उल्हासनगर
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा संपोषित हिंदी विभाग आर. के. तलरेजा
महाविद्यालय, उल्हासनगर एवं साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था, मुंबई के संयुक्त तत्वावधान में
गत दिनों नवंबर 2013 को द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन ‘भक्ति साहित्य में विश्वबंधुत्व
की भावना’ विषय पर किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन श्रद्धेय आचार्य डॉ. शिवेंद्रपुरी के
करकमलों से संपन्न हुआ. पं. शांडिल्य ने अपने सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना
प्रस्तुत की. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. शिवेंद्रपुरी ने कहा कि
भक्ति जनमानस का मूल्य है. बीज वक्तव्य में मुंबई विश्वविद्यालय के आचार्य डॉ.
रामजी तिवारी ने भारतीय समाज के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना पर प्रकाश डाला. प्राचार्य डॉ. ललितांबाल
नटराजन ने स्वागत भाषण देते हुए संगोष्ठी में पधारे सभी व्यक्तियों का सम्मान
किया. आर. के. तलरेजा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. दशरथ सिंह ने
भक्ति साहित्य के महत्व को स्पष्ट किया. सिंधी भाषा की एकमात्र डी.लिट. उपाधि
ग्रहण करने वाले डॉ. दयाल आशा ने सिंधी भक्ति साहित्य में विश्वकल्याण की भावना पर
प्रकाश डाला.
डॉ. शिवेंद्रपुरी ने उद्घाटन सत्र में सोनभाऊ बसवंत महाविद्यालय, शाहपुर के उपप्राचार्य
एवं हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल सिंह द्वारा संपादित पुस्तक ‘वैश्विक परिदृश्य में
साहित्य, मीडिया
एवं समाज’ का विमोचन किया. इसी कड़ी में डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, हिंदी विभागाध्यक्ष, साठेय महाविद्यालय की
पुस्तक ‘सूफी
साहित्य का पुनर्मूल्यांकन’ का भा विमोचन किया गया. दक्षिण कोरिया से पधारे हिंदी के
विद्वान डॉ. को. जोग. किम ने भक्ति साहित्य को भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर तथा
विश्वकल्याण का मार्गदर्शक माना. इसी सत्र में साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की
ओर से साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली विभूतियों
को शाल, श्रीफल
और प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया. इस अवसर पर डॉ. दिलीप सिंह ने डॉ.
शिवेंद्र, डॉ.रामजी तिवारी, डॉ. दयाल आशा, डॉ. एस. एन. सिंह, डॉ. रामआह्लाद चौधरी, डॉ. बीना खेमचंदानी, डॉ. सतीश पांडेय आदि को
सम्मानित किया. डॉ. किम ने साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की वेबसाईट का उद्घाटन
किया.
प्रथम सत्र में डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने भक्ति साहित्य में व्यक्त
विश्वकल्याण की भावना पर प्रकाश डाला. कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी
विभागाध्यक्ष डॉ. रामआह्लाद चौधरी ने वर्तमान व्यावहारिकता एवं आपाधापी से भरे
जीवन में भक्ति साहित्य की प्रासंगिकता को स्पष्ट किया. सत्र के सम्माननीय अतिथि
डॉ. किम ने बड़ी सहजता से हिंदी भक्ति साहित्य की भावभूमि की कलातीत सार्वभौमिकता
को स्वीकार किया.
उच्च शिक्षा और शोध संस्था, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के आचार्य एवं अध्यक्ष
डॉ.ऋषभ देव शर्मा ने भक्ति को चेतना एवं व्यावहारिकता से जोड़ते हुए समय के साथ उसे
गंभीरता से ग्रहण करने की अनिवार्यता पर बल दिया.औरंगाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. अंबादास देशमुख ने भक्ति
साहित्य की भाषा को विश्व मानव से जोड़ने वाला मूल तंतु बताया. सत्र की अध्यक्षता
डॉ. दिलीप सिंह ने की. डॉ. मुक्ता नायडू ने संचालन किया और सभी का आभार व्यक्त
किया.
