20 अक्टूंबर, उदयपुर फिल्म सोसाइटी की “मासिक फिल्म स्क्रीनिंग” की शुरुआत “स्वांग” बैंड के गीतों और फिल्म “हरिश्चंद्रा ची फेक्ट्री” से हुई। उदयपुर फिल्म सोसाइटी की शुरुआत, हिन्दुस्तानी सिनेमा के शुरुआत की कहानी के साथ।स्क्रीनिंग का आगाज़ “स्वांग” बैंड के गाए गीत “कुत्ते” और “माँई नी मेरी मैं नई डरना” से हुआ। 16 दिसंबर की घटना के बाद “स्वांग” बैंड द्वारा रचे गए गीत “माँई नी मेरी...” को दर्शकों ने खूब सराहा। साथी आशुतोष ने इसे “होलीवुडिया” या “बोलीवुडिया-बैंड” के इतर एक “गैर-मामूली मकसद के लिए बना बैंड” कहा। साथी धर्मराज ने “कुत्ते” गीत को मौजूदा-दौर में सार्थक बताया।
इसके बाद फिल्म “हरीश चंद्रा ची फेक्ट्री” का परिचय साथी विलास जानवे ने दिया। फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद चर्चा की शुरुआत साथी पंखुड़ी ने की। उन्होने दादा साहब फाल्के के साथ ही उनकी पत्नी के योगदान को महत्वपूर्ण बताया। इसी में, हिन्दुस्तानी-सिनेमा के शुरुआती दौर की अभिनेत्रियों के संघर्ष पर भी बात हुई। पहली अभिनेत्री कमला बाई को याद करना तो मौजूं था ही।
नए साथी विक्रम ने परेश मोकाशी के “सिनेमा-ट्रीटमेंट” को “क्रिएटिव” और “ओरिजिनल” बताया। थियेटर का लंबा अनुभव रखने वाले परेश मोकाशी के फिल्मी-किरदारों और “स्टोरी-नरेशन” मे भी थियेटर की मौजूदगी साफ झलकती है। दरअसल इस फिल्म में मोकाशी ने दादा साहब फाल्के के संघर्षपूर्ण-दौर को हास्य के साथ पर्दे पर उकेरा है। ये “फिल्म-इंडस्ट्री” के तथाकथित “स्ट्रगल” शब्द के मिथक को पूरी तरह तोड़ डालती है। साथी शैलेंद्र ने इसे “सेलिब्रेशन ऑफ स्ट्रगल” कहा। चर्चा का संचालन शैलेंद्र प्रताप सिंह ने किया।
एक बात और...
स्क्रीनिंग के ठीक दो दिन पहले किन्ही वजहों से स्क्रीनिंग कैंसिल करनी पड़ी। लेकिन बाद में आनन-फ़ानन में जगह बदली। जगह की व्यवस्था साथी ललित दक ने की। प्रोजेक्टर साथी चंद्र देव ओला के घर से उठा लाए। एक और सक्रिय साथी प्रीति बोर्दिया ने अपने घर से स्पीकर भिजवाए। स्क्रीन की व्यवस्था “आस्था” संस्थान से करवाने के लिए साथी एकलव्य और अश्विनी जी को शुक्रिया। फिल्म सोसाइटी में इस बार 6-नए साथी भी जुड़े और स्क्रीनिंग नियत दिन और तय समय पर हुई।ये व्यवस्था एक नर्सरी स्कूल के खाली पड़े हॉल में की गई। हॉल में बेकार पड़े सामान को हटाने का काम साथी धर्मराज और शैलेंद्र ने किया। साथी पंखुड़ी, अंकिता, अभिषेक, छुटकी नेहा और बड्की नेहा ने हॉल की सफाई में साथ दिया। इतना करने के बाद जिद्दी प्रोजेक्टर 3.55 तक नहीं चला। जिद्दीयों के जिद्दी, जुनूनी साथी धर्मराज तुरंत भाग कर एक नई पिन ले आए। 3.56 पर प्रोजेक्टर सरपट दौड़ा। शाम 4.02 पर पर्दे पर “स्वांग” टीम थी और 4.30 पर दादा साहेब फाल्के मुस्कुरा रहे थे।
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