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‘प्रेमा इला सागिपोनि’ लोकार्पित

हैदराबाद, 18 अगस्त 2013

भारत जैसे बहुभाषिक समाज में अनुवाद अनेक प्रकार से आवश्यक और उपादेय है. अनुवाद वास्तव में अलग अलग भाषाओं के बीच पुल बनाने के काम जैसा है. उसमें भी साहित्यिक अनुवाद इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है कि वह दो भाषा-समाजों को एक दूसरे की सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के ताने-बाने से जोड़ता है.” ये विचार अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने गत दिनों यहाँ आयोजित कमला गोइन्का फाउंडेशन के साहित्यिक समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो.ऋषभदेव शर्मा की हिंदी काव्यकृतिप्रेम बना रहे’ के तेलुगु अनुवाद प्रेमा इला सागिपोनि’ के लोकार्पण के अवसर पर व्यक्त किए. प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने आगे कहा कि अनूदित काव्यकृति में कवि ने प्रेम की विभिन्न मनोदशाओंसूक्ष्म अनुभूतियों और उदात्त परिणतियों का हृदयस्पर्शी चित्रण किया है.

जी.परमेश्वर द्वारा अनूदित इस काव्यकृति का लोकार्पण गीतादेवी गोइन्का अनुवाद पुरस्कार’ ग्रहीता प्रो.जे.एल.रेड्डी ने किया तथा पुस्तक की पहली प्रति डॉ.पूर्णिमा शर्मा ने स्वीकार की.आरंभ में विमोच्य पुस्तक का परिचय देते हुए ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि मनुष्य के समाजीकरण के लिए प्रेमभाव की सर्वोपरिता का प्रतिपादन करने वाली उनकी हिंदी काव्यकृति प्रेम बना रहे’ गत वर्ष प्रकाशित हुई थी जिससे प्रभावित होकर वरिष्ठ तेलुगु अनुवादक और हिंदीसेवी जी.परमेश्वर ने आत्मप्रेरणा से उस संग्रह की सारी कविताओं का तेलुगु में अनुवाद करके यह कृति प्रेमा इला सागिपोनिप्रकाशित की है. उन्होंने अनुवादक के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए पुष्प स्तवक देकर उनका सम्मान भी किया.

अनुवादक जी.परमेश्वर ने बताया कि प्रेम बना रहे’ की कविताएँ सहज और प्रभावपूर्ण हैं लेकिन इनमें निहित मिथकीयपौराणिकशास्त्रीय और साहित्यिक संदर्भ अपनी गहनता के कारण अनुवादक के लिए चुनौती पेश करते हैं. उन्होंने यह खुलासा भी किया कि मैंने लोकसांस्कृतिक संदर्भों के अलावा बहुतायत में लोक शब्दावली के बोलीगत प्रयोगों का अनुवाद समय-समय पर मूल रचनाकार से चर्चा के आधार पर किया है.इस अवसर पर श्यामसुंदर गोइन्काललिता गोइन्काडॉ.राधेश्याम शुक्लप्रो.हेमराज मीणारवि श्रीवास्तव तथा ओमप्रकश गोइन्का भी मंच पर उपस्थित थे. सभागार में विद्यमान साहित्यकारोंपत्रकारों और हिंदीप्रेमियों ने कवि और अनुवादक को बधाई दी.
प्रस्तुति
डॉ.जी.नीरजा

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