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हम सभी कबीर कला मंच के संस्कृतिकर्मियों के साथ हैं -जसम


लखनऊ, 27 अप्रैल।

महाराष्ट्र में कबीर कला मंच (पुणे) के कलाकारों शीतल साठे व सचिन माली की गिरफ्तारी पर लखनऊ के साहित्यकारों, बंद्धिजीवियों व सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने अपना विरोध जताया है तथा कलाकारों के खिलाफ  महाराष्ट्र में लंबे समय से जारी राज्य दमन की कठोर शब्दों में निंदा करते हुए इन कलाकारों की अविलंब रिहाई की मांग की है। एक प्रस्ताव के माध्यम से यह मांग की गई। इस प्रस्ताव को पारित करने वालों में नरेश सक्सेना, प्रणय कृष्ण ;इलाहाबादद्ध, शकील सिद्दीकी, सुभाष राय, कौशल किशोर, चन्द्रेश्वर, भगवान स्वरूप कटियार, वंदना मिश्र, राजेश कुमार, अजय सिंह, ताहिरा हसन, एस आर दारापुरी, विजय राय, सुशीला पुरी, के के वत्स, बी एन गौड़, आर के सिन्हा, श्याम अंकुरम, गंगा प्रसाद, अरुण खोटे, वीरेन्द्र सारंग, राम किशोर, उपा राय, अनीता श्रीवास्तव, प्रज्ञा पाण्डेय, अटल तिवारी आदि प्रमुख हैं।

प्रस्ताव में कहा गया है कि गर्भवती शीतल साठे को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है यह पूर्णरूपेण गैर-लोकतांत्रिक और आपराधिक व्यवहार है। हम साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता कबीर कला मंच के संस्कृतिकर्मियों के लोकतांत्रिक-संवैधानिक अधिकारों के साथ पूरी  तरह एकजुटता जाहिर करते हैं और उनको प्रताडित किए जाने तथा उन्हें गिरफ्तार किए जाने पर अपना गहरा रोष व्यक्त करते हैं। 

प्रस्ताव में कहा गया है कि कबीर कला मंच के संस्कृतिकर्मियों ने दलितों, कमजोर तबकों व मजदूरों के उत्पीड़न, शोषण और उनके हिंसक दमन के खिलाफ लोगों में चेतना फैलाने का बेमिसाल काम किया है। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों की लूट और भ्रष्टाचारके खिलाफ भी अपने गीतों और नाटकों के जरिए लोगों को संगठित करने का काम किया है। यह इस देश और इस देश की जनता के प्रति उनके असीम प्रेम को ही प्रदर्शित करता है। वे डा0 अम्बेडकर, अण्णा भाऊ साठे और ज्योतिबा फुले के विचारों को लोकगीतों के माध्यम से लोगों तक पहुचाते हैं। सवाल है कि क्या अंबेडकर या फुले के विचारों को लोगों तक पहुचाना गुनाह है ? क्या भगत सिंह के सपनों को साकार करने वाला गीत गाना गुनाह है ? सवाल यह भी है कि अगर कोई संस्कृतिकर्मी माओवादी विचारों के जरिए देश व समाज की बेहतरी का सपना देखता है तो उसे अपने विचारों के साथ एक लोकतंत्र में संस्कृतिकर्म करने दिया जायेगा या नहीं ?

कौशल किशोर,संयोजक,जन संस्कृति मंच, लखनऊ

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