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विजयदान देथा के निधन से हमने लोकजीवन के दुर्लभ रचनाकार को खो दिया है

कौशल किशोर

कथाक्रम के कार्यक्रम से लौटा ही था कि राजस्थानी भाषा के रचनाकार विजयदान देथा के निधन की खबर मिली। धक्का सा लगा। एक दुख से हम उबर भी नहीं पा रहे हैं कि  दूसरा दुख चोट करने को तैयार है। हमारे साहित्य जगत में यह क्या हो रहा है। यह स्तब्ध कर देने वाली  खबर है। कुछ साल पहले की बात है कि हम इसी तरह कथाक्रम से लौटे थे कि डॉ कुंवरपाल सिंह के निधन की खबर मिली थी। बड़ा आघात लगा था। लगता है मन और दिल को सख्त करना पड़ेगा। इन आघातों के लिए अपने को तैयार करना होगा। एक एक कर पुरानी पीढ़ी के रचनाकार जा रहे हैं। 

विजयदान देथा नगरों व महानगरों की चकाचौंध से दूर लोक में बसने व लोकजीवन को रचने वाले रचनाकार रहे हैं। उन्होंने राजस्थानी लोकगाथाओं व लोककथाओं को समृद्ध किया, पारंपरिक सांचे को तोड़ते हुए उसे नये संदर्भों में प्रस्तुत किया तथा उसे अपनी कहानियों के माध्यम से राजस्थान के बाहर बहुत दूर तक पहुंचाया। दुनिया को लोक संस्कृति की अकूत ताकत से परिचित कराया। उसे सांस्कृतिक संस्कार प्रदान किये और लोकगाथाओं को साहित्य की परंपरा से जोड़ा। उन्होंने राजस्थानी भाषा में रचनाएं की। उनकी रचनाएं हिन्दी में ही नहीं अनेक भाषाओं में अनूदित हुईं। 

यह उनकी कहानियों की विशेषता थी कि न सिर्फ नाटककारों ने उन पर नाटक किये बल्कि फिल्मकारो  ने फिल्में बनाई। हबीब तनवीर के नाटक ‘चरणदास चोर’ को कोई कैसे भूल सकता है जो विजयदान देथा की कहानी पर आधारित है। उसी तरह मणि कौल ने उनकी कहानी पर फिल्म ‘दुविधा’ बनाई थी। इसमें स्त्री जीवन और उसकी पीड़ा की अत्यन्त मार्मिक कथा है। 2011 के जसम के लखनऊ फिल्म फेस्टिवल में यह फिल्म दिखाई गयी थी। इसी तरह अमोल पालेकर के निर्देशन पर इनकी कहानी पर ‘पहेली’ भी आई थी। उनके निधन से हमने लोकजीवन व लोकसंस्कृति के दुर्लभ रचनाकार को खो दिया है।

पहली सितम्बर 1926 के जन्मे विजयदान देथा की मृत्यु के समय उम्र 87 साल थी। उन्होंने 800 के आसपास कहानियां लिखी। कहानियों के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास व आलोचना की पुस्तकों की भी रचना की। ‘बातां री फुलवारी’, ‘उजाले के मुसाहिब’, ‘दोहरी जिन्दगी’, ‘सपन प्रिया’, ‘महामिलन’ आदि इनका कथा साहित्य है, वहीं ‘समाज और साहित्य’, ‘गांधी के तीन हत्यारे’ आदि उनकी आलोचना पुस्तके हैं। उन्हें पद्मश्री और साहित्य अकादमी सहित कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

कौशल किशोर,संयोजक, जन संस्कृति मंच, लखनऊ,मो-9807519227
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