इस दौड़ती हुयी साहित्यिक दुनिया में जहां
'दुनियादारी' का पलड़ा ज्यादा मजबूत होता जा रहा है
वहाँ इत्मीनान से कोई साहित्यिक पत्रिका के अंक निकाल रहा है
तो उन्हें तसल्ली से रूककर सराहा चाहिए इन्हीं में से एक है
'अनहद'
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अंक हेतु संपर्क करें
संतोष चतुर्वेदी
मो 09450614857
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अनहद
समकालीन सृजन का समवेत नाद
वर्ष-३, अंक-३ : जनवरी २०१३
(इस प्रति का मूल्य रुपये अस्सी मात्र)
इस अंक में
अपनी बात
स्मरण में है आज जीवन:१- शहरयार
नमिता सिंह: बेहतर दिनों के ख्वाब देखने वाला शायर
अली अहमद फ़ातमी: शहरयार की शायरी या शायरी का शहरयार
स्मरण में है आज जीवन:२- सत्यदेव दुबे
सत्यदेव त्रिपाठी: थियेटर के जीनियस वोहेमियन पं. सत्यदेव दुबे
स्मरण में है आज जीवन:३- भागवत रावत
भरत प्रसाद: सीधी लकीर के साधक
वाम कसमों की रस्में
प्रदीप सक्सेना: कॉमरेड भुवनेश्वरी: कहाँ जाई का करीं!!!
विजेंद्र की कवितायें
डायरी
चंद्रकांत देवताले: जब-तब के इन्द्राज
इतिहास
हरबंस मुखिया: इंडोलोजी कुछ रिक्त स्थान
दो कहानियां
कुमार अम्बुज: घोंघो को तो कोई भी खा जाएगा
वन्दना राग: पति-परमेश्वर
जन्मशती विशेष : राम विलास शर्मा
शिवकुमार मिश्र: जैसा मैंने उन्हें जाना-समझा और माना
जीवन सिंह: परम्परा का मूल्यांकन विवेक और रामविलास शर्मा
अजय तिवारी: वे उचित गर्व करना सिखाते थे
वैभव सिंह: आलोचना में बुद्धिवादी चिंतन परम्परा का विकास
विशेष आलेख
अशोक भौमिक: मजदूर, किसान और चित्त प्रसाद
अर्थव्यवस्था
सौमेन सरकार: इतिहास का पुनरुद्धार और पुनर्प्रतिष्ठा- एक इन्तजार
दो कहानियाँ
विमल चन्द्र पाण्डेय: सातवा कुंवा
वन्दना शुक्ला: बदचलन
प्रसंगवश: रवीन्द्रनाथ टैगोर
बसन्त त्रिपाठी: रवीन्द्रनाथ टैगोर: पूर्वी प्रत्युत्तर का समावेशी चेहरा
राजीव कुमार: शांति निकेतन का अशांत चितेरा
विमर्श: समकालीन लेखन
मधुरेश: इतिहास में वर्तमान
राकेश बिहारी: कहानी में कविता: कुछ जरूरी सवाल
हमारे समय के कवि
नीलकमल
प्रदीप जिलवाने
ज्योति चावला
अरविन्द
कसौटी
सरजू प्रसाद मिश्र: मार्कंडेय की असंकलित कहानियां.
अमीर चन्द्र वैश्य: बुझे स्तंभों की छाया के विरुद्ध
पंकज पराशर: कविता की भूमि और भूमिका पर एक बहस
सुमन कुमार सिंह: मधुरेश की आलोचनात्मक उपलब्धियों और सम्भावनाओं की पड़ताल
शैलेय: जीवंत कहानियों का दस्तावेज
दिनेश कर्नाटक: सनका देने वाले दौर की कहानियां
विजय गौड़: कितना पीला है वह पीला
अरुण कुमार: अंतर्विरोधी स्थितियों की कवितायें
प्रेमशंकर: घहर का आख़िरी कमरा उर्फ़ हासिए पर पडी इंसानियत
रामजी तिवारी: सम्भावनाओं को तलाशती कवितायें
रमाकांत राय: कस में हीरा लाल!
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