी समय रहते संकेत किया है। डॉ व्यास ने कविता में आज के आदमी के दिशा भ्रमित होने का खुलकर चित्रण किया। आखिर में डॉ. ए. एल. जैन ने संक्षिप्त उदबोधन भी दिया। गोष्ठी में जे.पी. भटनागर, डॉ. जयश्री व्यास, शेखर चंगेरिया सहित कई श्रोता मौजूद थे। 



अब्दुल सत्तार 
गोष्ठी के सूत्रधार 

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