संगीत और युवाओं का रिश्ता
किसी भी राष्ट्र की जीवन्तता का परिचायक रहा है पर इन सबके बावजूद हमारे यहाँ सन्
1952 से 1957 तक सरकारी रेडियों पर यह प्रतिबन्धित रहा है। यहाँ के रेडियों
केन्द्रों पर हारमोनियम के प्रतिबन्ध के बावजूद लोगों का संगीत से रिश्ता बना रहा।
यह अलग बात है कि अब उसका रास्ता सिनेमा से होकर गुजरने लगा। उस दौर में रेडियों
सिलोन की लोकप्रियता के माने भी इसी से तय हुए। जल्द ही सरकार को अपनी गलती का
अहसास हुआ और उन्होंने नरेन्द्र शर्मा के नेतृत्व में विविध भारती की स्थापना की, जिसने आजाद भारत
में भारतीय संगीत के प्रत्येक रूप को अवाम तक पहुँचाने का उल्लेखनीय काम किया।”यह बात ‘विकासशील समाज
अध्ययन पीठ’ (CSDS)
के फैलो डॉ.
रविकान्त ने जेएनयू (नयी दिल्ली) में आयोजित दूसरे पीयूष किशन युवा पुरस्कार-2013
समारोह में‘सिनेमा का संगीत’ पर दिए विशेष व्याख्यान
में कही।उन्होंने कहा कि “सिनेमा के संगीत में लय और अर्थ का अनूठा संयोग
उस दौर की सबसे बड़ी खासियत थी, जिसने युवाओं को खासा प्रभावित किया और वह खुद भी युवाओं से
प्रभावित हुआ। इन सिनेमाई गीतों में निहित आदर्श और यथार्थ के द्वन्द्वात्मक
रिश्ते को नेहरूयुगीन मोहभंग से भी जोड़कर देखा जा सकता है। इसके अलावा इस संगीत
ने उस दौर में, जब भाषा की ही
तरह संगीत को भी हिन्दू और मुसलमान में बाँटकर देखा जाने लगा था, गंगा-जमुनी
तहजीब को बनाए और बचाए रखने का काम किया। इसने आने वाली कई पीढियों के लिए
प्रकाशस्तम्भ का काम किया है, बावजूद इसके कि कई बार उसकी लौ कमजोर भी हुई।”
संवेद फाउण्डेशन
द्वारा दिया जाने वाला दूसरा पीयूष किशन युवा पुरस्कार-2013 शास्त्रीय संगीत की
युवा गायिका सुश्री रेखा कुमारी को दिया गया। यह पुरस्कार युवा खिलाड़ी, कलाकार और
प्रबन्ध शास्त्र के मेधावी छात्र पीयूष किशन की स्मृति में हर साल उनके जन्मदिवस
(19 दिसम्बर) पर आयोजित समारोह में दिया जाता है। पहला पीयूष किशन युवा
पुरस्कार-2012 आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों और विधवाओं के साथ काम करने वाले युवा
सामाजिक कार्यकर्ता रामाशंकर कुशवाहा (सम्पर्क सोसायटी) को दिया गया था। इस बार यह
पुरस्कार संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे युवाओं में एक शास्त्रीय
संगीत गायिका सुश्री रेखा कुमारी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (नयी दिल्ली) के
समाज विज्ञान संस्थान-1 सभागार में आयोजित एक समारोह में श्रीमती अंजलि मित्तल
द्वारा दिया गया। श्रीमती अंजलि मित्तल और डॉ. मणीन्द्रनाथ ठाकुर ने उन्हें सम्मान
स्वरूप प्रशस्ति-पत्र, ग्यारह हजार
रुपये का चैक और प्रतीक चिह्न प्रदान कर पुरस्कृत किया। सुश्री रेखा कुमारी का चयन
पाँच सदस्यों की एक निर्णायक मण्डली द्वारा पुरस्कार के लिए प्राप्त नामांकनों में
से किया गया। निर्णायक मण्डल में राजन अग्रवाल, डॉ. आशा, डॉ. ऋषितोष, बिपिन तिवारी और
पुखराज जाँगिड़ शामिल थे।
कार्यक्रम की शुरूआत पीयूष
किशन के जीवन पर उनके साथियों द्वारा निर्मित वृत्तचित्र के प्रदर्शन से हुई।वृत्तचित्र
के प्रदर्शनके बाद पीयूष किशन के कई मित्रों और पारिवारिक सदस्यों ने पीयूष किशन
