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अजंता लोहित स्मृति दिवस पर विचार गोष्ठी और कविता पाठ

बदलाव के लिए वैचारिक प्रतिबद्धता जरूरी है

लखनऊ, 2 फरवरी। 
आज का दौर कॉरपोरटीकरण का दौर है। देश की नीतियां कॉरपोरेट पूंजी के हितों के लिए बनाई जा रही हैं। मीडिया भी इसके पक्ष में लोगों को तैयार कर रहा है। लेकिन इसका दूसरा पक्ष है कि इन नीतियों की वजह से जनता में तबाही आई है। उसका असंतोष लगातार बढ़ रहा है। वह बदलाव चाहती है। अपनी इस भावना को वह लगातार अभिव्यक्त किया है।

यह विचार प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन ने आज लेनिन पुस्तक केन्द्र, लालकुंआ में अजन्ता लोहित स्मृति दिवस पर आयोजित विचार गोष्ठी में व्यकत किये। कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच और एपवा ने संयुक्त रूप से किया था। कार्यक्रम की अध्यक्षत जाने माने कवि व लेखक भगवान स्वरूप कटियार ने की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि 'आप’ का उदय जनता के अन्दर जो बदलाव की भावना है उसी की उपज है। जनता विकल्प चाहती है। लेकिन ‘आप’ की वैचारिक स्थिति साफ नहीं है। एक तरफ कुमार विश्वास जैसे अपने को ब्राहम्ण बताने वाले तथा ‘खाप’ का समर्थन करने वाले दक्षिणपंथी विचार के लोग हैं, तो दूसरी तरफ प्रशांत भूषण जैसे लोग हैं। यह ऐसा दौर है जब बदलाव की इस भावना का नेतृत्व करने के लिए वैचारिक प्रतिबद्धता जरूरी है।

अपने संयोजकीय वक्तव्य में जसम के संयोजक व कवि कौशल किशोर ने अजन्ता लोहित को याद करते हुए कहा कि वे वामपंथी महिला नेता के साथ वे जन संस्कृतिकर्मी भी थीं। उन्होंने न सिर्फ इस व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष किया बल्कि कैंसर जैसी बीमारी से भी लगातार संघर्ष किया। कई बार उसे पछाड़ा भी। बदलाव के प्रति यह उनकी प्रतिबद्धता थी कि जब भी वे जरा स्वस्थ होती वह जनता के बीच होतीं। अपनी अस्वस्थता के बीच भी वे कई बार जेल गईं। यह दौर ऐसा है जब कॉरपोरेट जब कुछ हड़प लेना चाहता है। वह मध्यवर्ग को अपनी फौज बनाकर खड़ा कर रहा है। बौद्धिक उत्पादन को वह अपने अनुकूल ढ़ाल रहा है। इसी का नतीजा है कि आज साहित्य व कला के नाम पर उत्सव व कार्निवाल हो रहे हैं। इसके द्वारा कोशिश है कि बाजार के अनुकूल साहित्य को ढ़ाला जाय, उसकी प्रतिरोध की धार को कमजोर किया जाय।विचार गोष्ठी को भाकपा माले के राज्य सचिव कामरेड रमेश सिंह सेंगर औश्र वकर्स कौंसिल के रामकृष्ण ने भी संबोधित किया।

कविता पाठ
‘डरी हुई हैं हमारी अतृप्त प्रेम भावनाएं’

जसम की ओर से आयोजित कविता पाठ में जहां समाज की विसंगतियों को उजागर किया गया, वहीं ऐसी कविताएं प्रस्तुत की गई जो प्रतिरोध और परिवर्तन की भावनाओं व विविध रंगों सं पूर्ण थी। भगवान स्वरूप कटियार ने ‘नीरो की बंशी’ और ‘खौफ के साये में प्रेम’ कविताएं सुनाईं। कैसे प्रेम करना भी जुर्म हो गया। वे अपनी कविता  में कहते हैं ‘हमारे मूक प्रेम का साक्षी है/यह नीम का पेड़......खौफ से थर्राये हैं/ हमारे भूमिगत शब्द/और डरी हुई है/हमारी अतृप्त प्रेम भावनाएं’।

विमला किशोर ने ‘रुकली’ और ‘यही सपना अपना है’ कविताओं का पाठ किया। इन कविताओं के द्वारा जहां स्त्रियों पर हो रहे जुल्म का बयान है, वहीं संघर्ष का संकल्प है। वे कहती हैं ‘जल रहा है देश/माताएं बेबस/औरतें इज्जत बचाने को कहां जाएं/बच्चे निरीह सा देख रहे हैं/सारा माहौल कर्फ्यू सा/ मानो एक आग सी लगी है’। लेकिन कविताओं में इन क्रूर स्थितियों को बदलने की चाहत भी है। अपनी कविता ‘रुकली’ मे बलात्कार व जुल्म की सताई रुकली का संघर्ष भाव यूं व्यक्त होता है: ‘रुकली लड़ेगी.... जरूर लड़ेगी/उनके लिए जिनकी दांव पर लगी हैं जिन्दगियां/उनके वजूद के लिए/जो अजन्में हैं अभी’।

कवि गोष्ठी में कौशल किशोर ने अपनी कविता ‘वह औरत नहीं महानद थी’ और ‘जनता करे, तो क्या करे’ सुनाई। अपनी कविता के द्वारा एक औरत की संघर्ष गाथा को उनहोंने व्यकत किया, वहीं अमरिकी साम्राजयवाद के वर्चस्व के समक्ष सरकार के समर्पण को कविता का विषय बनाया। अपनी कविता में वे कहते हैं ‘अपने पर बड़ा गुमान/कि वह जो करता है/ लोकतंत्र के लिए करता है/कटोरा बांटता है/भिखारी को जैसे रोटी के टुकड़े/वैसे ही वह फेंकता है/कटोरे में लोकतंत्र’। इस मौके पर वरिष्ठ कवयित्री शोभासिंह ने अपनी कविता ‘अर्धविधवा’ का पाठ किया। यह कविता कश्मीर के सच को बड़े ही मर्मस्पर्शी तरीके से अभिव्यक्त करती है। बी एन गौड़, उमेश चन्द्र नागवंशी, कल्पना पांडेय दीपा, उर्दू के शायर तश्ना आलमी, आदियोग, नीरद जनमित्र आदि ने भी अपनी कविताएं सुनाईं।

कौशल किशोर
संयोजक जन संस्कृति मंच, लखनऊ
मो - 9807519227

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