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कुबेर दत्त स्मृति आयोजन

4 अक्टूबर 2013, शुक्रवार, 5 बजे शाम
गांधी शाति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, आईटीओ के पास, नई दिल्ली

4 अक्टूबर 2013 को शाम 5 बजे से गांधी शांति प्रतिष्ठान में चर्चित मीडियाकर्मी, फिल्मकार, चित्रकार और कवि कुबेर दत्त की स्मृति में जन संस्कृति मंच की ओर से एक आयोजन हो रहा है। कुबेर दत्त ने दूरदर्शन में नौकरी करते हुए प्रगतिशील-लोकतांत्रिक मूल्यों, विचारों और साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को जिस कंर्सन के साथ दर्ज किया, वह अपने आप में एक मिसाल है। उसे अगर संरक्षित किया जाए, तो न केवल वह हमारी साहित्यिक-सांस्कृतिक थाती के तौर पर सुरक्षित होगा, बल्कि डाक्युमेंटरी, इंटरव्यू आदि की कला तथा कलाओं के अंतर्संबंध के अध्ययन के लिहाज से उपयोगी हो सकता है. 

2 अक्टूबर 2011 को कुबेर दत्त का आकस्मिक निधन हुआ था। जसम की ओर से उसके बाद आयोजित शोकसभा में निर्णय लिया गया था कि हर साल उनकी स्मृति में एक व्याख्यान का आयोजन किया जाएगा। पिछले साल पहला स्मृति व्याख्यान कवि मंगलेश डबराल ने ‘साहित्य और मीडिया’ पर दिया था। इस साल चित्रकार अशोक भौमिक चित्रकला में प्रतिरोध विषय पर दूसरा कुबेर दत्त स्मृति व्याख्यान देंगे। आम तौर पर चित्रकला को विचार या जनप्रतिरोध से दूर का रिश्ता रखने वाली कला समझा जाता है, लेकिन अशोक भौमिक इस समझ के विपरीत चित्रकला में प्रतिरोध की एक पूरी परंपरा से अवगत कराएंगे। वे पिछले कई वर्षों से इस परंपरा के इतिहास को सामने लाने में शिद्दत से लगे हुए हैं। उन्होंने चित्त प्रसाद, सोमनाथ होड़, जैनुल आबदीन, कमरूल हसन जैसे चित्रकारों के महत्व को स्थापित किया है। हमारे समय में जबकि सूचना साम्राज्य के जरिए शासकवर्ग के झूठ के चित्र अनवरत हमारी आंखों और चेतना पर प्रक्षेपित किए जा रहे हों, तब जनता के पक्ष में चित्रकार की तूलिका और रंग के इस्तेमाल की महान परंपरा क्या हमारे या हमारी जनता के काम आ सकती है, अशोक भौमिक के व्याख्यान को सुनते-देखते हुए हम इस पर विचार कर सकते हैं।

आयोजन 45-45 मिनट के तीन सत्रों में बंटा होगा। पहले सत्र में स्मृति व्याख्यान होगा। दूसरे सत्र में कुबेर दत्त के नए कविता संग्रह ‘इन्हीं शब्दों में’ का लोकार्पण होगा। श्याम सुशील और पूरवा धनश्री इस नए संग्रह से कुछ कविताएं पढे़गे तथा आलोचक आनंद प्रकाश और कवि दिनेश कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल और मदन कश्यप इस संग्रह की कविताओं पर अपने विचारों से अवगत कराएंगे। इस कविता संग्रह को सांस्कृतिक संकुल (सांस), जन संस्कृति मंच की ओर से प्रकाशित किया गया है। भूमिका युवा कवि और आलोचक मृत्यंजय ने लिखी है। इसमें कुबेर दत्त की 37 कविताएं शामिल हैं, जिनमें कुछ कविताएं अब तक अप्रकाशित हैं तथा कुछ कविताएं अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। संग्रह की कविताओं में कवि के काव्यबोध का हर रंग मौजूद है। जनता की मुक्ति और अपनी भाषा के प्रति कवि का गहरा जुड़ाव इनमें देखा जा सकता है। विभिन्न कला माध्यमांे में काम करने के अनुभवों का प्रभाव भी इन कविताओं में देखा जा सकता है। मृत्युंजय अपनी भूमिका में लिखते हैं कि कुबेर दत्त की कविता की धारा कौन सी है, इसकी शिनाख्त पाठकों के जिम्मे है, जिसे वे खुद एक अनाम धारा कहते हैं, पर जिसमें कितनी कितनी धाराएं समाहित हैं! उनकी कविता कबीर, गालिब, नजरूल, ब्रेख्त और नेरूदा से रिश्ता जोड़ते हुए भाषा की जड़ों में लौटने के लिए बजिद है। उनका काव्यबोध मुक्तिबोध, नागार्जुन, शमशेर, केदारनाथ अग्रवाल सरीखे कवियों की परंपरा से गहरे तौर पर प्रभावित है। 

