मुस्लिम ' रैनेसाँ ' पर बातचीत की श्रंखला
मनुष्य के लम्बे इतिहास में एक विशेष कालखंड को 'रैनेसाँ' का नाम दिया गया । इस कालखंड का महत्व इसलिये है कि इसने 'मनुष्य की सत्ता'या 'इंडिविजुएलिटी' को धर्म, राय, कला और विचारों की दुनियों में स्थापित किया। 'रैनेसाँ' शब्द शुरू में तो इटली की चौदहवीं सदी के कला और साहित्य के परिवर्तनों के लिये प्रयुक्त हुआ था, पर बाद में धीरे धीरे लगभग भ्रष्ट होकर किसी भी परिवर्तन के लिए प्रयोग में आने लगा । इस तरह बहुत छोटे-छोटे समुदायों, समाजों,वैचारिक आंदोलनो, भूगोल, भाषा आदि में नए मूल्यों के अपनाने को 'रैनेसाँ' कहा जाने लगा । हिन्दी में इसका अनुवाद 'पुनर्जागरण', 'नवजागरण' 'नवोत्थान' 'पुनर्जन्म', 'पुनर्रूत्थान' आदि शब्दों में व्यक्त किया गया । इसी क्रम में हम 'हिन्दू नवजागरण' और 'हिन्दी नवजागरण' जैसे शब्द युग्म के बारे में जानते हैं । ये शब्द 'रैनेसाँ'के मूल आशय व विशिष्टता से भटक कर अब किसी भी नए विचार , परिवर्तन के लिए लापरवाही के साथ प्रयुक्त होने लगे हैं।जो भी है,प्रत्येक समुदाय या समाज या भाषा या धर्म में समय समय पर नए मूल्य नए विचार अपनाए जाते रहे हैं । उनमें आधारभूत परिवर्तन होते रहे हैं । इन परिवर्तनों ने उन्हें आधुनिक चेतना और मूल्यों से जोड़ा है । मुस्लिम जगत में हमें ऐसा कोई बड़ा परिवर्तन या आधुनिक चेतना जल्दी नहीं दिखती। न भारत में न विश्वस्तर पर । तो क्या वहाँ कभी 'रैनेसाँ' जैसा कुछ घटित नहीं हुआ? क्या भारत में कभी ऐसी स्थितियां बनी,ऐसा अवसर आया जिसे हम 'रैनेसाँ' की दृष्टि से देख सकें ? यदि ऐसा कुछ घटित हुआ है तो कब, कहाँ ,किस स्तर पर ? और यदि नहीं तो क्यों ? क्या सूफी संतों से आज के 'अरब बसन्त' के उभार तक हमें इसका कहीं कोई चिह्न मिलता है ? ये प्रश्न अक्सर हमें परेशान करते रहे है ।
इस गम्भीर, विचारोत्तेजक और आवश्यक मुददे पर 'अकार' द्वारा मुस्लिम समाज, धर्म, इतिहास, के प्रख्यात अध्येताओं से बातचीत की एक श्रृंखला शुरू की जा रही है । इसमें सबसे पहले आगामी अंक 36में प्रो. इरफान हबीब से की गयी विस्तृत विचारोत्तेजक बातचीत प्रस्तुत की जा रही है। उसके बाद शम्सुर्रहमान फारूख़ी साहब, प्रो. शम्सी हनीफ और पाकिस्तान के कुछ विशिष्ट लोग होंगे । यदि यह बातचीत या बहस आगे बढ़ी तो हम इसे विश्व के अलग अलग हिस्सों में ले जाने का प्रयास करेंगे । पाठकों की हिस्सेदारी, प्रतिक्रियाओं को भी शामिल किया जाएगा । यह बातचीत हमारे पुराने सहयोगी डॉ. खान अहमद फारूख. ने की है । उन्होंने ही इसका लिप्यंतरण भी किया है ।
आगामी अंक 36 की सम्भावित सामग्री
1. ऊगो चावेस और बोलीवारियन क्रांति : राजकुमार राकेश
2. कश्मीर: किताबों के दरीचे से: संजना कौल
3. भगत सिंह की सही तस्वीर: सुधीर विद्यार्थी
4. सरगुज़श्त: सैयद ज़ुल्फिकार बुखारी की आत्मकथांश-
भूमिका, संपादन व प्रस्तुतिः रविकांत
5. दस्तावेज में हंसा मेहता का 1931 के जेल अनुभव व
फिल्म अभिनेत्री सुलोचना पर 1931 का लेख व फिल्म समीक्षा
6. ‘सदगति’ कहानी पर सत्यजित राय की फिल्मः अमृत गंगर
7. ‘सौ साल पहले’ स्तम्भ के अन्तर्गत
1913 की 'इन्दु' में प्रकाशित राधिकारमण प्रसाद सिंह की कहानी ‘कानो में कंगना’
8. मार्कण्डेय को लिखे सुरेन्द्र चौधरी के कुछ महत्वपूर्ण पत्र : प्रस्तुति : उदयशंकर
9. ‘ मुस्लिम रैनसॉ ’ पर बातचीत की श्रंखला में सबसे पहले प्रो. इरफान हबीब : प्रस्तुति खान अहमद फारूक़
10. राजी सेठ का आलेख- "जैनेन्द्र कितने आधुनिक "
11. प्राच्यवादी अवधारणा और रामविलास शर्मा का चिंतन -डॉ. ऋषिकेश राय
फिलहाल समीक्षा लेख, कहानियाँ व कविताएं
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