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9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस Vaya अनुज लुगुन


हुल जोहार !


6 अगस्त और 9 अगस्त 1945 का दिन केवल जापान के लिए दुर्भाग्य का दिन नहीं था बल्कि सम्पूर्ण विश्व समुदाय के लिए यह एक दु;स्वप्न था जिसके दशकों बीत जाने के बाद भी उसकी स्मृति से आत्मा सिहर उठती है .कौन पराजित कौन विजेता.?मानव जाति ने युद्ध का जो चेहरा देखा वह उसके हाजारों करोड़ों बरस के इतिहास में कल्पना से परे था. भले ही हम इसे भूल जाएँ ,भले ही कोई इसे विजय दिवस के रूप में मनाये जापानियों के लिए तो यह ना भूलने वाली तारीख है.(वैसे इसे भूलना मनुष्यता को भूलना है)जापानी इसे हिरोशिमा और नागासाकी दिवस के रूप में याद करते हैं.आज दुनिया में अमन पसंद युद्ध विरोधी लोग तमाम परमाणु उपकरणों संयंत्रों और हथियारों के खिलाफ संघर्षरत हैं.इस दिन जापानी उस घटना को भी याद करते हैं जब कुछ समय बाद अमेरिका से आदिवासियों का एक प्रतिनिधिमंडल इस भीषण नरसंहार से शर्मिंदगी महसूस करते हुए जापानियों से माफी मांगने आ पहुंचा था .यह विश्व इतिहास की अदभुत घटना है.इसका जिक्र हिंदी की प्रसिद्ध कथाकार महुआ माजी ने भी अपने उपन्यास “मारंग गोड़ा नीलकंठ हुआ”में किया है 

“तभी अमेरिका स्थित उस यूरेनियम खदान वाले इलाके के ग़रीब आदिवासियों के प्रतिनिधिमंडल ने पाई-पाई जोड़कर सुदूर जापान तक आने की जहमत उठाई थी और आकर जापानियों से माफी मांगी थी ,जिनके इलाकों से निकाले गए यूरेनियम से बने परमाणु बमों को गिराकर ही जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में तबाही लायी गई थी .उन्होंने कहा था-‘यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम आपसे माफ़ी मांगे.’यह बात और है कि उनकी जानकारी बगैर ही यह सब कुछ किया गया था .उन्होंने अपने आगमन से यह सन्देश देना चाहा था कि उनके देश के कुछ गिने चुने महाशक्तिशाली लोगों द्वारा की गई तबाही के निर्णय में उनकी कोई सहमति नहीं थी.”

यह आदिवासी नजरिया है. यह जंगली कहे जाने वाले आदिवासियों की जीवन का जीवन दर्शन है,यही आदिवासियत है.संयोग से आगे चलकर 9 अगस्त को ही विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाने लगा.आज विश्व आदिवासी दिवस है.आज के दिन हम न केवल अपने पुरखों की शहादत को याद करें बल्कि इस अलिखित महान विरासत को बचाने का संकल्प करें जो हमारी जीवन शैली में मौजूद है.कहने वाला हमें भौतिक रूप से पिछड़ा ,असभ्य,जंगली कहे तो कहे आने वाले दिनों में हमारी सार्थकता और बढ़ेगी.नदी पहाड़ पेड़ जंगल से कब तक मानव जाति दूर हो सकता है..? हवा ,पानी के लिए तो उसे इस धरती पर ही आना होगा.जिसकी हमने हमेशा चिंता की है.हमारे पुरखा “सिएटल के मुखिया” कह गए हैं कि- “यह पृथ्वी केवल मनुष्यों की नहीं है”.हम सम्पूर्ण प्राणी जगत की चिंता करते हैं.हमारी लडाइयां और शहादत उसी के लिए हुई है आज भी हमारी यह लड़ाई जारी है.आमेजन की नदी घाटियों से लेकर इन्द्रावती ,गोदावरी और कोयलकारो नदी घाटियों तक हमारी लड़ाई जारी है.कहा जाता है कि यह हमारे अस्तित्व की लड़ाई है.लेकिन वे सोचें यह केवल हमारे अस्तित्व की लड़ाई नहीं सम्पूर्ण प्रकृति की चिंता है.इस चिंता में शामिल होने के लिए, साथ देने के लिए हम उनका भी आह्वान करते हैं कि मिल कर इस धरती को सुन्दर बनायें.उनसे निवेदन करते हैं कि वे अपनी उस मानसिकता का त्याग करें कि “इको फ्रेंडली”और “बायो-डाइवर्सिटी” एक ‘पाठ्यक्रम’ है वे यह स्वीकार करें कि यह एक जीवन शैली है जो हमारे पास है.

आज के दिन हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मांग करते हैं कि हमारी जमीन की खुदाई कर –कर के ,जंगलों,नदियों को उजाड़कर लोहा ,मैंगनीज,बाक्साईट ,एल्युमुनियम आदि-आदि निकाल कर युद्ध का जो विषैला माहौल बनाया जा रहा है वह बंद हो.हम जादूगोड़ा यूरेनियम खदान(ऐसे और भी अन्य) को बंद करने की मांग इसलिए नहीं कर रहे कि इसने हमारे आदिवासी समुदाय को विनाश के गर्त में धकेल दिया है बल्कि इसलिए कि आनेवाले दिनों में यह भीषण मानव नरसंहार का कारण न बने और हमें उस वक्त शर्मिंदगी महसूस न हो कि समय रहते हमने उसका प्रतिरोध नहीं किया .ऐसे किसी भी निर्णय में हमारी भागीदारी नहीं होगी .

आज हम चौतरफ़ा दमन,शोषण ,अत्याचार और अन्याय से घिरे हैं और हम इससे मुठभेड़ कर रहे हैं .दुनिया भर में आदिवासी संघर्ष कर रहे हैं.अनगिनत लोग असहमति की वजह से जेलों में हैं कईयों की शहादतें हुई हैं फिर भी हम यह संघर्ष जारी रखेंगे.हम समूह हैं और समूह की भावना को आगे बढ़ाएंगे .हम अपनी कमियों को भी जानते हैं और उसे दूर करने के लिए संकल्पित हैं. हम अपने आदिवासियत पर गर्व करते हैं.हिरोशिमा नागासाकी को याद करते हए विश्व आदिवासी दिवस पर हुल जोहार !


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