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अच्छी कविता में कवि की अनुभूति, भावनाएं और उसके विचार बोलते हैं


विशाखापटनम। 
हिन्दी साहित्य, संस्कृति और रंगमंच के प्रति प्रतिबद्ध संस्था सृजन ने हिन्दी रचना गोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन विशाखापटनम के द्वारकानगर स्थित जन ग्रंथालय के सभागार में आज किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ॰ टी महादेव राव  ने की जबकि संयुक्त सचिव डॉ संतोष अलेक्स ने संचालन का दायित्व निर्वाह किया ।  उन्होने कविताओं के सृजन हेतु समकालीन कविताओं के अध्ययन और समकालीन सामाजिक दृष्टिकोण को विकसित करने पर बल देते हुये कहा–हमारे आसपाससमाज में और देश में हो रही घटनाओं पर हमारा विशाल और विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिए। तब जाकर हम जिन कविताओं का सृजन करेंगे वह न केवल प्रभावशाली होगी  बल्कि पाठक भी उससे आत्मीयता महसूस करेंगे। निरंतर समकालीन साहित्य का पठन भी हम रचनाकारों के लिए ज़रूरी है।

अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ॰ टी महादेव राव  ने कहा संक्षिप्त शब्दों में भावाभिव्यक्ति ही कविता है, लंबे लंबे भाषणों या व्याख्यानों का कविता में स्थान नहीं होता,वर्णनात्मक बातें कविता में स्थान नहीं रखती। बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से कवि कविता में बोले न की भूमिका बांधे और कविता के अर्थ और व्याख्यान बताए। इन लक्षणों के साथ ही कविता सही और सार्थक रचना होगी वरना गद्य और पद्य का अंतर क्या रहेगा। सो अच्छी कविता में कवि की अनुभूतिभावनाएं और उसके विचार बोलते हैं और पाठक तक प्रभावपूर्ण तरीके से पहुँचते हैं।  आज का रचनाकार आम आदमी के आसपास विचरने वाली यथार्थवादी और प्रतीकात्मक रचनाओं का सृजन करता है।

कार्यक्रम में सबसे पहले रूपेष कुमार सालवे ने आम आदमी की ज़िंदगी की समस्याओं,पीड़ाओं  और अत्याचार की बात क्या हम आज़ाद हैं? कविता में प्रस्तुत की। एस ए रज़्ज़ाक़ बुढ़ापा और बंधन कविता में वृद्धावस्था में भी स्वार्थ के शिकार होते संबंधों की बात कही।  एक से बढ़कर एक कविता में एम वी आर नायुडु ने विश्व में समानता की आशाजताई। भारतमाता का पुत्र  कविता में डॉ बी वेंकट राव ने एकता पर बल देने औरअलगाववाद को शह देने पर ज़ोर दिया।
  
एम शिवराम प्रसाद ने दूर सीमा पर पहरेदार बने देशभक्त पुत्र को ेखने और उससे मिलने की तड़प  एक बार देख जा में सुनाई। रामप्रसाद यादव ने समर्पित स्त्री की भावनाओंऔर संस्कारों पर कविता एक आँचल आसमां और जीवन के सारे बिंबों को समेटी कविताप्रस्तुत की। जी अप्पाराव राज अपने व्यंग्य दोहों के साथ थे। धीरज कुमार ने दिनकर की कविता परिचय का पाठ किया। आज का युवा मीडिया और चेनल के कारण जिस तरह राह भटक रहा है उसका खुलासा बी एस मूर्ति ने कविता पतंगा में सुनाया।     

श्रीमती मीना गुप्ता ने रात मैंने देखा चाँद को में प्रकृति के साथ मनुष्य के भावात्मकतारतम्य को रेखांकित किया। आज के बदलते रिश्तों और नारी की सुकोमल सोच को डॉ टी महादेव राव ने अपनी कविता बंधनों में बदलाव कैसा? में पेश किया। डॉ संतोष एलेक्स ने आधुनिकता के कारण दुविधापूर्ण गांवों के स्थिति और परिवेश पर  मेरे गाँव की दुकानकविता पढ़ी।
कार्यक्रम में अशोक गुप्ता, अनंत रावसी एच ईश्वर रावएन ताता राव ने भी सक्रिय भागीदारी की। सभी रचनाओं पर विश्लेषणात्मक चर्चा हुई। धन्‍यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। ‍    
डॉ॰ टी महादेव राव-09394290204

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