''धरती [ सम्पादक शैलेन्द्र चौहान] अंक 1 6 " आज का मीडिया और उसकी भूमिका" पर केन्द्रित है । शैलेन्द्र ने सम्पादकीय में एक बहुत ही बुनयादी बात कही है । उनका मानना है कि कुलीन तथा धनी वर्ग का " क्लास मीडिया " कभी "मास मीडिया" नहीं बन सकता । इसी से आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विश्वसनीयता संदिग्ध है । इस अंक मे अनिल चमडिया ,डॉ राम अहलाद चौधरी ,विमल कुमार , आदि अनेक अहम लेखकों के बड़े सारगर्भित तथा पठनीय आलेख हैं । रामकुमार कृषक की गजलें और कविताएँ जानदार हैं । संजय कुंदन की कुछ कविताएँ हैं । इस अंक मे बिलकुल युवा कवि नित्यानंद की कविताएँ हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं - वे जो चुपके से / कर गये पलायन / पाला बदल कर ? आज कर रहे हैं / जयगान उनका / वे भूल गये शायद / पुराने नमक का हक / गिरगिट रंग बदलते हैं / ऐसे लोगों से मुझे / डर लगता है । नित्यानंद की अन्य कविताएँ , " साजिश की जड़ें ", गावों की ओर हमें लौटना होगा , हमारे मन में गहरी प्रश्नाकुलता जगाती हैं । लू शनु की दो गद्य कविताएँ भी पठनीय हैं । इस अंक मे अच्छे साक्षात्कार भी हैं । अंत में शैलेन्द्र का " हंस " के सम्पादक राजेंद्र यादव के नाम एक महत्वपूर्ण लम्बा पत्र भी है ।
यह पत्र " हंस " [ जून 2 0 1 3 ] के सम्पादकीय से संदर्भित है , जिसे श्री राजेन्द्र यादव को भेज गया था पर जिसे वे अपनी उदारता के बावजूद छाप नहीं पाए । " धरती " पत्रिका की अब तक अग्रगामी तथा सार्थक भूमिका रही है । इस ने सदा ही लोकधर्मी साहित्य तथा जीवन मूल्यों को स्थापित करने का संघर्ष किया है । जोखिम उठाया है । शैलेन्द्र स्वयं अच्छे कवि , समीक्षक तथा जनवादी चिंतक हैं । उनके सम्पादन में निकलने वाली इस दृष्टि सम्पन्न पत्रिका का हृदय से स्वागत करते हैं । बहुत शीघ्र हम इस अनियत कालीन पत्रिका को नियमित प्रकाशित होता हुआ देखेंगे ।''-
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जानेमाने कवि और आलोचक विजेन्द्र |
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