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त्रिलोक सिंह का कुण्डलिया संग्रह ' काव्यगंधा ' लोकार्पित

सिरोही
राजस्थान साहित्य अकादमी एवं अजीत फाउंडेशन  के संयुक्त तत्वावधान में  सर्वधाम मंदिर के सभागार में  आयोजित कार्यक्रम में  साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला के कुण्डलिया संग्रह ' काव्यगंधा ' का  लोकार्पण किया  गया .कार्यक्रम  का  शुभारंभ दीप-प्रज्वलन और सरस्वती वन्दना के  साथ हुआ .इस अवसर  पर विशिष्ट  अतिथि और वरिष्ठ आलोचक डॉ.रमाकांत शर्मा , अजीत  फाउंडेशन  के  सचिव  आशुतोष पटनी ,एस.पी. कालेज के प्राचार्य डॉ. वी.के.  त्रिवेदी एवं साहित्यकार शकुन्तला गौड़ 'शकुन ' सहित  अनेक गणमान्य व्यक्ति एवं  साहित्यप्रेमी उपस्थित थे राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वेद व्यास ने  इस अवसर  पर शुभ-कामनाएं  व्यक्त करते  हुए कहा  कि ' इस  कंप्यूटर के युग में   भी  पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा बहुत कम  लोगों  के  पास है.इसी  कारण साहित्यकार  और  पुस्तकें   आज  भी प्रासंगिक और   महत्वपूर्ण  हैं.
                        
राजकीय महाविद्यालय , सिरोही की  हिन्दी प्रवक्ता सुश्री शची सिंह ने  कहा कि 'आज कविता से  छंद  लुप्त  होता जा  रहा है  और  कविता गद्य का  रूप  लेती  जा  रही  है. ऐसे   समय में ' काव्यगंधा '  का  प्रकाशित होना सुखद तो  है ही , यह  साहित्य की   छांदस  परम्परा को  आगे बढाने  का  एक  प्रशंसनीय प्रयास  है.मुझे पूर्ण विश्वास है कि त्रिलोक  सिंह ठकुरेला का यह संग्रह कुण्डलिया छंद  को नए शिखर और  नए आयामों की ओर ले जाएगा. जीवन  में  यदि भाव  न  हों तो  जीवन  नीरस हो जाएगा . काव्यगंधा  की  कविता भावों की कविता है. 
             शुश्री शची सिंह ने ' काव्यगंधा ' से कुण्डलिया छंदों का वाचन भी  किया .इस अवसर पर श्रीमती शकुन्तला गौड़ 'शकुन ' के  कविता संग्रह ' हम  तो  वृक्ष हैं ' का  लोकार्पण  भी किया गया. 'डॉ.सोहनलाल पटनी  स्मृति व्याख्यान ' के  अंतर्गत ' साहित्य ,समाज और हमारा समय' विषय पर  बोलते हुए श्री वेद व्यास ने डॉ.सोहनलाल पटनी के  व्यक्तित्व और  कृतित्व पर प्रकाश डालते  हुए कहा कि डॉ.सोहनलाल पटनी  का व्यक्तित्व सभी को प्रभावित करता था. उनका कृतित्व एवं शोध कार्य  समय की  कसौटी पर  महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं. उन्होंने कहा  कि साहित्यकार,  चित्रकार और शिल्पकार ही देश का भविष्य और इतिहास बनाते हैं .साहित्यकार संवेदनशील होता है और  उसे  दूसरे का  दुःख प्रभावित  करता है .जो धारा के विरुद्ध चलता है, वही  इतिहास बनाता है और साहित्यकार को भी  कई  बार  समय  की  धारा  के  विरुद्ध चलना  पड़ता है. उन्होंने युवाओं का  आह्वान करते  हुए  कहा कि युवा  साहित्य  से  जुड़ें और  विविध  विधाओं में  रचनाओं  का सर्जन  करें.अंत में श्री आशुतोष पटनी ने सभी  का  आभार प्रकट करते  हुए धन्यवाद ज्ञापित किया.

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