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विज्ञान वर्कशॉप में बच्चों ने बनाया मानव कंकाल


आज पंद्रह अगस्त के मौके पर गाज़ियाबाद के सीमान्त पर स्थित वसुंधरा के जनसत्ता अपार्टमेन्ट में पंद्रह अगस्त नए तरीके से मनाया गया. इस मौके पर करीब तीस बच्चों ने प्रथम एजुकेशनल फाउंडेशन से जुड़े आशुतोष उपाध्याय और विनोद उप्रेती के साथ मानव कंकाल बनाना सीखा। दुपहर १२ बजे से शुरू होकर शाम ५ बजे सम्पन्न हुई इस वर्कशॉप में बच्चों के ५ समूह बने. हर समूह के बच्चों ने खुद जुटाए सामान की मदद से एक बड़ा कंकाल और एक छोटा नाचने वाला कंकाल बनाया।

कंकाल बनाने के लिए सामग्री जुटाना भी बच्चों के काम अनिवार्य हिस्सा था. इन कंकालों को बनाने के लिए ज्यादातर सामान जैसे पैकिंग वाले मोटे गत्ते के डब्बे , सुई धागा, फेविकोल, चार्ट पेपर , आधे इंच के १६ स्क्रू, कैंची , पेपर कटर, मोटे स्केच पेन इस्तेमाल किये गए. इस वर्कशॉप में हरेक समूह ने २ कंकाल बनाए जिसपर अधिकतम २० रुपये का खर्च आया. 

पहले हमने तय किया था कि इस वर्कशॉप में कक्षा ६ से ८ तक के बच्चों को ही शामिल करेंगे लेकिन फिर बहुत से बच्चों की फरमाइश पर हर तरह के बच्चे शामिल कर लिए गए . इस तरह हर समूह में कक्षा ३ से १० तक के बच्चे शामिल थे. बच्चे पहले सुबह हाउसिंग सोसाइटी के स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हुए फिर ठीक ११. ३० बजे अपने -अपने समूहों के साथ हमें मिले। ज्यादातर बच्चों ने एक दिन पहले की गयी मीटिंग में हुई बातचीत को ध्यान में रखकर जरूरी सामान जुटा लिया था. कुछ बच्चों के हाथ में पानी की बोतलें और चिप्स, कुरकुरे और बिस्किट के पैकट भी थे लेकिन एक बार वर्कशॉप में जुटने के बाद वे कंकाल के जादू में खो गए. लंच ब्रेक से पहले २ बजे तक बच्चों ने कंकाल की पसलियों के अलावा अपना -अपना कंकाल बना लिया था और ३० मिनट के ब्रेक के बाद २. ३० से हमने फिर से कंकाल की पसलियों पर काम करना शुरू किया। जल्दी ही पाँचों कंकाल अपनी पसलियों के साथ त्रिपाठी जी की गाडी के बोनट की शोभा बने हुए इतरा रहे थे. 

कुछ बच्चों ने अपने कंकालों को दूसरे समूह से ज्यादा सुन्दर बनाने के लिए उनपर गुलाब का फूल भी टांक दिया। बड़े कंकाल के बाद छोटे नाचने वाले कंकाल बनाने का सिलसिला शुरू हुआ. जल्दी ही हर समूह के हाथ में छोटे नाचते हुए नए खिलोने थे. जैसे ही बच्चों को लगा कि अब वर्कशॉप ख़तम होने को है उनके मन में नए बने कंकालों को अपने -अपने घर ले जाने की होड़ शुरू हुई लेकिन समझाने पर जल्द ही उन्होंने कंकालों को बारी -बारी से अपने पास रखने का रास्ता भी खोज लिया। इस वर्कशॉप के दौरान कुछ बच्चों के माँ-पिता भी मौजूद थे. उन्हें भी यह अच्छी तरह से समझ में आया कि बच्चों को अगर खुद जिम्मेवार बना दिया जाय और उनपर भरोसा किया जाय तो वे न सिर्फ मुश्किल काम को कुशलता के साथ करते हैं बल्कि ख़ुशी -ख़ुशी सीखने को तैयार भी रहते हैं. हमारे सौभाग्य से ग्रुप फोटो तक बारिश नहीं हुई और फिर जैसे यह अंतिम काम ख़तम हुआ जोरों की बारिश हुई और कुछ बच्चों ने नए बने कंकालों से ऊर्जा पाकर पार्क में फिसलते हुए नहाने का मजा भी लिया। 

वर्कशॉप की समाप्ति के बाद बच्चों ने अपना साइंस क्लब भी बनाया जिसके लिए सर्वसम्मति से श्रेष्ठ को अध्यक्ष, अमित और शान्तनु को उपाध्यक्ष, अंजलि को सचिव और पाखी को उपसचिव चुना गया.इस वर्कशॉप में रिशु, प्रियांशु, ईनू , कौतुक , साहिल, सोनल, रिशिका, ईशा, अजय, शुभी, वंश, जानवी, तन्मय, रिशौन, शौर्य, उद्भव, पृथु, मोहम्मद ,लावण्या, ग्रेसी, अली, और गुनगुन ने हिस्सा लिया।

वर्कशॉप के संचालन में जनसता अपार्टमेन्ट की रजनी, मनीषा, संध्या, शिवा, प्राची और इन्द्रापुरम से आयीं आरती ने मदद की. आखिरी में बच्चों की तरफ से कंकाल बनाना सिखाने आये मेहमानों को उपहार दिए गए और जनसत्ता अपार्टमेन्ट अपार्टमेन्ट के अध्यक्ष रवींद्र त्रिपाठी ने बच्चों की लगन की सराहना करते हुए बारिश के कारण आज न हो सके फिल्म फेस्टिवल को जल्दी ही करवाने का आश्वासन दिया और बच्चों से यह भी वायदा लिया कि फिल्म फेस्टिवल की पूरी तैय्यारी उनका साइंस क्लब करेगा।

संजय जोशी
जनसत्ता अपार्टमेंट के लिए

Comments

thegroup said…
Shukriya Manik.
Sanjay Joshi