पटना में कवि अरुणाभ सौरभ का एकल काव्य-पाठ
पटना 30 जुलाई
बाँये से- डा. विजय प्रकाश, अरविन्द श्रीवास्तव, मुसाफ़िर बैठा, कवि अरुणाभ सौरभ, शहंशाह आलम, राकेश प्रियदर्शी. |
समकालीन कविता में अपनी में धारदार उपस्थिति से इस वर्ष भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार एवं वर्ष 2012 में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली में युवा पुरस्कार से सम्मानित कवि अरुणाभ सौरभ के पटना आगमन पर पटना प्रगतिशील लेखक संघ के रचनाकार मित्रों द्वारा उनके एकल काव्य पाठ का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता कवि शहंशाह आलम ने की। आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि मुसाफिर बैठा एवं गीतकार विजय प्रकाश उपस्थित थे।
कवि अरुणाभ सौरभ ने अपनी काव्य यात्रा की संक्षिप्त चर्चा के पश्चात दर्जन भर कविताओं का पाठ कर उपस्थित श्रोताओं में उत्साह और उर्जा का संचार किया । उन्होंने अपनी ‘अभिशप्त, दुनिया बदलने तक, किसी और बहाने से , शहर भागलपुर के नाम एक कविता, वो स्साला बिहारी, मेरे तुम्हारे बीच में, तुम मेरी कविता में आना, चाय बगान की औरतें आदि शीर्षक कविताएं सुनाई। उनकी कविताओं की कुछ बानगी दृटव्य है - ‘घाट पर ही छटपटा कर सूख जाती है गंगा..’, ‘धूप ने उसकी चमड़ी पर आकर कविता लिखी थी..’
- आओ बचाते हैं मिलकर
थोड़ी सी हरियाली
थोड़ी धूप
थोड़ी प्यास
थोड़ी बारिश !
कार्यक्रम का संचालन करते हुए अरविन्द श्रीवास्तव ने अरुणाभ की कविताओं को समकालीनता में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप बताया। इस अवसर पर परमानंद राम ने भी अपने विचार व्यक्त किये। मुसाफिर बैठा ने अरुणाभ की कविता को जनता के पक्ष लिखी गई कविता बताया। शहंशाह आलम ने भी अपनी उद्गार व्यक्त किये। धन्यवाद ज्ञापन राकेश प्रियदर्शी ने व्यक्त करते हुए कवि को अपनी शुभकामनाएं दी।
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