उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल के पहले दिन सबसे आखिर में दिखाई जाने वाली है आनंद पटवर्धन की बहूचर्चित दस्तावेजी फ़िल्म जय भीम कॉमरेड !3 घंटे 20 मिनट की यह फ़िल्म 14 सितंबर को शाम 5.30 बजे दिखाई जायेगी, फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद इसके निर्देशक आनंद पटवर्धन सीधे दर्शकों से मिलेंगे और उनसे बातचीत करेंगे।
प्रख्यात फिल्मकार आनंद पटवर्धन की भारतीय दलितों पर आधारित वृत्तचित्र फिल्म 'जय भीम, कॉमरेड' चौंकाने वाला आंकड़ा पेश करती है। इस फिल्म के मुताबिक रोजाना दो दलितों के साथ दुष्कर्म की घटना होती है तो तीन की हत्या होती है।इस फिल्म की शुरुआत 11 जुलाई, 1997 के उस दिन से होती है, जब अम्बेडकर की प्रतिमा को अपवित्र किए जाने की घटना के विरोध में 10 दलित इकट्ठे होते हैं और मुम्बई पुलिस उन्हें मार गिराती है। इस हत्याकांड के छह दिन बाद अपने समुदाय के लोगों के दर्द व दुख से आहत दलित गायक, कवि व कार्यकर्ता विलास घोगरे आत्महत्या कर लेते हैं।
इसके बाद फिल्म दलितों की अपनी भावप्रवण कविताओं व संगीत के जरिए अनूठे लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने की शैली की विरासत को उजागर करती है। फिल्म घोगरे व अन्य गायकों और कवियों की कहानी पेश करती है।फिल्म में एक दलित नेता कहता है, "हमारे पास हर घर में एक गायक, एक कवि है।" यहां देश के सबसे निचले तबके के शोषितों व अफ्रीकी मूल के अमेरिकीयों के बीच समानता प्रतीत होती है। दोनों की संगीत व काव्य की मजबूत परम्परा रही है, जो उन्हें राहत व मजबूती देती है और उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करती है।
यही वजह है कि महाराष्ट्र सरकार ने एक मजबूत दलित संगीत समूह (फिल्म में इसे प्रमुखता से दिखाया गया है) कबीर कला मंच (केकेएण) को नक्सली समूह बताकर उसे प्रतिबंधित कर दिया है।'जय भीम.' उस विडंबना को भी दिखाती है कि कैसे एक दलित नेता डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय संविधान लिखा और फिर भी उनका ही समुदाय लगातार पीछे है।फिल्म का मकसद सच्चाई उजागर करना है। पटवर्धन ने कहा कि फिल्म की दृष्टि आलोचनात्मक है। इसमें दलित आंदोलन की भी आलोचनात्मक समीक्षा है लेकिन इसमें इस समुदाय के उन युवाओं की आलोचना नहीं है जिन पर भूमिगत होने के लिए दबाव बनाया जाता है।
इस फ़िल्म की समीक्षा http://mohallalive.com/2012/04/06/excalibur-stevens-biswas-on-jai-bhim-comrade/ पर पढ़ी जा सकती है।(यह पोस्टर हमारी साथी प्रगन्या जोशी ने बनाया है)
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