से जुड़े संस्मरण साझा किए। इन संस्मरणों से निर्मित होते पीयूष किशन हमें एक आम
इन्सान की ही तरह मुश्किल भरे दौर से गुजरते हुए तो नजर आता हैं पर वो विपरित
परिस्थितियों से डरकर भागता नहीं बल्कि आत्मविश्वास, धैर्य और जिन्दादिली के साथ उनका
सामना करता है और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है। इन संस्मरणों में
वे एक उत्सवधर्मी युवा के रूप में हमारे सामने आते है। सबके चहेते और प्यारे।17
दिसम्बर 1988 को बिहार के एक छोटे से कस्बे जमालपुर में जन्मे पीयूष (माता-श्रीमती
कुमकुम कुमारी, पिता-श्री किशन
कालजयी) की प्रारम्भिक शिक्षा जमालपुर में और उच्च शिक्षा दिल्ली व मुम्बई में
हुई। वे क्रिकेट के राज्य स्तरीय खिलाड़ी और राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ‘सबलोग’के प्रबन्धक थे।
उनका दृढ विश्वास था कि एक खिलाड़ी को अपने खेल से प्यार करना चाहिए; उसे खुद की
सन्तुष्टि और आनन्द के लिए खेलना चाहिए न कि जीत के लिए। खेल और शिक्षा के अलावा
उनका पूरा समय दोस्तों के साथ सामाजिक कार्यों और दूसरों की खुशियों से जुड़ा रहा।
30 जनवरी 2012 को मुम्बई में एक रेल दुर्घटना में उनका असामयिक निधन हो गया।
संवेद फाउण्डेशन के न्यासी
और प्रखर समाजशास्त्री डॉ. मणीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा
कि यह सम्मान पीयूष किशन की ही तरह जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टि रखने वाले
प्रतिभाशाली युवाओं के माध्यम से भविष्य को बुनने का एक आयोजन है। खुद पीयूष किशन
एक ऐसा युवा था जिसकी उपस्थिति मात्र से लोग उल्लसित हो उठते और उनका खालीपन गायब
हो जाया करता। इस पुरस्कार के माध्यम से हम उस शख्स का सम्मान करना चाहते है, जो जीवन को
पीयूष किशन की ही तरह जिन्दादिली से जीता हो; ऐसी सम्भावनाशील
युवा प्रतिभाएँ जो समाज के विविध क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रही हैं जो
पीयूष किशन के जीवन दर्शन‘यह मत सोचो कि जिन्दगी में कितने पल है, यह सोचो
कि हर पल में कितनी जिन्दगी है’ में विश्वास रखती हैं।
पुरस्कृत कलाकार रेखा
कुमारी ने लगभग आधे घण्टे की शानदार प्रस्तुति दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता संवेद
फाउण्डेशन के न्यासी और प्रखर समाजशास्त्री डॉ. मणीन्द्रनाथ ठाकुर ने तथा कार्यक्रम
का सुचारूसंचालन पीयूष किशन स्मृति युवा पुरस्कार समिति की संयोजक तृप्ति पाण्डेय
ने किया। कार्यक्रम में पीयूष किशन के पारिवारिक सदस्यों के साथ-साथ कई वरिष्ठ व
युवा सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद्, साहित्यकार और साहित्यप्रेमी और विद्यार्थी
उपस्थित थे।पीयूष की स्मृति के बहाने अब यह पुरस्कार हमारे समय के बेहतरीन युवा
प्रयासों केलिए एक बेहतरीनमंच के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। उम्मीद है सामाजिक
कार्यकर्ता रामाशंकर कुशवाहा और शास्त्रीय संगीत गायिका रेखा कुमारी के बाद आने
वाली युवा प्रतिभाएँअपने उद्यम, साहस, बुद्धि और धैर्य कुछ महत्त्वपूर्ण रचेंगे उनका
काम समाज को अधिक संवेदनशील बनाएगा.
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