फाउंडेशन फार लिटरेचर, आर्ट एंड म्युजिक एनलाइटमेंट की ओर से 13 फरवरी, 2014 को लीलाधर मंडलोई की दो कृतियों ''हत्यारे उतर चुके हैं क्षीरसागर में''(सं.ओम निश्चल)(साहित्य भंडार,इलाहाबाद) व ''कवि का गद्य'(शिल्पायन प्रकाशन, दिल्ली) का लोकार्पण केदारनाथ सिंह, विश्वंनाथ त्रिपाठी, विष्णु नागर, अजय तिवारी व मदन कश्यप ने पंजाबी भवन के सभागार में किया। कार्यक्रम का संचालन मदन कश्यप ने किया। स्वागत किया फ्लेम के अध्यक्ष व कवि तजेंद्र सिंह लूथरा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन श्री राजेंद्र शर्मा ने किया।
केदारनाथ सिंह ने मंडलोई की कविताओं पर बोलते हुए कहा कि अनुभव की एक नई दुनिया मंडलोई की कविता के साथ प्रवेश कर रही है। वे वस्तुओं मौलिक गंध को कविताओं में उतारने की कोशिश करते हैं और ये कविताएं आस्वा्द की दुनिया में अलग हैं। साठोत्तर मंडलोई के प्रसंग में बोलते हुए उन्होंने नेहरु पर लिखी सुमन की कविता ' यदि तुम बूढे तो मुझे बदलनी होगी यौवन की परिभाषा'की याद दिलाते हुए कहा कि मंडलोई अभी भी युवतर ही हैं, उनकी कविता में ताजगी है। उनके पार्थिव पृथ्वी जैसे प्रयोग की दाद देते हुए केदार जी ने कहा कि वे पृथ्वी को अपने मूल अर्थ में तात्विक अर्थ में वहां पकड़ने की चेष्टा करते हैं जहॉं पृथ्वी सबसे अधिक पृथ्वी है, पेड़ सबसे अधिक पेड़ हैं। उन्होंने रसूल हमजातोव का स्मरण करते हुए कहा कि मैं उन सौभाग्यशालियों में हूँ जिन्होंने उन्हें देखा है और एक बार किसी ने उनसे पूछा कि आप वोदका क्यों पीते हैं तो उन्होंने कहा था, इसलिए कि वह मेरे होठों को जानती है। इसी तरह मंडलोई भी उस भाषा में लिखते हैं जो उन्हें जानती है। केदारजी ने कहा कि मंडलोई यह स्वीकार करते हैं कि वे मध्यवर्ग के बाहर के तलछट के कवि हैं। वे कविता को वहां ले जाते हैं जहॉं भाषा अपने सारे आवरण उतार फेंकती है। उनमें मध्यववर्ग की सारी सीमाएं तोड़ने की कोशिश मौजूद है। उनके यहां गंध स्पेर्श स्वाद और ऐंद्रिय अनुभव का एक नया संसार खुलता है, पुराने अर्थ में नहीं, नए अर्थ में ; और ऐसी नई ज़मीन जिसके पास होगी वही कविता की सीमाओं को तोड़ सकेगा।
विष्णु नागर ने मंडलोई के व्यक्तिगत पहलुओं को याद करते हुए कहा कि मंडलोई परेशान रहते हुए भी कभी परेशान नहीं दिखे। इन्हें कभी धीरज खोते हुए नहीं देखा। अपने छोटे से छोटे कर्मचारियों से मंडलोई के रिश्ते बहुत अनौपचारिक रहे । मंडलोई की कविता के साथ साथ उनके संस्मंरणों को नागर ने मूल्यवान और मार्मिक बताते हुए कहा कि मंडलोई ने जिस तरह मां की रसोई और भूख के बारे में अपने संस्मरण लिखे हैं वे विचलित करते हैं। उनके पास संस्मरणों का अकूत खजाना है।
विश्वनाथ त्रिपाठी ने गहराई में जाकर मंडलोई की कविताओं की मार्मिक व्या ख्या की और कहा कि वे जिस विधा में कविताएं लिखते हैं उसी विधा में गद्य और संस्मरण भी। उनके गद्य और कविता के बीच कोई फांक नहीं है। उन्होंने कहा कि रिश्तों में सगा होना जैसे होता है, मंडलोई अपनी कविता से वैसा ही सगा संबंध कायम करते हैं। त्रिपाठी ने उनकी कई कविताओं, विशेषकर जल और स्वप्न, की व्याख्या करते हुए कहा कि यह सौंदर्य के आस्वांद की विरल कविता है जो मानवीय करुणा के साथ जुड़ी है। अजय तिवारी ने कहा कि मंडलोई की कविता में न आडंबर है न किसी तरह का दिखावा या भावुकता। उन्हों ने जैसे एक गंधवन तैयार किया है अपनी कविताओं में। एक अलग वायुमंडल निर्मित किया है, यह एक समर्थ कवि के ही बूते का है। अपने आलेख में सुधा उपाध्यापय ने मंडलोई की कविता में बाजार के प्रतिपक्ष की नुमाइंदगी को विस्तार से निरूपित किया । अपने वक्तंव्य में कविता चयन 'हत्यारे उतर चुके हैं क्षीरसागर में' के संपादक के रुप में ओम निश्चल ने कहा कि कविता की वाचिक सरसता का जैसा आगाज़ मंडलोई की कविताएं करती हैं वैसा कम लोगों के यहां दिखता है। उन्होंने रोजेविच की कविता पंक्ति --कविता अपने कीचड़ सने जूतों से ही स्वर्ग में प्रवेश करती है--को उद्धृत करते हुए कहा कि कवियों के पांव कीचड़ में ही सने होते हैं और मंडलोई के जीवन और कृतित्व के गलियारे से गुजरते हुए ऐसा ही आभास होता है। प्रारंभ में बोलते हुए तजेंद्र सिंह लूथरा ने मंडलोई की एक कविता 'पहचान' को अरविंदा अडिगा के एक उपन्यास की विषयवस्तु से जोड़ते हुए कहा कि इस कविता में वैसा ही विचलन पैदा करने की शक्ति है जैसी शक्ति अडिगा के उस पूरे उपन्यास में है। राजेंद्र शर्मा ने अपने धन्यवाद ज्ञापन में कहा कि अच्छी कहानी कोई बुरा व्यक्ति भी लिख सकता है पर अच्छीु कविता केवल अच्छा मनुष्य ही लिख सकता है। मंडलोई की कविताएं अच्छी हैं इसलिए कि वे एक अच्छे इंसान हैं। इस अवसर पर लीलाधर मंडलोई ने अपनी लंबी कविता 'हत्यारे उतर चुके हैं क्षीरसागर में' व कई छोटी छोटी कविताओं का पाठ किया।
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