इस सत्र के आरंभ में इस वर्ष दिवंगत हुए हिंदी साहित्यकारों को स्मरण कर
श्रद्धांजलि समर्पित की गई. डॉ. राजेंद्र यादव, डॉ. के. पी. सक्सेना, डॉ. शिवकुमार आदि
साहित्यकारों की आत्मा की शांति हेतु संगोष्ठी में दो मिनट का मौन रखा गया.संगोष्ठी के उपरांत सभी अतिथियों और प्रतिभागियों को 5000 वर्ष पुराने अंबरनाथ
मंदिर, टिटवाला
गणेश गणेश मंदिर (जिसे सिद्धि मंदिर माना जाता है) का भ्रमण करवाया गया.
प्रतिभागियों की विशाल संख्या को ध्यान में रखकर संगोष्ठी के दूसरे दिन छह
समानांतर स्तरों में संगोष्ठी आयोजित की गई. अस्सी से अधिक प्रपत्र प्रस्तुत किए
गए जिनमें सूर, कबीर आदि के अलावा मराठी, सिंधी, तमिल, कन्नड़, पंजाबी आदि अन्य भारतीय भाषाओं के भक्तों के साहित्य में
वर्णित विश्वकल्याण और विश्वबंधुत्व की भावना पर प्रकाश डाला गया. इन छह समानांतर
सत्रों में विभक्त संगोष्ठी के विषय थे – साहित्य और मानव मूल्य, सूफी साहित्य और लोक संग्रह,
हिंदीतर भाषाओं
में विश्वबंधुत्व की भावना, भक्ति, दर्शन एवं कृष्ण काव्य, राम साहित्य और लोकमंगल आदि. इन
सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः डॉ. दिलीप सिंह, डॉ. रामआह्लाद चौधरी, डॉ. अनिल सिंह, डॉ. अंबादास देखमुख,
डॉ. ऋषभ देव शर्मा
और डॉ. अशोक धुलधुले ने की.
संगोष्ठी के समानांतर सत्रों में डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ. श्रीराम जी तिवारी, डॉ. घरत अर्जुन, डॉ. नारायण, डॉ. उत्तम भाई पटेल,
डॉ. माधव पंडित,
डॉ. विष्णु सर्वदे,
डॉ. शेषारत्नम,
डॉ. रामनाथम और
डॉ. मधुकर पाडवी विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहें. उक्त सत्रों का संचालन डॉ.
मोहसिन खान, प्रा. संजय निबलाकर, डॉ. एम. एच. सिद्दीकी, डॉ. शील अहुजा तथा डॉ. मिथिलेश
शर्मा ने किया.
समापन सत्र में साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था द्वारा डॉ. शीला गुप्ता,
डॉ. शेषारत्नम,
डॉ. मुक्ता नायडू,
डॉ. अशोक धुलधुले,
डॉ. शेख हसीना,
डॉ. शीतला प्रसाद
दुबे का प्राचार्य ललितांबाल नटराजन एवं डॉ. दिलीप सिंह ने शाल, श्रीफल एवं प्रशस्तिपत्र
प्रदान कर सम्मानित किया. इस सत्र के अध्यक्ष डॉ. दिलीप सिंह ने संगोष्ठी की सफलता
और उपलब्धियों की चर्चा करते हुए संस्था की ओर से सभी का आभार व्यक्त किया. इस
अवसर पर उपप्राचार्य नंद वघारिया, कोंकण से पधारे प्रा. अर्शद आवटे, गुजरता से आए डॉ. उत्तम भाई पटेल,
प्रा. रीना सिंह
एवं छात्र प्रतिनिधि डॉ. उपाध्याय सूर्यभान ने संगोष्ठी के विभिन्न पक्षों पर अपनी
टिप्पणी प्रस्तुत की.
समापन सत्र का कुशल संचालन डॉ. अनिल सिंह ने किया. संगोष्ठी को सफल बनाने में
सक्रिय सहयोग देने हेतु डॉ. अनिल सिंह, सह संयोजिका प्रा. रीना सिंह, प्रा. योगेंद्र खत्री, डॉ. अजय सिंह, डॉ. पी. के. सिंह और
कर्मठ छात्राओं को धन्यवाद देते हुए संगोष्ठी के संयोजक डॉ. संतोष मोटवानी ने सभी
के प्रति आभार व्यक्त किया.
प्रस्तुति
- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
प्राध्यापक, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद – 500004
ईमेल – neerajagkonda@gmail.com
Comments