‘इन्हीं शब्दों में’ कविता संग्रह की प्रतियां आयोजन स्थल पर उपलब्ध रहेंगी। आयोजन के आखिरी सत्र में हंसराज रहबर की पत्नी कौशल्या जी से कुबेर दत्त जी की बातचीत का वीडियो दिखाया जाएगा। संभवतः इस बातचीत का यह पहला सार्वजनिक प्रदर्शन होगा। यह कुबेर जी की खासियत थी कि उनका फिल्मकार और संस्कृतिकर्मी हर वक्त सक्रिय रहता था। लोगों से बातचीत और साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को रिकॉर्ड करने के प्रति वे हमेशा सचेत रहते थे। उनके द्वारा रिकॉर्ड की गई कई महत्वपूर्ण सामग्रियों का अभी भी प्रसारण नहीं हुआ होगा। यह इंटरव्यू ऐसा ही एक दुलर्भ इंटरव्यू है। हंसराज रहबर को कुबेर दत्त अपना गुरु मानते थे। इन लोगों ने भगतसिंह विचार मंच नाम का एक संगठन भी बनाया था, जिसके कुबेर दत्त महासचिव थे तथा अध्यक्ष खुद रहबर जी थे। विवेकानंद और भगतसिंह को एक साथ जोड़ कर देखने का सूत्र भी रहबर जी का ही है। खैर आज जबकि रहबर जी की जन्मशती चल रही है, तब गांधी, नेहरू, गालिब जैसे बड़े-बड़ों को बेनकाब करने वाले रहबर जी को खुद बेनकाब देखना बहुत दिलचस्प होगा। रहबर जी की पत्नी कौशल्या जी अभी जीवित हैं। यह नब्बे के दशक में तब लिया गया था, जब रहबर जीवित थे और अपनी बीमारी से उबर रहे थे। वीडियो में रहबर अपनी गजलों को सुनाते भी नजर आते हैं। रहबर ने बहुतों की खबर ली है, उनके बारे में भी बहुतों ने लिखा है, पर यह इंटरव्यू उनके व्यक्तित्व और विचारधारा को समझने के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे देखते हुए कौशल्या जी वह आईना लगती हैं जिनमें आज के इंकलाबी भी अपनी छवि देख सकते हैं। अपने पति के प्रति एक गहरा सम्मान तो है ही उनके दिल में पर कुछ बड़े सहज सवाल भी हैं, न केवल रहबर जी को लेकर, बल्कि इंकलाब को लेकर भी। और यह सबकुछ बड़े ही आत्मीय अंदाज में सामने आता है, काबिल-ए-तारीफ है कुबेर जी के इंटरव्यू की कला। इस वीडियो को खुद कमलिनी दत्त प्रस्तुत करेंगी।
कुबेर दत्त की चित्रकला का कोई गंभीर मूल्यांकन अभी तक नहीं हुआ है। हां, उनके चित्र उनके मित्रों की पुस्तकों और पत्रिकाओं के आवरण पर जरूर नजर आते रहे हैं। कई लोगों के घरों में उनकी पेंटिंगें होंगी। इस आयोजन में जो कविता पोस्टर प्रदर्शित किए जाएंगे, उनमें उनकी पेंटिंग को भी देखा जा सकता है। तो जरूर आइए इस आयोजन में, आपका स्वागत है। 

सुधीर सुमन,जन संस्कृति मंच
मो-9868990959

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